यह सन् 1967 की बात है। उन दिनों मेरे पांव में फोड़ा निकला हुआ था, जिसके कारण मैं चलने-फिरने में असमर्थ था। पूजनीय परम पिता जी उस दिन सत्संग फरमाने के लिए रामां मंडी होेते हुए गांव भागी वांदर पधारे। मुझे गांव के कुछ सत्संगियों ने बताया कि पूजनीय परम पिता जी (Satguru ji’s Mercy) अपने गांव से होकर जाएंगे। यह खबर सुनकर मैं वैराग्य में आ गया और रोने लगा।
अंदर से मुझे ख्याल आया कि पूजनीय परम पिता जी मुझसे मिलने जरूर आएंगे। अगर बेटा बीमार हो तो उसका बाप उसे मिले बिना कैसे जा सकता है। यह सोचकर मैं और फूट-फूट कर रोने लगा। उस समय के दु:ख का अहसास शायद मेरे सतगुरू के सिवाय और किसी को नहीं था। सत्संग की समाप्ति के बाद पूजनीय परम पिता जी की जीप अचानक हमारे घर के पास आकर रूकी। हमारे सारे परिवार की खुशियों की कोई सीमा नहीं रही। पूजनीय परम पिता जी पलंग पर विराजमान हो गए। मैं उनके चरणों में बैठकर रोने लगा।
पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा रो मत। बता, क्या तकलीफ है?’’ मैंने अपने फोड़े के बारे में पूजनीय परम पिता जी को बताया। फिर मैंने कहा, ‘‘पिता जी, आपके दर्शन हो गए हैं, अब सारी तकलीफ दूर हो गई है।’’ मेरे पैर पर निकला हुआ फोड़ा कुछ दिनों में अपने आप ही ठीक हो गया। इस प्रकार दयालु दातार जी (Satguru ji’s Mercy) ने मेरी तड़प को देखते हुए हमारे घर पधारकर दर्शन दिए व भयंकर रोग से मुक्ति दिलाई।
श्री इन्द्र सिंह, जज्जल, बठिंडा (पंजाब)
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