अशोक इन्सां को दुकान के सामने मिली थी गहनों की थैली
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पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को दिया ईमानदारी का श्रेय
जीन्द (सच कहूँ/चंदन सिंह)। डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी(Dera Devotee) नित ईमानदारी की नई-नई मिसाल कायमकर रहे हैं। इसी क्रम में जीन्द के भिवानी रोड़ निवासी अशोक इन्सां ने रास्ते में मिले कीमती गहनें उसके असली वारिस को लौटाए।
जानकारी के अनुसार ब्लॉक जींद के भिवानी रोड़ बाईपास पर ‘इन्सां कनफैनशरी’ की दुकान चलाने वाले अशोक इन्सां को शनिवार को अपनी दुकान के सामने एक थैली मिली। अशोक इन्सां ने जब उस थैली को उठाया तो उसमें एक चैन, मांग टीका, कान की दो बालियां, अंगूठी और कान के झुमके निकले और सभी गहने सोने के थे। लेकिन अशोक इन्सां ने अपने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के वचनों और माता-पिता की सीख पर चलते हुए उन गहनों को संभाल कर रख लिया और गहनों के असली मालिक की छानबीन शुरू कर दी।
बहुत कोशिशों के बाद ईधर-उधर पूछताछ करने पर गहनों के असली मालिक सतीश कुमार के बारे में जानकारी मिली। सतीश कुमार हरियाणा पुलिस में कार्यरत हैं और किसी कार्य से भिवानी रोड़ बाईपास पर आए हुए थे। जहां गलती से ये गहनें गिर गए थे। सतीश कुमार ने बताया कि ये गहनें लगभग 2 तोले के हैं, जिनकी मौजूदा कीमत लगभग 1 लाख रुपये से भी ज्यादा है। सतीश कुमार ने गहनें मिलने पर अशोक इन्सां(Dera Devotee) और पूज्य गुरू जी का तहेदिल से धन्यवाद किया।
उन्होंने कहा कि आजकल लोग दूसरों का हक मारने पर उतारू रहते हैं, ऐसे में अशोक इन्सां ने अपने पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणा और मार्गदर्शन से इतने कीमती गहनें खोजबीन करके असली मालिक तक पहुंचाएं है। समाज में हर किसी को अशोक इन्सां से प्रेरणा लेनी चाहिए।
पूज्य गुरु जी ने हक-हलाल की खाना ही सिखाया
अशोक इन्सां ने बताया कि ईमानदारी(Dera Devotee) की ये शिक्षा हमें पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से मिली है और पूज्य गुरू जी ने हमें सिर्फ हक हलाल का खाना ही सिखाया है। जिसमें दूसरों का एक पैसा भी खाना महापाप है। और अगर ये 5 या 10 तोले के गहनें होते तो भी ईमानदारी की राह पर चलते हुए ये असली मालिक तक पहुंचाए जाते।
बेटे पर गर्व : आत्मराम इन्सां
अशोक इन्सां के पिता 15 मैंबर आत्माराम ने पूज्य गुरू जी का धन्यवाद करते हुए कहा कि हमें अपने बेटे पर गर्व है, जिसने किसी की गुम हुई अमानत को उसके असली हकदार तक पहुंचा कर समाज में परिवार और अपने सतगुरु के नाम पर चार चांद लगाए हैं।
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