दिन जितने आगे बढ़ते चले जा रहे हैं, असुरक्षा का अंदेशा उतना ही ज्यादा लोगों में घर करता चला जा रहा है और यह अंदाजा खामोख्वाह नहीं है, कोई भ्रम नहीं है, काल्पनिक दुनिया की कोर्ई कहानी का फ्लैश बैक नहीं है।
सच्चाई तो यह है कि पूरा विश्व आज आतंकवाद रूपी दानव के शिकंजे में फंसा है। क्या एशिया, क्या यूरोप, क्या अफ्रीका, क्या अमेरिका, दुनिया का हर महाद्वीप, महाद्वीपों का हर राष्ट्र बुरी तरह आतंकवाद के शिकंजे में फंसा है। आज से चार दशक पहले विश्व के किसी राष्ट्र ने सोचा तक नहीं होगा कि एक बड़ी शैतानी धारणा अवधारणा जमीन के अंदर से होती हुई, सुरंग बिछाती हुई पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में ले लेगी।
आज का जो वैश्विक व वैश्विक राजनीति का जो स्वरूप हम देख रहे हैं, उसमें कहीं न कहीं थोड़ी या ज्यादा आतंकवाद के शिकंजों की छाया ही है और एक खौफनाक मंजर खड़ा करती है।
अमेरिका आज विश्व में पहले नम्बर की महाशक्ति है और अमेरिका की इस स्थिति पर चीन, पाकिस्तान सहित तमाम आतंकवादी राष्ट्रों को एतराज है, मगर जब चीन की महासत्ता को दुनियाभर के शांतिप्रिय देशों में स्वीकार किया गया तो अमेरिका हाथ पर हाथ धरे बैठ नहीं सकता। उसे हरकत में आना ही पडेÞगा और विश्व शांति का अग्रदूत बनना ही पड़ेगा, भले ही शांति स्थापना के लिए कुछ कड़े कदम भी क्यों न उठाने पड़ जाएं।
आज इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन को भारत का डर सता रहा है। जबसे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तब से वे निर्भीक होकर बोल्ड कदम उठाने लगे। देश के अंदर व भारत की प्रशासनीय रणनीति को सुधारने लगे।
पूर्व की सभी सरकारों ने भारत को ज्वलंत बनाकर छोड़ दिया, मगर आज नरेंद्र मोदी आंच झेलते हुए बहुत कुछ सकारात्मक कर डालने की जद्दोजहद में लगे हैं। जैसा कि बताया गया कि चीन-भारत की संप्रभुता से डरा हुआ है यही कारण है कि आवश्यकताओं व परिस्थितियों के एक समान होने के बावजूद वह उभर कर भारत के सामने नहींं आ पा रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री के अथक मित्रता का आमंत्रण अमेरिका द्वारा हाशिये पर कर दिया जाएगा तो भारतीय आबादी कभी अमेरिका व ट्रंप राजनीति को माफ नहीं कर पाएगी। अमेरिका के अंदर या बाहर का जो शांतिप्रिय विश्व समुदाय भारत के प्रति सद्भावना व सहानुभूति रखता है, वह भी अमेरिका व ट्रंप को माफ नहीं करेगा और तो और आज की तारीख में यदि अमेरिका स्वार्थ साधने के लिए भारत की मदद नहीं करेगा तो आने वालीं पीढ़ियां ट्रंप को एक तरह से स्वार्थी व तानाशाह के रूप में भी चिन्हित करेगी।
कुल मिलाकर अमेरिका के लिए यही श्रेयस्कर होगा, जिसे वह खुद समझता भी है, भारत को साथ लेकर चलेगा और युद्ध छिड़ने की स्थिति में आतंकवादी राष्ट्रों पर अपना शिकंजा कसेगा। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति अन्तर्राष्ट्रीय हालात अमेरिका के लिए यही दिशा व दशा तय करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय हालातों व अपनी-अपनी दुरावस्था के मद्देनजर आतंकवादी राष्ट्रों के साथ-साथ तानाशाह चीन व तानाशाह उत्तर कोरिया चाहने लगे हैं कि एक अंतर्राष्ट्रीय युद्ध या महायुद्ध भी पराकाष्ठा पर पहुंचने से अच्छा है भारत से भिड़ना। भारत की अंदरूनी राजनीति एकबद्ध नहीं है। भारत के चप्पे-चप्पे पर आतंकवादियों का डेरा है।
देश के नवयुवक देश-प्रेम से वंचित हैं, इसलिए अभी सीमाविवाद को हवा देकर कमजोर भारत को पस्त करने का व अपना उल्लू साधने का सर्वश्रेष्ठ मौका है। क्यों न कश्मीर को और सुलगाया जाए, क्यों न भूटान की जमीन को हड़प लिया जाए, क्यों न तिब्बत पर पूरी तरह कब्जा कर लिया जाए, क्यों न सिक्किम को आजादी के लिए उकसाया जाए, क्यों न शनै:-शनै: संपूर्ण भारत को हाथ में लिया जाए।
इससे अमेरिका दबा रहेगा, महायुद्ध की संभावना खत्म हो जाएगी, दक्षिण चीन सागर पर छोटा-मोटा समझौता कर लिया जाएगा और रोटियां सेंकने का मौका भी मिल जाएगा, लेकिन राजनीति की एक तकनीक होती है। वैश्वीकरण के इस युग में कोना-कोना चप्पा-चप्पा दुनिया की नजर में रहता है। हिटलर या मुसोलिनी, हर तानाशाह का अंत हुआ। विश्व साक्षी है और चीन व उत्तर कोरिया के तानाशाह भी ध्वस्त होंगे। इतिहास के पन्ने और भर जाएंगे। विनाशकाले विपरीत बुद्धि।
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