डेरा सच्चा सौदा रूहानी स्थापना दिवस व ‘जाम-ए-इन्सां गुरू का’ की वर्षगांठ पर विशेष (Jaam-E-Insan Guru Ka Diwas)
जब-2 पृथ्वी पर पाप बढ़ते हैं संत-सतगुरु इन्सान के चोले में अवतार धारण करते हैं और भूली-भटकी रूहों को अपनी दया मेहर से समझाकर वापिस निज देश ले जाने के काबिल बनाते हैं। काल के इस देश में आकर उसके चंगूल से उन्हें छुड़ाना कोई आसान काम नहीं, क्योंकि काल भी अपना पूरा जोर लगाता है ताकि रूहें उसके चंगुल से निकल न सकें। काल संत-फकीर के मार्ग में तरह-2 की रूकावटें डालता है, घोर अत्याचार बरपाता है। रूहानी पीर, फकीरों, भक्तों पर हुए अत्याचारों के अनेक साक्ष्यों से इतिहास भरा पड़ा है। कहते हैं कि उस समय तो भला जमाना था, लेकिन उस भले जमाने में भी उस समय के पीर-फकीरों पर अत्याचार हुए लेकिन अब तो कलियुग है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले धर्म के अनादर का इल्जाम लगाकर सजा दे दी जाती थी, आज प्रजातंत्र है, धर्मनिरपेक्षता का दिखावा भी है, इसलिए आज कई और तरह के इल्जाम लगाकर सजा दी जाती है।
ऐसे जमाने में जब एक सच्चा संत, पीर, फकीर इन्सानियत का झंडा बुलंद किए हुए है तो काल की ताकतों को यह कैसे सहन हो सकता है, क्या-क्या अड़ंगे नहीं लगाए गए इन्सानियत के ज़ज्बे को रोकने के लिए। लेकिन इन्सानियत का यह ज़ज्बा न कभी रूका है और न कभी रूकेगा। 29 अप्रैल ,1948 को परम संत शाह मस्ताना जी महाराज द्वारा लगाए गए सच्चा सौदा रूपी इन्सानियत, रूहानियत के इस बूटे (पौधे) को परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने पाला पोसा और पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इसे बुलंदियों पर पहुंचाया तो काल के घर में स्यापा तो पड़ना ही था। मर रही इन्सानियत को पुनर्जीवित करने की पूज्य गुरु जी की मुहिम में काल की ताकतों ने रोड़े ही नहीं अटकाए बल्कि इस मुहिम के मार्ग में झूठ के पहाड़ खड़े कर दिए।
लेकिन काल की ताकतें गुरु जी को तो क्या उनके शिष्यों को भी तनिक सा विचलित नहीं कर पाई। गुरु जी के हुक्म अनुसार उनके करोड़ों शिष्य आज भी अपने सतगुरु के दिखाए ‘इन्सानियत की सेवा’ के मार्ग पर दृढ़ता से चल रहे हैं। यहां प्रकाशित ये कार्य तो मात्र प्राकृतिक आपदाओं के दौरान पूज्य गुरु जी के योगदान का संक्षिप्त सा विवरण है। इसके अतिरिक्त वेश्याओं को बेटी बनाकर उनकी शादी करवाना, शारीरिक तौर पर अपंग युवकों से आत्मनिर्भर युवतियों की शादी करवाना, निराश्रयों को मकान बनाकर देना, जीते जी गुर्दादान, मरणोपरांत अंगदान, शरीरदान इत्यादि पूज्य गुरु जी द्वारा चलाए जा रहे 134 बेमिसाल कार्य वाकई अदभूत, अकल्पनीय अनुकरणीय है।
‘‘वो शमां क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे।’’