भूख से मौत और अन्न की बर्बादी

Death,  hunger, food,  wastage

भूख से न हो किसी की मौत उठाए जाएंगे विशेष कदम

रीता सिंह

चंद रोज पहले झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले के मंगरगड्डी गांव में 58 वर्षीय महिला सावित्री देवी और चतरा जिले में 45 वर्षीय मीना मुसहर की भूख से तड़पकर मौत रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार और अधिक पैदावार के बावजूद भी भुखमरी का संकट टला नहीं हैं। गत वर्ष सितंबर माह में भी इसी राज्य के सिमडेगा जिले के करीमती गांव में 11 वर्षीय संतोषी और धनबाद में झरिया थाना क्षेत्र में 40 वर्षीय रिक्शा चालक की भूख से मौत हुई थी।

तब उम्मीद जताई गई था कि ऐसी हृदयविदारक घटनाओं से राज्य सरकार सबक लेगी और भविष्य में किसी की भूख से मौत न हो इसके लिए ठोस पहल करेगी। लेकिन सावित्री देवी और मीना मुसहर की मौत ने पुन: रेखांकित किया है कि राज्य सरकार भुखमरी को लेकर गंभीर नहीं है। हालांकि राज्य सरकार द्वारा कहा गया है कि भूख से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है।

बहरहाल सच क्या है यह कहना तो मुश्किल है लेकिन गौर करें तो देश में भूख से मौत की यह कोई पहली या आखिरी घटना नहीं है। देश के विभिन्न राज्यों में पहले भी भूख से होने वाली मौत सत्ता और सिस्टम की खामियों-नाकामियों को उजागर कर चुकी है। भारत किस कदर भुखमरी का शिकार है, इसी से समझा जा सकता है कि 2015 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत में हर वर्ष 3000 से अधिक लोगों की मौत भुखमरी से होती है।

मरने वालों में सर्वाधिक संख्या बच्चों की होती है। याद होगा गत वर्ष दुनिया भर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइएफपीआरआइ) की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ कि एशियाई देशों में भारत की स्थिति बस पाकिस्तान और बांग्लादेश से ही बेहतर है। चीन, नेपाल और म्यांमार जैसे पड़ोसी देश भारत से बेहतर स्थिति में हैं।

भुखमरी से निपटने का कोई ठोस रोडमैप नहीं

संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट से भी उद्घाटित हुआ है कि विश्व में भुखमरी के शिकार लोगों की तादाद कम होने के बजाए लगातार बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में 77 करोड़ लोग भूख पीड़ित थे जो 2016 में बढ़कर 81 करोड़ हो गए। इसी तरह 2015 में अत्यधिक भूख पीड़ित लोगों की संख्या 8 करोड़ और 2016 में 10 करोड़ थी, वह 2017 में बढ़कर 12.4 करोड़ हो गयी है। यह आंकड़ा रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि संयुक्त राष्ट्र समेत अन्य वैश्विक संस्थाओं के पास भुखमरी से निपटने का कोई ठोस रोडमैप नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो संवेदनहीनता के कारण भूख और कुपोषण की समस्या लगतार गहरा रही हैं।

भुखमरी के शिकार अधिकांश लोग विकासशील देशों में रहते हैं

बिडंबना यह है कि अगर इस पर काबू नहीं पाया गया तो 2035 तक दुनिया की आधी आबादी भूख और कुपोषण की चपेट में होगी। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भुखमरी के शिकार अधिकांश लोग विकासशील देशों में रहते हैं और इनमें से भी सर्वाधिक एशिया और अफ्रीका में रहते हैं। और इसमें भी सर्वाधिक संख्या भारतीयों की ही है। गौर करें तो भुखमरी के लिए ढ़ेर सारे कारण हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण अन्न की बर्बादी है।

देश को  अन्न की बर्बादी से तकरीबन 50 हजार करोड़ की चपत लगती

भारत की ही बात करें तो अन्न बर्बाद करने के मामले में यह दुनिया के संपन्न देशों से भी आगे है। आंकड़ों के मुताबिक देश में हर साल उतना अन्न बर्बाद होता है जितना ब्रिटेन उपभोग करता है। भारत में कुल पैदा किए जाने वाले भोज्य पदार्थ का 40 प्रतिशत बर्बाद होता है। अर्थात हर साल भारत को अन्न की बर्बादी से तकरीबन 50 हजार करोड़ रुपए की चपत लगती है। साथ ही बर्बाद भोजन को पैदा करने में 25 प्रतिशत स्वच्छ जल का इस्तेमाल होता है और साथ ही कृषि के लिए जंगलों को भी नष्ट किया जाता है।

