अमेरिका अपनी जीडीपी का कुल चार फीसदी जबकि चीन अपनी जीडीपी का तीन फीसदी रक्षा पर खर्च करता है, जोकि अपने आप में एक बड़ी बात है। हालांकि रक्षा मद में खर्च करने के मामले में भारत दुनिया का पांचवा बड़ा देश है। इस मामले में अमेरिका पहले स्थान पर व चीन दूसरे स्थान पर है, जबकि तीसरे पर सऊदी अरब, चौथे पर रूस और पांचवे पर भारत है। भारत से पहले फ्रांस पांचवे पायदान पर था। इसके बाद क्रमश: फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया आते हंै।
एन.के. सोमानी
चीन तथा पाकिस्तान की ओर से आ रही चुनौतियों व पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति के बाद उम्मीद की जा रही थी कि साल 2020 के रक्षा बजट (Defense Budget) में भारी बढ़ोतरी की जाएगी। लेकिन आम बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए केवल छह फीसदी का इजाफा किये जाने से सेना के आधुनिकीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयास तो प्रभावित होंगे ही नए हथियारों की खरीद पर भी असर पड़ सकता है। छह फीसदी का यह इजाफा सेना के लिए नाकाफी है। यह 1962 के बाद से अब तक की सबसे कम वृद्धि बताई जा रही है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत आम बजट में मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए रक्षा क्षेत्र में 3.37 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। पिछले साल यह 3.18 लाख करोड़ रुपए था। इस साल जनवरी के शुरू में संसद की (रक्षा पर) स्टैंडिंग कमेटी ने अपनी रिर्पोट में सेना के बजट में कटौती किए जाने और रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को ध्यान में रखकर ठीक ढंग से बजट का आवंटन न किए जाने को लेकर सरकार की आलोचना की थी। इसके बाद इस बात की उम्मीद ओर अधिक बढ़ गयी थी कि नए दशक के पहले बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए जाऐंगे। इसके अलावा उम्मीद का एक बड़ा कारण यह भी था कि चुंकी वित्त मंत्री स्वयं रक्षा मंत्री रह चुकी हैं, इस लिहाज से सेना की जरूरतों को समझते हुए बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए बड़ी घोषणाएं हो सकती हैं।
हालांकि मौजूदा समय में देश की अर्थव्यवस्था जिस दौर से गुजर रही है, उससे एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा था कि रक्षा बजट (Defense Budget) में शायद ही कोई बड़ी वृद्वि हो। रक्षा क्षेत्र के लिए दिए गए 3.37 लाख करोड़ रुपए में से 1.18 लाख करोड़ रुपए पूंजीगत व्यय के लिए दिए गए हैं, जिसका इस्तेमाल नए हथियार, वायुयान, युद्धपोत और अन्य सैन्य उपकरण खरीदने के लिए किया जाएगा। राजस्व व्यय के मद में 2.18 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जिसमें वेतन व्यय और रक्षा प्रतिष्ठानों का रख रखाव शामिल है। संक्षेप में कहें तो पूरे बजट का आधे से ज्यादा खर्च केवल तनख्वाह और अन्य सुविधाओं पर खर्च किया जाएगा। अगर रक्षा बजट में रक्षाकर्मियों को दी जानेवाली पेंशन की राशि जोड़ दी जाए तो यह रकम बढ़कर 4.7 लाख करोड़ हो जाती है। इस मद में सरकार ने पिछले साल 1.17 लाख करोड़ रुपए जारी किए थे। अब इस राशि को बढ़ाकर 1.33 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। जाहिर है रक्षा बजट में वन रेंक, वनपेंशन को ज्यादा तवज्जो दी गई है। नए हथियारों की खरीद और आधुनिकीकरण के लिए 1 लाख 10 हजार 734 करोड़ रुपए जारी किए हैं। यह राशि पिछले साल के मुकाबले 10 हजार 340 करोड़ रुपए ज्यादा है।
