उत्तर प्रदेश विधानसभा की सुरक्षा को भेदना लगभग नामुमकिन है, लेकिन फिर भी चूक सामने आ गई। इस घटना ने संसद पर हुए हमले की याद ताजा कर दी है। विधानसभा के परिसर में विस्फोटक मिलने से देश की राजनीति में हड़कंप मचा हुआ है। विधानसभा की कार्रवाई के दौरान नेता विपक्ष की सीट के नीचे करीब 150 ग्राम पीईटीएन विस्फोटक सामाग्री का मिलना अमूल सुरक्षा के दावों की कलई खोलने के लिए प्रयाप्त है। पीईटीएन को दुनिया के सबसे खतरनाक विस्फोटकों में से एक माना जाता है।
सवाल उठता है कि पीईटीएन विधानसभा के अंदर कैसे पहुंचा? इसे आतंकी साजिश कहा जाए, या फिर कुछ और? यह सवाल अब हर किसी को परेशान कर रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा की सुरक्षा घेरे को भेदकर इतना आसान नहीं है। फिर यह सब कैसे संभव हुआ। गौरतलब है कि चुनाव जीतने के बाद से ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कई आतंकी संगठनों से धमकियां मिल चुकी हैं। उसी को ध्यान में रखते हुए उनकी और विधानसभा की सुरक्षा काफी मजबूत की गई है। बावजूद इसके इतनी बड़ी हिकामत की कोशिश हुई।
इस घटना से केंद्र सरकार भी हलकान है। सुरक्षा को लेकर बैठकों का दौर जारी है। फिलहाल पूरे मामले की जांच राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी यानी एनआईए करेगी। उसके बाद ही पूरी सच्चाई का पता चल सकेगा। यूपी विधानसभा में मौजूदा सुरक्षा चूक के बाद अब पूरे देश की विधानसभाओं में कड़ी चुस्त सुरक्षा चौकसी की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। घटना के बाद योगी आदित्यनाथ ने सुरक्षा के बारे में जो ग्यारह सूत्र बताए हैं उस पर विचार करने की दरकार है। नाराजगी के लहजे में उन्होंने कहा है कि सबसे पहले तत्काल प्रभाव से देश के सबसे बड़े राज्य के सबसे पुराने विधानमंडल को महफूज किया जाए। राज्य की किसी भी संस्था की सुरक्षा समाज के भाईचारे सद्भाव से भी जुड़ी होती है।
अगर समाज में कदम-कदम पर नफरत और असुरक्षा होगी तो राज्य की संस्थाओं पर उसका असर भी जाएगा, इसलिए मुख्यमंत्री योगी के अल्पकालिक सुझावों को मानने के साथ दीर्घकालिक उपायों पर भी विचार होना चाहिए। विधानसभाएं शुरू होने से पहले सभी जांच एजेंसियों को सुरक्षा से जुड़ी जानकारियों को सीएम व विधानसभा अध्यक्षों को अवगत कराना चाहिए। सुरक्षा को लेकर अगर कोई शक-शुभा है तो प्रोग्राम में तब्दीली की जानी चाहिए। साथ ही उक्त स्थान पर अलर्ट घोषित किया जाए। घटनाओं का रोकने के लिए पूर्व में इस तरह के इंतजाम किए जा सकते हैं।
गौरतलब है कि जो विस्फोटक यूपी विधानसभा में मिला है, उसका प्रयोग अधिकांश आतंकी संगठन करते हैं और अगर इसकी मात्रा पांच सौ ग्राम तक होती तो यह सदन को ध्वस्त करने के लिए काफी होता। पीईटीएन विस्फोटक को प्लास्टिक विस्फोटक भी कहते हैं। इसकी मारक क्षमता की बात करें, तो महज 50 से 100 ग्राम पाउडर एक कार या कमरे को उड़ाने के लिए पर्याप्त माना जाता है। यह आसानी से पकड़ में नहीं आता। मेटल डिटेक्टर और जासूसी कुत्ते भी फेल हो जाते हैं। पीईटीएन सफेद रंग का होता है, चीनी जैसा दिखता है, लेकिन धमाका करने में बेहद खतरनाक होता है। इस घटना की जांच इसलिए भी करने की मुकम्मल दरकार है कि इसका आशय और साजिश करने वालों के बारे में जानकारी मिल सके। उनके मकसद और मंशा की पड़ताल करने की जरूरत है।
