Dera Sacha Sauda से Live || पावन भंडारे पर शाह सतनाम-शाह मस्तान जी धाम में रौनक़ें

Dera Sacha Sauda
Dera Sacha Sauda से Live || पावन भंडारे पर शाह सतनाम-शाह मस्तान जी धाम में रौनक़ें

सरसा। 25 जनवरी 1919 के शुभ दिन सच्चे रहबर पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने श्रीजलालआणा साहिब की धरा पर पावन अवतार धारण किया। सच्चे रहबर के रूहानी प्रकाश ने चहुंओर राम-नाम की अलख जगा दी। आपजी की प्रेरणा से आज लोभ-लालच, अहंकार व नशों की गंदगी में फंसे करोड़ों लोग बुराइयां त्याग कर राम-नाम की भक्ति और नेक कार्यों की ओर अग्रसर हैं। वहीं अवतार दिवस के उपलक्ष्य में शाह सतनाम- शाह मस्तान जी धाम, डेरा सच्चा सौदा, सरसा, हरियाणा में बड़ी तादाद में साध-संगत पहुंच रही है। आइये तस्वीरों में देखते है पावन भंडारे की झलकियां….

रूहानियत का शहनशाह जब रूहानी प्रकाश फैलाता है तो खुशियों से सभी की झोलियां लबालब हो जाती हैं। उसके दायरे में हर इंसान अमीर-गरीब, पढ़ा-लिखा, अनपढ़, बच्चा, बूढ़ा, जवान यहां तक कि पशु, पक्षी, परिंदे वनस्पति हर कोई आता है और रहमत से सभी निहाल हो जाते हैं। रूहानी रहबर की अलौकिक आवाज और उनके नूरी नयनों में ऐसी अद्भुत कशिश होती है कि एक बार निहारते ही सभी उनकी ओर खिंचे चले आते हैं और दिलो दिमाग में अद्भुत रूहानी तरंगें छा जाती है। उनके नूरानी दर्श-दीदार करके आत्मा नाच उठती है और दिल में मुर्शिद का असीम प्रेम उमड़ पड़ता है। सच्चे सतगुरु के पावन वचन जीवन को बेशुमार रहमतों से भर देते हैं। इन्सान सभी दु:ख-दर्द से निजात पा जाता है और उसके अंदर नव ऊर्जा का संचार होता है।

रूहानी रहबर प्रेम के पुजारी होते हैं, नि:स्वार्थ प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं। उनके पवित्र मुख मंडल से साक्षात् प्रभु-परमात्मा की झलक मिलती है जो इन्सान के भीतर के अंधकार को दूर कर देती है। उनकी पावन शिक्षाओं में इतनी शक्ति होती है कि चोर, लुटेरा, ठगों को भी नेक व उच्च स्तर का भक्त बना देती है। सच्चे संत, पीर-फकीर कभी भी बाहरी तौर पर चमत्कार नहीं करते लेकिन उनकी पावन शिक्षाएं मनुष्य का हृदय परिवर्तन करके उसके जीवन को अनंत रहमतों और खुशियों से भर देती हैं। यह इलाही नज़ारा करोड़ों लोगों ने देखा, माना और मान रहे हैं। हम बात कर रहे हैं सच्चे रहबर पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज की।

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने लाखों लोगों को गुरुमंत्र की अनमोल दात बख्शकर जीवन जीने का सही व अति सरल मार्ग दिखाया। चोरों, ठगों, नशेड़ियों, बुरे कर्म करने वालों को भी सच्चे भक्त बनाया। आपजी ने जहां महानगरों, बड़े-छोटे शहरों-कस्बों में दिन-रात एक करके अपने हजारों रूहानी सत्संग फरमाए वहीं दूर-दूर के गाँवों-ढाणियों में पहुँचकर अमीर-गरीब सभी को प्रभु-परमात्मा के सच्चे नाम से जोड़ा। आपजी ने जहां अमीरों के बड़े-बड़े घरानों में पवित्र चरण टिकाए, वहीं गरीबों के घरों व कच्चे आंगनों तथा टूटी-फूटी झोपड़ियों में भी अपने पवित्र चरण टिकाकर अति तरसयोग्य अवस्था में रह रहे उन लोगों को भी अपनी पावन शिक्षाओं व आशीर्वाद से निहाल किया। आपजी ने सभी से नि:स्वार्थ प्रेम करने तथा मानवता व आपसी भाईचारे का रूहानी संदेश दिया।

भक्ति को कभी लोग बुजुर्गों का कार्य मानते थे, बच्चे को भक्ति से दूर माना जाता था। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने 5 साल के बच्चे को भी नाम शब्द (गुरुमंत्र) का अधिकारी माना व नामदान की बख्शिश की। आपजी ने बचपन और युवा अवस्था की भक्ति को अव्वल दर्जा प्रदान करते हुए फरमाया कि ये अव्वल दर्जे की भक्ति है और बूढ़ा होकर भक्ति करना रब्ब का उलाहना उतारना (रब्ब दा उलांभा लाहेया) ही है, परन्तु फिर भी वो लोग भी अच्छे हैं जो जिस उम्र में भी राम-नाम, भक्ति से जुड़ते हैं। आपजी की दया-मेहर-रहमत का ही कमाल है कि आज सात करोड़ साध-संगत में 70-80 प्रतिशत यूथ (नौजवान बच्चे) हैं जो राम-नाम व मानवता की सेवा में एक-दूसरे से बढ़कर कदम बढ़ाए हुए है और मानवीय समाज में बड़ा परिवर्तन ये भी सामने है कि छोटी आयु के बच्चे अपने बुजुर्गों को भक्ति के लिए प्रेरित करते देखे गए हैं।

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