नई दिल्ली (एजेंसी)। उत्तराखंड के चमोली जनपद में ग्लेशिन टूटने के बाद आई ‘जल प्रलय’ में भारी तबाही कर चली गई। अभी भी 150 से अधिक लोगों लापता है। लेकिन सवाल उठता है ऐसी घटना बार-बार क्यों हो रही है। सभी विशेषज्ञ अपना-अपना अनुमान बता रहे हैं। परंतु क्या हम प्रकृति से कोई खिलवाड़ तो नहीं कर रहे ऐसे सवाल सभी के मन में उत्पन्न हो रहे है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने सेटेलाइट डाटा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि चमोली जिले में तबाही ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में हुए हिमस्खलन की वजह से हुई।
जिसकी वजह से लाखों मीट्रिक टन बर्फ और पहाड़ी का हिस्सा भरभराकर नीचे गिर गया जिससे बाढ़ जैसे हालात हो गए है। वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि ऋषि गंगा और तपोवन जैसे पावन प्रोजेक्ट्स से जंगल काटे जा रहे हैं, नदी-नाले के बहाव को रोका जा रहा है। प्रकृति से जब इस तरह से छेड़-छाड़ की जाती है तो अपने तरीके से बदला लेती है।
रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना में 56 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जाने है
2013 में केदारनाथ में हुए हादसे के बाद वहां चार धाम परियोजना पर काम शुरू है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना में 56 हजार पेड़ काटे जाने हैं। ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि क्या हम प्रकृति को नुक्सान तो नहीं पहुंचा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है सवाल
13 दिसम्बर 2014 को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि अगर इन प्रोजेक्ट्स से वन-पर्यावरण को खतरा है तो इन्हें रद्द क्यों नहीं किया जा रहा है? उन अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती, जिन्होंने इन्हें मंजूरी दी? पर्यावरण से समझौता नहीं होना चाहिए।
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