बर्बाद हो रहे भोजन को उगाने में 30 करोड़ बैरल तेल की भी खपत

इसके अलावा बर्बाद हो रहे भोजन को उगाने में 30 करोड़ बैरल तेल की भी खपत होती है। यही नहीं बर्बाद हो रहे भोजन से जलवायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। उसी का नतीजा है कि खाद्यान्नों में प्रोटीन और आयरन की मात्रा लगातार कम हो रही है। खाद्य वैज्ञानिकों की मानें तो कार्बन डाइ आॅक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूं, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान में प्रोटीन की कमी होने लगी है।

आंकड़ों के मुताबिक चावल में 7.6 प्रतिशत, जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूं में 7.8 प्रतिशत और आलू में 6.4 प्रतिशत प्रोटीन की कमी दर्ज की गयी है। अगर कार्बन उत्सर्जन की यही स्थिति रही तो 2050 तक दुनिया भर में 15 करोड़ लोग इस नई वजह के चलते प्रोटीन की कमी का शिकार हो जाएंगे।

2050 तक भारतीयों के प्रमुख खुराक से 5.3 प्रतिशत प्रोटीन हो जाएगा गायब

उल्लेखनीय है कि यह दावा हार्वर्ड टीएच चान स्कूल आॅफ पब्लिक हेल्थ ने अपनी रिपोर्ट में किया और यह एनवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में प्रकाशित हुआ। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारतीयों के प्रमुख खुराक से 5.3 प्रतिशत प्रोटीन गायब हो जाएगा। इस कारण 5.3 करोड़ भारतीय प्रोटीन की कमी से जूझेंगे। अगर भोज्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा में कमी आयी तो भारत के अलावा उप सहारा अफ्रीका के देशों के लिए भी स्थिति भयावह होगी।

इसलिए कि यहां लोग पहले से ही प्रोटीन की कमी और कुपोषण से जूझ रहे हैं। बढ़ते कार्बन डाइआक्साइड के प्रभाव से सिर्फ प्रोटीन ही नहीं आयरन कमी की समस्या भी बढ़ेगी। दक्षिण एशिया एवं उत्तर अफ्रीका सहित दुनिया भर में पांच वर्ष से कम उम्र के 35.4 करोड़ बच्चों और 1.06 महिलाओं के इस खतरे से ग्रस्त होने की संभावनाएं हैं।

इसके कारण उनके भोजन में 3.8 प्रतिशत आयरन कम हो जाएगा। फिर एनीमिया से पीड़ित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी। यूनाइटेड नेशन के फूड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं के बावजूद भी भारत में पिछले एक दशक में भुखमरी की समस्या में तेजी से वृद्धि हुई है।

 विश्व बैंक ने कुपोषण की तुलना ‘ब्लैक डेथ’ नामक उस महामारी से की है

देश में आज भी 30 करोड़ लोग हर रोज भूखे पेट सोने को मजबूर हैं जबकि सरकारी गोदामों में हर वर्ष हजारों करोड़ रुपए का अनाज सड़ जाता है। अगर गोदामों के अनाजों को गरीबों में वितरित किया जाए तो भूख और कुपोषण से निपटने में मदद मिलेगी। गौरतलब है कि विश्व बैंक ने कुपोषण की तुलना ‘ब्लैक डेथ’ नामक उस महामारी से की है जिसने 18 वीं सदी में यूरोप की जसंख्या के एक बड़े हिस्से को निगल लिया था।

भारत में कुपोषण का दर लगभग 55 प्रतिशत है

विश्व बैंक के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में कुपोषण का दर लगभग 55 प्रतिशत है जबकि उप सहारीय अफ्रीका में यह 27 प्रतिशत के आसपास है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में हर साल भूख और कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है।

दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। एसीएफ की रिपोर्ट बताती है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है वैसे पूरे दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिली है। अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार भूख और कुपोषण से निपटने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन का खाका तैयार कर चुकी है जिसके तहत महिलाओं और बच्चों को पूरक पोषण दिया जाना सुनिश्चित हुआ है।

 

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