चौधराहट खत्म, कृषि कर्ज के रास्ते हुए साफ

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वित्त मंत्री ने बजट भाषण में की सहकारी बैंकों के मर्ज की घोषणा

  • सहकारी बैंक मर्जसहकारिता लहर के अच्छे दिन की संभावना, कर्मचारियों में खुशी, किसानों ने दी मिली-जुली प्रतिक्रिया

भटिंडा(अशोक वर्मा)। पंजाब सरकार पंजाब द्वारा विभिन्न जिलों में सहकारी बैंकों को मर्ज करके एक बैंक बनाने के फैसले से सहिकारिता लहर के अच्छे दिन आने की संभावना बन गई है। सरकार का यह फैसला सहकारी बैंकों व किसानों के लाभ वाला तथा चौधर करने वालों के लिए झटका माना जा रहा है। इस संबंधी घोषणा वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल द्वारा अपने बजट भाषण दौरान की गई।

सरकार की इस घोषणा के बाद सहकारी सभाओं के कर्मचारी खुश हैं, जबकि किसानों की मिलीजुली प्रतिक्रिया सामने आई है। वर्णनीय है कि पंजाब में सरकार द्वारा 20 जिलों में सहकारी बैंक स्थापित किए हुए हैं, जिनके द्वारा सहकारी सभाओं के माध्यम से किसानों को कर्ज दिया जाता है। प्रत्येक जिले में बैंक का बोर्ड आॅफ डारेक्टरर्स अलग होता है।

जिला स्तर पर स्थित केन्द्रीय सहकारी बैंकों के चेयरमैन, उप चेयरमैन व प्रबंधकीय डायरेक्टर का चुनाव डायरेक्टर्स द्वारा किया जाता था। आम तौर पर चेयरमैन व उप चेयरमैन सियासी व्यक्ति होते थे। बाद में सरकार ने सहकारी बैंकों से सियासी लोगों की छुट्टी करके प्रत्येक जिले में एमडी लगा दिए थे। पता चला है कि अब राज्य स्तर पर एमडी अथवा चेयरमैन नियुक्त किए जाने हैं।

बाकी ढांचा भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तरह ही बनाया जाना है। बैंक स्टाफ की रेश्नेलाईजेशनभी होगी, जिससे स्टाफ की दिक्कत घटेगी। हर जिले पर पड़ रहा वेतन व भत्तों का बड़ा भार खत्म हो जाएगा। सूत्र बताते हैं कि आॅन लाईन होने से भटिंडा जिले की तरह घपलों की संभावना नहीं रहेगी।

सरकार की दलील

पंजाब सरकार का प्रतिक्रम है कि बड़े लोगों के साथ मुकाबला करने व ग्रामीण कर्ज क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए सभी 20 जिला सहकारी बैंकों को पंजाब सहकारी बैंक में मिला दिया गया है। इस तरह सहकारी बैंकों की सीआरएआर जो 9 से 10 फीसदी है, में सुधार होगा। इससे किसानों को 8 से 10 हजार करोड़ रुपये का कर्ज देने के लिए ब्रांचों को आॅनलाईन किया जाएगा। सरकार मुताबिक इस फैसले से सहकारी सभाओं के कामकाज में पारदर्शिता व कुश्लता आएगी।

देर से उठाया सही कदम: सहकारी नेता

पंजाब राज्य ग्रामीण सहकारी सभाएं यूनियन फिरोजपुर डिवीजन के अध्यक्ष जसकरन सिंह कोटशमीर ने इस घोषणा की सराहना करते हुए कहा कि देर से ही सही, लेकिन यह सही कदम है। इससे जिला हैडक्वार्टरों पर होती मन मानियों पर रोक लगेगी। जिला भटिंडा में तो सहकारी बैंकों द्वारा कृषि कर्ज देने से हाथ पीछे खींचा जा रहा था। अब किसानों को खुले दिल से सहकारी कर्ज मिलने की उमीद जग गई है।

यदि सरकार ने फैसला किसान हितों के लिए लिया है तो वह सारहना करता है और यदि खिलाफ हुआ तो विरोध किया जाएगा।

काका सिंह कोटड़ा महासचिव भाकियू (सिद्धूपुर)

अकसर कर्ज पर बंदिशों के कारण ही होता है विवाद

सहकारी बैंक के एक अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखते हुए बताया कि कई राज्यों में मर्ज के सहकारी बैंक आर्थिक पक्ष से मजबूत हुए हैं। सभी जिलों की एक सामान नीति होने से मनमर्जी से कर्ज लेने पर रोक भी नहीं लगाई जा सकेगी। सूत्रों के मुताबिक भटिंडा जिले में कर्ज पर लगाई गई बंदिशों के कारण ही अकसर विवाद खड़ा होता है।

बैंक सहकारी सभाओं के माध्यम से जो कर्ज किसानों को देती हैं, उस पर बयाज सिर्फ 7 फीसदी है। ‘गुड पे मास्टरों’ को नाबार्ड स्कीम तहत 3 फीसदी की छूट मिल जाती है। इस लिए किसान सहकारी बैंक को तरजीह नहीं देते। पक्ष जानने के लिए सहकारी बैंक भटिंडा के एमडी जगदीश सिंह सिद्धू का मोबाइल मिलाया गया, लेकिन उनका मोबाइल पहुंच से बाहर आने के कारण बात नहीं हो सकी।

यह भी याद रहे

याद रहे कि सहकारी बैंक मर्ज का फैसला गत अकाली-भाजपा सरकार द्वारा लिया गया था। सरकार ने पंजाब को-आॅपरेटिव सोसायटी एक्ट 1961 में शोध करके सहकारी बैंकों के प्रबंधकीय डायरेक्टरों की नियुक्ति भी बैंकिंग, मैनेजमैंट व वित्तीय क्षेत्र के विशेषज्ञों में से करने की मंजूरी दी थी।

तब दलील दी गई थी कि भारतीय रिजर्व बैंक ने केन्द्रीय सहकारी बैंकों को लाईसेंस देने के लिए यह विधि तैयार की है, जिसे ना मानने वालों को नाबार्ड की तरफ से किया जाता फाईनांस प्रभावित हो सकता है। इस लिए प्रबंध में कुशलता लाना जरूरी हो गया है।उस समय सियासी नफे नुक्सान को देखते हुए फैसले को तत्कालीन सरकार ने टाल दिया था, किन्तु नई कांग्रेस सरकार ने इस प्रक्रिया को लागू कर दिया।

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