केन्द्र सरकार द्वारा हर साल रबी और खरीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित किया जाता है। पिछले सालों में राजस्थान में चनों और सरसों की खरीद समर्थन मूल्य से करीब 500 रूपये प्रति क्विंटल नीचे होती रही, जिस कारण संबंधित किसानों को भारी आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा। इधर इस वर्ष पंजाब में मंूगी की काश्त करने वाले किसान भी सरकारी घोषणा से संतुष्ट नजर नहीं आए। इसके साथ ही कुछ राज्य सरकारें भी कुछ फसलों पर अपनी तरफ से समर्थन मुल्य घोषित करती हैं लेकिन कई बार देखने में आया है कि गेहूं और धान को छोड़कर सरसों, चनों के दालों की खरीद सरकारी रेट मुताबिक नहीं होती।
समर्थन मुल्य की घोषणा का मतलब सिर्फ रेट तय करना नहीं होना चाहिए, बल्कि सरकार तय रेट पर फसल को खरीदना भी यकीनी बनाए। अगर निजी कंपनियां कम रेट पर फसलें खरीदती हैं तो यह सरकार की जिम्मेवारी है कि वह तय रेट पर खुद फसल खरीदे। एमएसपी देना या न देना वह एक अलग विषय हो सकता है लेकिन जब सरकारों ने यह रेट तय ही कर दिया है तब यह सरकार की जिम्मेवारी बनती है कि सरकार किसानों को पूरा भाव दे क्योंकि किसान ने फसल की बिजाई ही यह सोच कर की होती है कि सरकार घोषित किए फसल के रेट को यकीनी बनाएगी। MSP
पंजाब सहित कई राज्यों में राज्य सरकारों ने यही कानून बनाए हैं कि अगर फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे बिकती है तो इसकी भरपाई सरकार अपनी तरफ से करेगी। बकायदा कानून बनने के बावजूद फसलों का रेट कम मिलना किसानों को निराश करता है, खास कर जो किसान गेहूं व धान को छोड़कर सरकार द्वारा चलाई गई फसल विभिन्नता मुहिम में शामिल होकर मूंगी, सूरजमुखी व मक्की जैसी फसलों की काश्त करते हैं। सही भाव ना मिलने से किसान फिर बदली हुई फसलों का पीछा छोड़कर गेहूं व धान के चक्कर में फिर से आ फंसते हैं। MSP
वास्तव में परेशानी तब ही खत्म होती है, जब सरकार खुद खरीद के लिए मैदान में उतरती है, लेकिन सरकार सिर्फ घोषणा तक ही सीमित रह जाती है, तब प्राईवेट कंपनी या व्यापारी कम रेट को ही पहल देंगे। इसलिए जरूरी है कि सरकारें जो भी घोषणा करें, यह यकीनी बनाएं कि फसलों की खरीद तय रेट पर होगी, भले ही फिर वह सरकारी खरीद हो या फिर प्राईवेट। किसानों को सही रेट लेने के लिए धरना प्रर्दशन करना पड़ता है। किसानों को इस बात का अफसोस नहीं होना चाहिए कि उन्होंने फसलों की बिजाई ही क्यों की? किसान जिस नेक भावना, मेहनत व देश सेवा को मुख्य रखकर फसलों की बिजाई करता है, उसकी कद्र होनी चाहिए। किसान की जय होनी चाहिए व यह तब ही संभव होगा, अगर सरकारें अपनी घोषणाओं पर पहरा देंगी। Editorial