मंदबुद्धियों की सार-संभाल की ऐतिहासिक मिसाल
- अब तक हजारों विक्षिप्तों की सार-संभाल व इलाज करा अपनों से मिलवाया
- पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शुरू की मुहिम
सरसा। कोई नग्न तो कोई अर्धनग्न…या फिर फटे-पुराने, मैले-कुचैले बदबूदार लिबास से ढ़का तन। मिट्टी से सने बाल, बढ़े नाखून व देह इतनी दुर्गंध कि पास तक जाने की हिम्मत न होने पाए। हम बात कर रहे हैं मानसिक रूप से विक्षिप्त उन मंदबुद्धि बच्चों, महिलाओं, पुरूषों व वृद्धों की जिनके साथ न तो कुदरत इंसाफ कर पाई और न ही खुदगर्ज समाज। किसी को परिजनों की उपेक्षा और तिरस्कार ने तो किसी को जालिम वक्त और हालात ने इस कदर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया कि वे आज घर-परिवार, रिश्तेदारों से सैकड़ों कोस दूर अनजान शहरों में सड़कों पर भटककर दुनिया के ताने झेल रहे हैं। रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अपनी जिंदगी का बचा-खुचा वक्त गुजारते हुए इन्हें आसानी से देखा जा सकता है।
समाज के उपहास, उपेक्षा को झेल रहे इन अभिशप्त मानसिक रूप से विक्षिप्तों की जिंदगी के पीछे के असल दर्द को मानवता भलाई कार्यों में अग्रणीय सर्व धर्म संगम डेरा सच्चा सौदा ने समझा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा चलाई गई मुहिम ‘इंसानियत’ के तहत डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत ने अब तक सड़कोंं व सार्वजनिक स्थानों पर घूमते करीब हजारों मंदबुद्धि महिला-पुरूषों, बच्चों, वृद्धों का इलाज करवा उन्हें उनके घरों तक पहुंचाया है और यह क्रम लगातार जारी है।
कोई भी मानसिक रूप से विक्षिप्त डेरा सच्चा सौदा के सेवादारों के संपर्क में आता है तो वे उनकी अपनों से भी बढ़कर तब तक सेवा करते हैं जब तक कि वे पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने व परिजनों बारे जानकारी नहीं दे देते। जानकारी मिलने पर सेवादार खोजबीन कर परिजनों को बुलाकर विक्षिप्त को उनके हवाले कर देते हैं। यह सिलसिला पिछले कई सालों से चलता आ रहा है। अब तक हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड समेत देश के विभिन्न प्रांतों में डेरा सच्चा सौदा के सेवादार मानसिक रूप से विक्षिप्तों की अपनों से बढ़कर सार-संभाल करने के उपरांत उनके परिजनों की तलाश कर उन्हें घर तक पहुंचा चुके हैं।
इलाज करवाकर करते हैं परिजनों के हवाले
डेरा सच्चा सौदा के सेवादार सड़कों पर मिलने वाले विक्षिप्तों की अपनों से भी बढ़कर सार-संभाल कर रहे हैं। साध-संगत इन मंदबुद्धियों का इलाज करवाकर तब तक उनकी देखभाल करती है जब तक कि उनके परिजनों का पता नहीं मिल जाता। उन्हें खाना, दवाई समेत तमाम सुविधाएं मुहैया करवाई जाती हैं। परिजनों का पता मिल जाने पर व्यक्ति को उनके हवाले कर दिया जाता है।
बीकानेर से हुई थी शुरूआत
मंदबुद्धियों को संभाल की शुरूआत उस समय हुई थी जब पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां नवंबर 2011 में ‘हो पृथ्वी साफ मिटें रोग अभिशाप’ के तहत सफाई महाभियान के तीसरे चरण के लिए बीकानेर जा रहे थे। बीच रास्ते पूज्य गुरू जी की नजर एक ऐसे विक्षिप्त पर पड़ी जो बीच रास्ते गर्मी में भी कंबल ओढ़े हुए सड़क पर पड़ा था। पूज्य गुरू जी ने विक्षिप्त को देख गाड़ी रूकवाई तथा उसके पास गए।
देखने पर पता चला कि उसने कई दिन से कुछ खाया-पीया नहीं था। पूज्य गुरू जी के आह्वान पर सेवादार उसे साथ ले आए तथा उसका इलाज करवाया। उसकी मानसिक हालत भी काफी ठीक हो गई। वह बंगाल का रहने वाला था। बाद में उसके परिजनों का पता लगाकर को उनके हवाले कर दिया गया। इस वाकये के बाद पूज्य गुरू जी ने मानवता भलाई कार्यों की श्रंखला में ‘सड़कों पर भटक रहे मंदबुद्धियों की सार संभाल व इलाज करवा उनके परिजनों तक पहुंचाने ’ के नए व पुनीत कार्य कार्य की शुरूआत कर दी। तब से लेकर आज तक साध-संगत मंदबुद्धियों की सार-संभाल करती आ रही है।