सरसा। सत्संग भंडारे के शुभ अवसर पर डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत का जोश, ज़ज्बा और असीम श्रद्धाभाव हर किसी के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया। सत्संग भंडारे की नामचर्चा अभी शुरू भी नहीं हुई थी कि सभी पंडाल साध-संगत से खचाखच भर गए और श्रद्धालुओं ने सड़कों के किनारे और ट्रैफिक ग्राउंडों में भी बैठकर नामचर्चा का लाभ उठाया। जहां तक नज़र की सीमा थी वहां तक साध-संगत का भारी जनसमूह ही दिखाई दे रहा था।
सत्संगियों के परमार्थ हैं बेमिसाल: पूज्य गुरु जी
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि जो ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड, खुदा, रब्ब की धुर की बाणी, अनहद नाद, बांग-ए- इलाही, मैथड आॅफ मेडिटेशन से प्राप्त की हुई गॉड्स वाइस एंड लाइट, वो जो आवाज है, वो जो रोशनी है, वो जो परमानंद जिसे हम कह रहे हैं, दुनिया में किसी को चाहे कोई भी स्वाद क्यों ना पसंद हो, अगर आप उससे (परमानंद) जुड़ते हैं, जो आपको स्वाद पसंद है, उस परमानंद में इससे अरबों-खरबों गुणा आपको स्वाद आएगा और हर किसी को आएगा और वो स्वाद परमानेंटली है। ये आप वाला टैम्परेरी है।
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि आप दुनिया में कोई भी काम-धंधा करते हैं, बिजनेस-व्यापार करते हैं, किस लिए करते हैं? अपने शरीर के लिए, बाल बच्चों के लिए, और किसी चीज के लिए तो नहीं करते आप। हाँ, सत्संगी जो हैं, वो परहित परमार्थ करते हैं, ये तो बेमिसाल है, ये तो बात ही अलग है। लेकिन इनके अलावा दुनिया में तो ये ही मकसद होता है कि शरीर के लिए, या फिर औलाद के लिए बनाया जाए, माँ-बाप के लिए प्यार अब कम होता जा रहा है। तो ये सारे कर्म आप करते रहते हैं और इन कर्मों से आपको लगता है कि जीवन जीने का उद्देश्य पूरा हो रहा है, मकसद हमारा यही है। लेकिन नहीं आप भूल गए हैं, ये जो आप दुनिया में मस्त हुए बैठे हैं, ये तो धीरे-धीरे छूटता जाएगा, कोई आज साथ छोड़ गया, कोई कल साथ छोड़ गया, जब तक खिलाओ, पिलाओगे अपने हैं, मुट्ठी बंद हुई नहीं, निकल बाहर। आप जानते हैं स्वार्थ, गर्ज हावी हो गया है, तो आपने इसको मकसद बना रखा है, जबकि ये नहीं मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा मकसद है उस शक्ति को पाना, उस ताकत को पाना जो सबको बनाने वाली है, सब कुछ देने वाली है।