इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। इस बार विदेशी जमीन से दावे किए गए हैं कि भारत में ईवीएम को हैक किया जा सकता है। यह कैसी विडंबना है कि देश के 17 राजनीतिक दल चुनाव आयोग से मतपत्रों के माध्यम से चुनाव कराने की मांग करने जा रहे हैं। इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के राजनीतिक दलों की प्रतिगामी सोच ही माना जा सकता है। इस सोच के पीछे जो कारण बताया जा रहा है वह है इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ की संभावनाएं। मजे की बात यह है कि जो दल हारता है वही इलेक्ट्रेनिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाता है। यदि आशानुकूल सीटें मिल जाती हैं तो उस राज्य या स्थान पर ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं उभारा जाता है। इसका सीधा-सीधा मतलब मीठा मीठा गप्प, खट्टा खट्टा थू वाली कहावत चरितार्थ होना है।
कुछ उदाहरण भी दिए गए हैं। मसलन-2014 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम में धांधली की गई। सवाल है कि तब केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी और धांधली के बावजूद कांग्रेस पार्टी बुरी तरह पराजित हो गई? 2015 के दिल्ली चुनाव हैक कराए गए। नतीजा यह रहा कि कांग्रेस के हिस्से शून्य आया और भाजपा के भी मात्र 3 विधायक जीत कर आ पाए। सत्ता आम आदमी पार्टी (आप) के नौसिखिया संगठन को हासिल हुई। हालिया दावा यह किया गया है कि मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान में ट्रांसमिशन को पकड़ा गया और डाटा को बदलने से रोका गया। नतीजतन ईवीएम हैक नहीं की जा सकी। सवाल है कि यह सब किसने किया और किसके निर्देश पर किया? यह भी दावा किया गया है कि रिलायंस जियो कंपनी डाटा को हैक कर सकती है। वह भाजपा की मदद करती है।
ये तमाम दावे साइबर एक्सपर्ट सैयद शुजा ने किए हैं, जो भारत को फर्जी लोकतंत्र करार देने की विदेशी साजिश का प्रमुख सूत्रधार लगता है। उसने चेहरे पर कंबल-सा डाल कर गंभीर आरोप लगाए कि भाजपा, कांग्रेस ही नहीं, सपा-बसपा और आप भी ईवीएम हैकिंग कराती रही हैं। जिस आयोजन के दौरान ये संगीन आरोप भारत के चुनाव आयोग के खिलाफ लगाए गए, उसमें भारत सरकार के पूर्व कानून मंत्री एवं मौजूदा राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल भी मौजूद थे और मुस्करा कर पूरे कार्यक्रम को देखते-सुनते रहे! उनकी मौजूदगी के मायने क्या हैं? सवाल इसलिए भी उठता है, क्योंकि यह आयोजन लंदन में आशीष रे की इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के सौजन्य से किया गया। आशीष कांग्रेसी अखबार नेशनल हेराल्ड में लिखते रहे हैं। कानून एवं आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उन्हें समर्पित कांग्रेसी करार दिया है। यह प्रकरण सामने आने के पहले विपक्ष के ब्रिगेड समावेश के दौरान डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने ईवीएम को चोर मशीन करार दिया था और कई दलों ने आवाज उठाई थी कि 2019 के चुनाव मतपत्रों (बैलेट पेपर) के जरिए कराए जाने चाहिए।
हालांकि चुनाव आयोग ने ईवीएम से जुड़े तमाम आरोपों को खारिज कर दिया है, लेकिन लंदन से आरोपों का जो झंझावात चला है, उसने हमारे लोकतंत्र को धूमिल करने का प्रयास किया है। यह प्रकरण राष्ट्रीय सरोकारों का है। दरअसल हारने वाले दलों को देश के आम मतदाता पर विश्वास है ही नहीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की विजय के बाद ईवीएम को लेकर अधिक प्रश्न उठाए गए। हालात यहां तक हुए कि चुनाव आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वालों को खुली चुनौती देने को बाध्य होना पड़ा। परिणाम सबके सामने है। पिछले साल कर्नाटक और हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव, चुनाव परिणामों को लेकर ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान उस गर्मजोशी से नहीं उठे जो पहले उठाए जाते रहे हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि राजनीतिक दलों की ईवीएम को लेकर इतनी बौखलाहट क्यों है ? ऐसे में यह प्रश्न भी उभरता है कि कुछ राजनीतिक दलों को अभी से ही लगने लगा है कि चुनावों में उनकी पराजय निश्चित है। ऐसे में ईवीएम या चुनाव आयोग के सर पर ठीकरा अभी से फोड़ने की कवायद शुरू हो गई है।
आज कांग्रेस समेत कई दल ईवीएम पर छेड़छाड़ का आरोप लगा रहे हैं। इतिहास में झांके तो 2009 में हार के बाद भाजपा (एनडीए) ने बाकायदा इसके खिलाफ अभियान चलाया था। चुनावों के नतीजे सामने आते ही वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी और सुब्रमण्यम स्वामी ने ईवीएम के जरिए चुनावों में धांधली का आरोप लगाया। देश में ये पहला मौका था जब ईवीएम विवादों में आई थी. दूसरी बार गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान स्वामी ने कांग्रेस पर ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए थे। चुनावों के दौरान भाजपा गुजरात में पहले नम्बर की पार्टी बनी थी, लेकिन स्वामी का कहना था कि अगर कांग्रेस पार्टी ने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ नहीं की होती तो भाजपा को गुजरात में 35 सीट और मिल जातीं. इस दौरान स्वामी अपनी शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चले गए।
ईवीएम पर बार-बार सवाल खड़े किये जा रहे हैं। ऐेसे में चुनाव आयोग को भी ईवीएम मशीन से चुनाव को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए आगे आना चाहिए। देश भर में गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से जागरुकता और अवेयरनेस अभियान चलाकर आम लोगों को अवगत कराना चाहिए। किसी के भी द्वारा कहीं कोई सुधार की बात की जाती है तो उसे यदि व्यावहारिक व सकारात्मक है तो नि:संकोच स्वीकारना भी चाहिए। जिस तरह से आज मतदाता मतदान केन्द्र पर जाते समय पहचान के लिए किसी राजनीतिक दल की परची पर निर्भर नहीं है उसी तरह से मतदान प्रक्रिया में राजनीतिक दलों की पहुंच व प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव आयोग ने अनवरत प्रयासों से मतपत्रों से मतदान की प्रकिया से आगे बढ़ते हुए निरंतर सुधार के प्रयास करते हुए ईवीएम की यात्रा तय की है और अब तो प्रायोगिक तौर पर चुनिंदा केन्द्रों पर वीवीपीएटी का प्रयोग शुरू कर दिया गया है, उसकी सराहना ही की जानी चाहिए।
हमारी चुनाव प्रक्रिया और चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली का ही परिणाम है कि टीएन शेषन आज दुनिया भर में जाने जाते हैं। आखिर दुनिया के महान लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का सवाल है। हालांकि चुनाव आयोग ने मतपत्रों से चुनाव कराने के आग्रहों को भी खारिज कर दिया है, लेकिन जिन्होंने मतदान के मध्यकालीन दौर को देखा है और बूथ लूटने के भी साक्ष्य बने हैं, वे चुनाव आयोग के निर्णय से संतुष्ट होंगे। आखिर कुछ राजनीतिक दल और नेता भारत के लोकतंत्र और जनादेश की प्रक्रिया को पीछे धकेलने पर आमादा क्यों हैं ? मतपत्र से चुनाव कराना असल में दकियानूसी विचार है।
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