समानता के साथ विकास: भारत में यह आदर्श कठिन

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फ्रांस के अर्थशास्त्री द्वारा हाल ही में समाचार पत्रों में प्रकाशित यह तथ्य ‘‘भारत में व्यापक विषमताएं हैं, यह ऐसा देश है जहां पर शीर्ष के एक प्रतिशत लोगों तथा कुल जनसंख्या के विकास के बीच अंतर बहुत अधिक है’’। यह तथ्य बताता है कि देश में आय में असमानता के संबंध में कोई बदलाव नहीं आ रहा है।

देश में शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के पास लगभग 22 प्रतिशत आय है और 1922 में स्वीकार किए गए आय कर अधिनियम के बाद यह सर्वाधिक है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भी एशियाई देशों को पिछले दो दशकों से आगाह कर रहा है कि इन देशों में आय में असमानता बढ रही है जिसके कारण गरीबी उन्मूलन उपाय प्रभावित हो रहे हैं।

भारत और चीन विशेषकर आय पुर्नवितरण की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं क्योंकि उच्च वृद्घि दर से आय मे असमानता कम नहीं हुई है। तथापि आय में असमानता संपूर्ण विश्व में है। आॅक्सफाम द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन, भारत, इंडोनेशिया, लाओस, बंगलादेश और श्रीलंका में पिछले दो दशको मे सबसे समृद्घ 10 प्रतिशत लोगों की आय में 15 प्रतिशत से अधिक वृद्घि हुई है जबकि सबसे गरीब 10 प्रतिशत लोगो की आय में 15 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आयी है।

विश्व में 25 देश ऐसे हैं जहां पर आय में असमानता सबसे कम है। आय के वितरण के आधार पर बेल्जियम शीर्ष स्थान पर है। आय, खपत और संपत्ति वित्तीय असमानता के संकेतक हैं। 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा स्वीकृत सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य गरीबी उन्मूलन, असमानता और अन्याय समाप्त करना और जलवायु परिवर्तन की समस्या का निराकरण करना है।

इन लक्ष्यों का उद्देश्य समग्र विकास है और जिसमें साम्य शिक्षा और लिंग समानता भी शामिल है। लक्ष्य नं 10 विभिन्न देशों के भीतर और विभिन्न देशों में असमानता कम करने के बारे में है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा मानव विकास सूचकांक को किसी भी देश के विकास के मूल्यांकन के मापदंड के रूप में वहां की जनता और उनकी क्षमताओं पर बल देने के लिए बनाया गया। 2014 में असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक बनाया गया और इसमें किसी भी राष्ट्र की उपलब्धियों के तीन आयामों – स्वास्थ्य, शिक्षा और आय वितरण पर बल दिया गया।

सामान्यतया किसी भी देश में सर्वाधिक असमानता बडे शहरों में देखने को मिलती है। भारतीय शहरों में पॉश कालोनियों के निकट झुग्गी बस्तियां आम बात है। एक ही इलाके में विभिन्न घरों में आय में असमानता देखने को मिलती है। एक ओर अरबपति हैं तो दूसरी ओर पेंशनभोगी और कल्याण योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोग एक ही इलाके में रहते हैं।

चमचमाते मालों की ओर जाने वाली सडकों की पटरियों पर चाय और खाने पीने के खोखे देखने को मिल जाएंगे। कनाडा के बारे में एक रिपोर्ट के अनुसार बडे शहरों में आय असामनता देखने को मिलती है जबकि शेष देशों में यह असमानता कम है।

राज्यों और विभिन्न क्षेत्रों के बीच विकास के अंतर को पाटने के लिए राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इस अंतर का कारण प्रति व्यक्ति आय में अंतर, गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे लोगों का अनुपात, कृषि में नियोजित लोगों की संख्या, अल्प रोजगार वाले लोगों की संख्या आदि हैं।

अवसंरचना के असमान स्तर के कारण भी उतपादन और सेवाओं की गुणवत्ता में असमानता आती है और इनका प्रभाव जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्यु दर, साक्षरता और शैक्षिक स्तर आदि के रूप में दिखायी देती है। इसके अलावा लिंग के आधार पर और आयु के आधार पर भी असमानता देखने को मिलती है।

भारत में सबसे बड़ी असमानता शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच है क्योंकि दोनों क्षेत्रों में अवसंरचना और अवसरों में व्यापक अंतर है। इसलिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों मे स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएं पहुंचाने की अत्यावश्यकता है। मध्यम और निम्न आय परिवारों में विभिन्न पीढियों में भी असमानता देखने को मिल रही है।

समृद्घ परिवारों में यह कम देखने को मिलती है। धनी धनी बनता जा रहा है और उनका परिवार अनेक पीढियों तक इसका लाभ उठाता है। विभिन्न पीढियों में यह अंतर, आय, शिक्षा और रोजगार के कारण आ रहा है। हाल के वर्षों में कुछ क्षेत्रों में मोटे वेतन और स्वरोजगार में उच्च आय के कारण यह अंतर बढा है। इससे विभिन्न क्षेत्रों के कर्मचारियों में भी असमानता बढी है।

यह अंतर बढता जा रहा है और सामाजिक सुरक्षा के अभाव में बुजुर्गों के लिए कठिनाइयां पैदा हो रही हैं। इंटरनेट और मोबाइल फोन ने भी विभिन्न पीढियों के बीच अंतर पैदा कर दिया है। इस संबंध में जापान की स्थिति अलग है जहां पर विकसित देशों में असमानता सबसे कम है। वहां पर आय कर और उत्तराधिकार कर की उच्च दरें इस असमानता को बढने से रोकती हैं और ऐसा कहा जाता है कि जापान में सबसे समृद्घ परिवार तीन पीढ़ियों में अपनी संपत्ति खो देते हैं।

भारत में सबसे कम मजदूरी प्राप्त करने वाले श्रमिकों में से 60 प्रतिशत महिलाएं हैं जबकि सर्वाधिक मजदूरी प्रापत करने वालों मे उनकी संख्या केवल 15 प्रतिशत है। समान कार्य के लिए समान वेतन सिद्घान्तत: स्वीकार कर लिया गया है किंतु व्यवहार में इसका पालन नहंी होता है।

असमानता को कम करने के लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता है। इन नीतिगत उपायों में समावेशी विकास, रोजगार, शिक्षा में निवेश, कौशल प्रशिक्षण, सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं, कर प्रणाली में प्रभावी पुनर्वितरण, सार्वभौमिक बुनियादी आय योजना, आदि प्रमुख हैं।
संघीय ढांचे वाले राज्यों के समक्ष विभिन्न राज्यों के बीच असमान विकास की समस्याएं भी हैं।

भारत में केन्द्रीय सरकार अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थाओं, अवसंरचना परियोजनाओं आदि के निर्माण के लिए विभिन्न राज्यों में प्रतिस्पर्धा को बढावा दे रही है। इससे उन राज्यों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढेगी जो लगभग समान है और उन राज्यों को प्रोत्साहन मिलेगा जाहं पर विकास कम हुआ है और वे बुनियादी सुविधाएं विकसित करने के लिए प्रेरित होंगे।

स्थानीय स्थितियों की जानकारी रखने वाले क्षेत्रीय और स्थानीय लोगों की असमानता दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इन लोगों के प्रयासों से ही इस धारणा को दूर किया जा सकता है कि भारत में समानता का आदर्श प्राप्त करना कठिन है।

-डॉ. एस सरस्वती

 

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