कृषि वैज्ञानिकों की उपेक्षा एवं नगरीकरण की होड़ पड़ रही भारी
आय कम होने के चलते लोगों का मोह हो रहा भंग
देवबंद (एजेंसी)। उत्तर प्रदेश का देवबंद जहां देश और दुनिया में अपनी अलग विशेष पहचान बनाए हुए है। वहीं यह नगर ‘मीठे बेरों’ के कारण भी दूर तक जाना जाता है। लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की उपेक्षा एवं नगरीकरण की होड़ के चलते दूर-दूर तक प्रसिद्ध विशेष ‘पैंदी’ प्रजाति के यह रसीले एवं अत्यंत मीठे बेर अब लुप्त होने के कगार पर हैं। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में देवबंद नगर का यह मीठा बेर लोगों को ढूढ़ने से भी नहीं मिलेगा और यह बीते दिनों की बात बनकर रह जाएगा।
यहां के बेरों की विशेषता एवं पहचान यह है कि यह बहुत अधिक मीठा होने के कारण बीच से फट जाता है और यह फटा हुआ बेर ही ‘देवबंदी बेर’ के नाम से जाना जाता है। दूर-दराज एवं आस-पास के सभी शहरों में बेरों को अब भी देवबंद का बेर कहकर बेचते हुए देखा जा सकता है। देवबंद में बेरों के बागों के मालिकों का कहना है कि बेर 30 से 40 हजार रुपये से अधिक का नहीं बिकता है, जबकि इनके रख-रखाव में इससे भी कहीं अधिक खर्च हो जाता है। इस कारण बाग के स्वामी बचत न होने के कारण बेरियों को काटनें को मजबूर है।
सिर्फ 1500 से 2000 रुपये तक आमदनी
एक पेड़ से करीब 60 किलो से लेकर एक क्विंटल तक बेर मिलते हैं और इन्हें बाजार में बेचने के बाद 1500 से 2000 रुपये तक की आमदनी ही बामुश्किल हो पाती है। देवबंद क्षेत्र में दो दशक पहले तक बेरों के 50 से 70 बाग हुआ करते थे। लेकिन नगरीकरण के चलते यह इस समय घटकर मात्र 10-11 ही रह गए है। यह चिंता का विषय है कि बेरों के बाकी बचे बाग आबादी के बीच में आ चुके हैै।
शहरीकरण के चलते हो रहा कटान
नगर के मौहल्ला दगड़ा एवं ईदगाह आदि स्थानों से बेरियों का कटान व्यापक पैमाने पर हो रहा है और यही वजह है कि देवबंद का दूर-दूर तक मशहूर बेर अब देवबंदी लोगों को भी थोड़े ही समय के लिए दिख पाता है और बाद में यह देवबंद में भी ढूढ़ने से भी नहीं मिल पाता है। बाद में इसकी भरपाई देवबंद के विक्रेता बाहर से मंगाए हुए बेरों से करते हैं। लेकिन उन बेरों में वह स्वाद नहीं है, जो देवबंद के मीठे बेरों में। मीठे एवं स्वादिष्ठ देवबंदी बेर एक बार खाने के बाद लोग बार-बार खाते रहते है।
लोगों ने की बचाने की अपील
पर्यावरण, पक्षी एवं पेड़-पौधों से अत्यधिक लगाव रखने वाले देवबंद नगर के मौहल्ला कानूनगोयान निवासी कपड़ा व्यापारी शशांक जैन, मोहल्ला छिम्पीवाड़ा के वरिष्ठ पत्रकार गौरव सिंघल और कैलाशपुरम कालोनी के शिक्षक मोहित आनंद ने देश के कृषि वैज्ञानिकों से इस ओर विशेष ध्यान देने की मांग करते हुए देवबंदी बेरों के बागों को बचाने की अपील की है।
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