बाघों की मृत्यु व लापरवाही

मध्य प्रदेश में एक महीने में तीन बाघों की मृत्यु होना चिंता का विषय है। देश में सबसे अधिक बाघों वाला राज्य मध्य प्रदेश है, जहां 500 से अधिक बाघ हैं। कई बाघों के तो शव भी गले-सड़े हुए मिले हैं जिससे यह स्पष्ट है कि लॉकडाऊन में बाघों की सही तरीके से संभाल नहीं हो रही है। सबसे अधिक मौतें बांधवगढ़ नेशनल पार्क में हुई हैं। बाघ प्राकृति का श्रंगार हैं जिन्हें जीवित रखना आवश्यक है। नि:संदेह लॉकडाउन में व्यक्ति जीवन को प्राथमिकता दी जा रही है लेकिन पशु-पक्षी भी इस कुदरत का हिस्सा हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।
विगत वर्षों में केंद्र व राज्य सरकारों ने बाघों को बचाने के लिए विशेष मुहिम चलाई थी। बाघों की खाल की तस्करी होने के कारण इस दुर्लभ जानवर की प्रजाति पर संकट मंडराने लगा था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाघ के कारण ही भारत की विशेष पहचान है। भारत सबसे अधिक बाघों वाला देश है। दुनिया भर में 6000 के करीब बाघ हैं। पिछले साल तक भारत में 2967 बाघ थे। यह केंद्र व राज्य सरकारों की हिम्मत थी कि पिछले सालों में बाघा की संख्या में 33 प्रतिशत विस्तार हुआ है, इसीलिए अब फिर उन राज्यों की जिम्मेवारी बनती है। जहां बाघों की सैंचुरी/ पार्क बने हुए हैं, यह पार्क पर्यटन उद्योग को भी प्रफुल्लित करते हैं, विश्व भर के पर्यटक व विशेष रूप से फोटोग्राफर इन पार्क में आकर बाघों की तस्वीर को कैमरे में कैद कर दुनिया भर में पहुंचाते हैं। सरकार नेशनल पार्क की संभाल करने के लिए पूरी निगरानी करे। लॉकडाउन के दौरान जो अधिकारी व कर्मचारी ड्यूटी पर हैं, यह उनकी जवाबदेही बनती है।
नि:संदेह लॉकडाउन ने जनजीवन को प्रभावित किया है लेकिन देश को चलाने के लिए जिस प्रकार की सेवाओं को जारी रखा गया उसे बरकरार रखने व निगरानी करने के लिए ढांचा भी दुरुस्त होना चाहिए। मंत्री, विधायक और उच्च सरकारी विभाग अपनी जिम्मेदारी समझें। भले ही विश्व भर में बाघों की कम संख्या हो रही है। जनसंख्या के कारण जलवायु परिवर्तन भी हो रहा है लेकिन कम से कम इनके गिनती कम होने का कारण मानवीय गलती या प्रशासनिक ढांचें की कमजोरियां नहीं होनी चाहिए।

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