नदियों पर गहराता संकट

Deep, Crisis, Rivers

प्राचीन समय में भारत अपनी कई महान नदियों के कारण विश्व विख्यात था।

प्राचीनकाल में नदियों (Deep crisis on rivers) के किनारे ही हमारी मानव सभ्यताओं का जन्म व विकास हुआ था। नदियां केवल धरती के प्राण ही नहीं हैं बल्कि मानव संस्कृतियों की जननी भी हैं। हमारे पूर्वजों के मन में नदियों के प्रति अपार श्रद्धा व सम्मान का भाव विद्यमान था। वे नदियों को देवी-देवता मानकर उनकी पूजा किया करते थे। नदियों की महानता से प्रसन्न होकर ऐतिहासिक काल में कई महर्षियों ने नदी पुराण व ग्रंथों की रचना भी की हैं। उस समय नदियों के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं मानी जाती थी। क्योंकि प्राचीनकाल में नदियों का केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं था बल्कि ये सामाजिक और आर्थिक महत्व को भी समेटे हुए थी। इन्हीं महत्वों को उजागार करने के लिए कई मेलों व त्योहारों का आयोजन भी नदियों को केंद्र में रखकर किया जाता था। प्राचीन समय में भारत अपनी कई महान नदियों के कारण विश्व विख्यात था।

देश की 62 फीसदी नदियां भयंकर रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं।

भारत की धरती पर कई नदियां खेला करती थी और उनके जल से हजारों खेतों में फसलें खिला करती थीं। प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया का गौरव भी इन्हीं नदियों की बदौलत हासिल था। लेकिन बदलते दौर में नदियों के मूल्यों और अस्मिता के साथ छेड़छाड़ हुई। उनके निर्मल व पवित्र जल में जहर घोला गया और उन्हें मृतप्राय सा बनाकर छोड़ दिया गया। यही कारण है कि आज देश में तकरीबन 223 नदियों का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि उनके पानी में नहाने या पीने पर बीमारी का खतरा हो सकता है। देश की 62 फीसदी नदियां भयंकर रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं। इनमें गंगा और यमुना समेत इनकी सहायक नदियां भी शामिल हैं। निश्चित ही शहरीकरण और औद्योगीकरण ने नदियों के प्राण हरने का कार्य किया है। कृषि अपशिष्ट, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक ने नदियों के जल को सर्वाधिक क्षति पहुंचायी है।

परियोजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं

औद्योगिक अपशिष्ट, भारी धातु, प्लास्टिक की थैलियां व ठोस अपशिष्ट के साथ ही पूजा का सामान, फूल, मालाओं जैसी वस्तुओं के कारण नदियों की अविरल धारा में रुकावट आयी है। वहीं नदियों के किनारे धार्मिक अनुष्ठान करने, पशुओं के नहाने, मानव द्वारा मल-मूत्र त्यागने के कारण नदियां का जल प्रदूषित हुआ है। आज देश में नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए तो कई योजनाएं और परियोजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं पर नदियों को प्रदूषित करने वाले कारकों पर किसी तरह की रोक लगाने को लेकर प्रयास होते नहीं दिख रहे हैं। इसी वजह से जहां एक ओर नदियां साफ हो रही हैं तो दूसरी ओर डाला जा रहा कचरा उन्हें फिर से गंदा भी कर रहा है।

 नदियों में औषधीय गुण फिर आएं इसके लिए किनारों पर औषधीय पेड़ रोपित किये जाएं

जनाओं के बूते देश की नदियों का जल स्वच्छ हो जाएगा? हमारे लिए नदी प्रबंधन का सिद्धांत यह होना चाहिए कि नदी को कोई खराब ही नहीं करें। यदि ऐसा होगा तो नदी को स्वच्छ करने के नाम पर करोड़ों का धन व्यय करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। नदियों में जैव विविधता लौटाने के लिए नदियों के पानी में जैव आॅक्सीजन की मांग घटानी होगी ताकि नदियों को साफ करने वाले जलीय जीव जिंदा रह सकें। नदियों में औषधीय गुण फिर आएं इसके लिए किनारों पर औषधीय पेड़ रोपित किये जाएं। इसके अतिरिक्त खेती और घरों में डिटर्जेंट आदि में इस्तेमाल हो रहे खतरनाक रसायन और कीटनाशक से नदियों को बचाना होगा। अस्तित्व के लिए जूझ रही नदियों को जीवित नदी का दर्जा देने से अधिक जरूरी है उन्हें जीवित रखना। यह काम केवल खानापूर्ति से नहीं होगा बल्कि इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति व ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत है।

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