एक सवाल उठता है कि कौन है जो राजनीतिक-सामाजिक दृष्टिकोण से उत्तर प्रदेश को अस्थिर करना चाहता है। यह बात भी सर्वविधित है कि योगी के मित्रों की संख्या से कहीं ज्यादा उनके दुश्मनों की संख्या है। वह कईयों के आंखों में कांटों की भांति चुभ रहे हैं। हाल ही में उनको दुबई से भी जान से मारने की धमकी मिली थी। हालांकि उनकी सुरक्षा की समीक्षा समय-समय पर की जाती है। लेकिन पीईटीएन का मिलना सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। इशारा साफ कि योगी की सुरक्षा में कहीं न कहीं चूक हो रही है। विधानसभा में इस विस्फोटक सामग्री से होने वाली घटना का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। बहुत बड़ी जनहानि हो सकती थी। इसलिए सटीक और पूरी जांच होनी चाहिए।
केंद्र सरकार को इस घटना पर उचित कदम उठाना चाहिए। क्योंकि सुरक्षा किसी भी राज्य व्यवस्था का पहला कर्तव्य है और अगर वह कानून बनाने वालों और सरकार चलाने वालों की सुरक्षा नहीं कर पाएगी तो उन नागरिकों की सुरक्षा कैसे करेगी जिन्होंने उन्हें यह काम दिया है। देश के आम नागरिकों की सुरक्षा और विशिष्ट जनों की सुरक्षा में एक स्पष्ट नीति के तहत तर्कसंगत लोकतांत्रिक अनुपात होना चाहिए। यह शिकायतें आम हैं कि सुरक्षा बलों का बड़ा हिस्सा विशिष्ट जनों की सुरक्षा में लगा रहता है और आम नागरिक असुरक्षित रहता है।
जाहिर है इसके पीछे सुरक्षा व्यवस्था का विशिष्टीकरण और राजनीतिकरण भी काफी जिम्मेदार है, इसीलिए सुरक्षा व्यवस्था को समर्थ बनाने के लिए पुलिस सुधार का सुझाव अक्सर दिया जाता है। उस बारे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद विभिन्न राज्य उसे टाल रहे हैं। वजह साफ है कि सुरक्षा व्यवस्था वास्तव में सुरक्षा से ज्यादा राजनीति से जुड़ गई है और जिन बेगुनाह और भले लोगों को जाति, धर्म, लिंग, पंथ और भाषा की परवाह करते हुए सुरक्षा दी जानी चाहिए वह उन्हें नहीं मिलती। उल्टे सुरक्षा उन्हें मिलती है जो राजनीतिक रूप से रसूखदार हैं।
संसद का मानसून सत्र 17 जुलाई से शुरू हो रहा है। इसलिए सभी जांच एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। यूपी विधानसभा के अंदर विस्फोटक मिलने के बाद दिल्ली में संसद भवन की सुरक्षा जांच की भी जांच पड़ताल की जा रही है। इसके लिए 60 लोगों की स्पेशल टीम और सात खोजी कुत्ते लगाए गए। मेटल डिटेक्टर और अन्य लेटेस्ट उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है। सेंट्रल हल समेत लोकसभा, राज्यसभा में सभी सीटों की जांच की जा रही है। 17 जुलाई से मानसून सेशन शुरू होगा, जो 12 अगस्त को समाप्त होगा। जहन में एक सवाल बार-बार उठता है कि जब कहीं कोई घटनाएं घट जाती हैं तभी जांच-पड़ताल का स्वांग क्यों किया जाता है। घटना के बाद सभी जांच एजेंसीज सर्तकता से काम करने का दम भरने लगती हैं, अलर्ट जारी कर दिया जाता है। मामला जैसे ही शांत होता है, कहानी फिर पुराने धर्रे पर आ जाती हैं। सतर्कता हमेशा एक जैसी क्यों नहीं रहती। अगर सुरक्षा व्यवस्था एक जैसी रहे, तो घटनाएं घटने की संभावनाएं न के बराबर होंगी।
रमेश ठाकुर
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