कुल मिलाकर कहें तो साल 2020 के बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए वृद्धि के जो प्रावधान किए गए हैं, वह हमारी कुल जीडीपी का डेढ़ फीसदी से भी कम है। यह स्थिति करीब-करीब 1962 जैसी बताई जा रही है, तब भी जीडीपी का इतना ही रक्षा बजट होता था। लेकिन अब दुनिया के हालात बदल चुके हैं। ऐसे में हर छोटा-बड़ा देश अपनी हैसियत के मुताबिक रक्षा बजट (Defense Budget) को बढ़ाता रहा है। अमेरिका अपनी जीडीपी का कुल चार फीसदी जबकि चीन अपनी जीडीपी का तीन फीसदी रक्षा पर खर्च करता है, जोकि अपने आप में एक बड़ी बात है। हालांकि रक्षा मद में खर्च करने के मामले में भारत दुनिया का पांचवा बड़ा देश है। इस मामले में अमेरिका पहले स्थान पर व चीन दूसरे स्थान पर है, जबकि तीसरे पर सऊदी अरब, चौथे पर रूस और पांचवे पर भारत है। भारत से पहले फ्रांस पांचवे पायदान पर था। इसके बाद क्रमश: फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया आते हैं।
अकेले अमेरिका की बात की जाए तो पिछले चार साल में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने सेना पर लगभग 2.5 खरब डॉलर खर्च किया है, जो कि भारत की 2017 की जीडीपी के बराबर है। इस हिसाब से अमेरिका का वार्षिक रक्षा बजट (Defense Budget) 600 अरब डॉलर को पार कर चुका है। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने पहले कार्यकाल में सेना पर 784 अरब डॉलर की भारी भरकम रकम खर्च की थी। इसके बाद अगले कुछ वर्षों में अमेरिका ने अपने सैन्य बजट में कटौती करना शुरू कर दिया था। लेकिन अब ईरान से चल रहे तनाव के कारण एक बार फिर साल 2020 के लिए सेना का बजट 738 अरब डॉलर किए जाने का अनुमान है।
अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले देश चीन ने 2019 के बजट में रक्षा क्षेत्र में 7.5 प्रतिशत का इजाफा कर 1190 अरब युआन (करीब 178 अरब डॉलर) का आंवटन किया था। यह भारत के रक्षा बजट से 3 गुना है। भारत के रक्षा बजट (Defense Budget) में कुल जीडीपी का केवल डेढ फीसदी बढना तब और अधिक अखरने लगता है, जब भूख और तंगहाली से जूझ रहा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान अपनी कुल जीडीपी का 3.5 फीसदी हिस्सा रक्षा क्षेत्र में खर्च करता है।
पिछले वर्ष बालाकोट हमले के बाद विशेषज्ञों द्वारा रक्षा बजट बढ़ाए जाने की मांग की जा रही थी। इनका कहना है कि देश कि जीडीपी का दो से ढाई फीसदी तो रक्षा क्षेत्र में खर्च किया ही जाना चाहिए। लेकिन छह फीसदी की मामूली सी वृद्वि के चलते फिलहाल रक्षा मंत्रालय को सेना के आधुनिकीकरण और युद्ध सामग्री पर खर्च के लिए अपने हाथ खींचने पड़ सकते हैं। थल सेना के लिए एम-777 हल्के तोप और के-9 सेल्फ प्रोपेल्ड गन जैसे आधारभूत हथियारों की खरीद की प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है। इसी तरह नौ सेना के लिए साल 2027 तक अपने बेड़े में 200 जहाज शामिल किए जाने की योजना पर दोबारा विचार करना पड़ सकता है।
मौजूदा विश्व व्यवस्था में जिस प्रकार से रक्षा क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है, हमें भी अपने सैन्य बलों को उस दिशा में बढ़ाना होगा। जीडीपी का कम से कम 2 प्रतिशत बजट रक्षा क्षेत्र पर खर्च करने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए। अभी देश के सामने जिस तरह की चुनौतियां हैं उसे देखते हुए यह गलत भी नहीं होगा। फिर हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था को गति देने शान्ति और स्थिरता का अपना योगदान होता है और शान्ति व स्थिरता का यह काम मजबूत सेना के बूते ही हो सकता है।
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