विकासशील राष्ट्रों को समझनी होगी विकसित देशों की कूटनीति

Developing Nations, Diplomacy, Developed Countries

स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों व सड़कों के निर्माण में जुटे विकासशील देश अमेरिका व यूरोपीय देशों की कूटनीति को समझें। एशिया के लड़ाई-झगड़े शक्तिशाली देशों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। ग्लोबल थिंक टेक स्टाकहोम इंटरनेशनल के सर्वेक्षण में भारत विश्व में सबसे अधिक हथियार खरीदने वाला देश बन गया है। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी हथियार खरीदने में पीछे नहीं है।

जहां लोग भुखमरी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, वहीं पाकिस्तान अपनी युद्ध ताकत को बढ़ाने में जुटा हुआ है। शक्तिशाली देशों ने गुटबाजी में शामिल होकर अपने ग्राहक पक्के किए हुए हैं। भारत-पाक की टकराव वाली परिस्थितियों में चीन न केवल पाक की पीठ को थपथपा रहा है बल्कि पाक द्वारा खरीदे जाने वाले हथियारों की 35 प्रतिशत सप्लाई चीन ही कर रहा है। भारत-पाक मामला चीन के लिए सोने की खान बना हुआ है।

जो भी देश अपने आपूर्तिकर्ता से हथियार खरीदने से खिसकता है। आपूर्तिकर्ता देश उन्हीं को आंखें दिखाने लगता है। अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस व जर्मनी हथियार सप्लाई करने वाले विश्व के अव्वल देश हैं। सुरक्षा जरूरी है लेकिन जब हथियारों की बिक्री कुछ देशों की जीडीपी का बड़ा हिस्सा बन जाए तब व्यापारिक विचारधारा कुटिल नीतियों को जन्म देती है। यह बात एशियाई व अन्य गरीब देशों को समझनी होगी कि वह आपसी मामलों को सुलझाएं व अमन-शांति का माहौल बनाएं।

दरअसल विदेश नीति व सत्ता की जंग आपस में इतने उलझ गए हैं कि विभिन्न देशों में टकराव बढ़ता ही जा रहा है। विशेष तौर पर पाकिस्तान पर आतंकवाद फैलाने को उसकी विदेश नीति का अंग माना जा रहा है। पाकिस्तान में प्रत्येक राजनैतिक पार्टी कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ युद्ध क्षमता को गरीबी, भुखमरी से बड़ा मानती है।

उक्त रणनीति ही पाकिस्तान का बंटाधार कर रही है। यदि भारत पाकिस्तान के बीच, विश्वास व अमन का माहौल पैदा हो जाए तब बजट का एक बड़ा हिस्सा युद्ध ताकत में वृद्धि की बजाए जनता की भलाई योजनाओं पर लगाया जा सकेगा। अमीर देशों को भी चाहिए कि जिस अमन शांति व भाईचारे के लिए वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दावे करते हैं उन दावों को हथियारों से पैसा कमाते वक्त भी याद रखें। शक्तिशाली देशों को पहले हुए युद्धों में भी कुछ न कुछ नुक्सान झेलना पड़ा है। हथियारों की बजाय कृषि, शिक्षा, मेडिकल व अन्य उपयोगी क्षेत्रों में तकनीक बेचकर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। हथियार बेचने की लालसा के कारण ही आज लाखों लोग शरणार्थी कैंपों में अनिश्चितता भरी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं।