सन् 1958, मलोट (पंजाब), एक बार पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज (Satguru ji) मलोट आश्रम में पधारे हुए थे। सत्संग सुनने के लिए भक्त ठाकर दास भी वहां पहुंचा। सत्संग सुनकर दिल में खुशी का अहसास हुआ तथा रात की मजलिस में भी वह आश्रम में मौजूद था। शब्द-वाणी व राम-नाम की चर्चा के दौरान एक भक्त ने भजन गाया-‘मेरी नैया पड़ी मझधार में, सतगुरू बेड़ी को पार लंघाना।’
आप जी ने इस भजन की व्याख्या करते हुए फरमाया, ‘‘सतगुरू की यादों की चर्चा करना ऊंचा सुमिरन है। सतगुरू का जिक्र और फिक्र बहुत अच्छा है।’’ आगे आप जी ने फरमाया कि, ‘‘हर रोज चार भक्त इक्ट्ठे बैठकर नामचर्चा करें।’’ रात दो बजे मजलिस की समाप्ति के समय बेपरवाह जी ने ठाकर दास की तरफ दृष्टि डालते हुए पूछा, ‘‘लड़के तू क्या करता है?’’ वह भक्त बोला बाबा जी, नल लगाने का काम करता हूं। शहनशाह जी ने मलोट आश्रम के आंगन में नल लगाने की इच्छा प्रकट की।
ठाकर दास ने नल का सामान बेचने वाले दुकानदार से सामान लाकर बताए गए स्थान पर नल लगाना शुरू कर दिया। ठाकर दास को बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि दिन में कई बार आप जी के दर्श-दीदार हो जाते और रात की मजलिस में मालिक की चर्चा सुनने को भी मिलती। नलका लगाने का काम करते समय अचानक लोहे की पाईपें धरती में धंस गई। मिस्त्री ठाकर दास उन फंसी हुई पाईपों को निकालने के लिए लगातार जोर लगाता रहा। शाम हो गई थी पर वह पाईपें निकल नहीं रही थी।
बेपरवाह जी ने यह सब देखा और मिस्त्री को फरमाया, ‘‘अब छोड़ दे, जोर न लगा, सुबह देखना।’’ अगले दिन फिर से उसने काम शुरू कर दिया, पाईपें धरती में अपने आप ही जाने लगीं और नलका लग गया। सामान बेचने वाला दुकानदार आया और सारा हिसाब किताब करके पैसे ले गया। बेपरवाह जी ने ठाकर दास की तरफ इशारा करते हुए फरमाया, ‘‘नल तो इस लड़के ने लगाया है, मेहनत इसने की है और पैसे वो दुकानदार ले गया।’’
शहनशाह जी ने भक्त ठाकर दास को नई पगड़ी दात के रूप में दे दी और खुशियां प्रदान की। ठाकर दास के मन में विचार आया कि क्यों न वह नया नल लगाने का सामान खरीदे और अपना काम शुरू करे। वह शहनशाह जी से इस नए काम की मंजूरी लेने के लिए सरसा दरबार आया। उस समय बेपरवाह जी तेरावास में कुछ सेवादारों के साथ बैठे हुए थे। आप जी इन सेवादारों को समझा रहे थे कि जब कोई सुमिरन के लिए त्याग करता है तो काल उसको दुनिया में दोबारा फंसाने की कोशिश करता है।
उस वक्त बहुत ही होशियारी की जरूरत होती है। मन को जिंदाराम के साथ रखो। मौका मिलने पर उस भक्त ने बेपरवाह जी के सामने अपना नया काम शुरू करने की बात रखी। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘सामान ले आओ, हमनें भी तेरे से यहां दरबार में नल लगवाना है।’’ उसने दिल्ली से सामान मंगवाया तथा सरसा आश्रम में नल लगाया परंतु नल में पानी नहीं निकला।
बार-बाार प्रयास करने पर भी सफलता हासिल नहीं हुई। देर शाम काम को छोड़ दिया और सोचा कि सुबह देखेंगे। अगले दिन सुबह ठाकर दास ने देखा कि पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज एक हाथ में डंगोरी थामे हुए हैं तथा दूसरे हाथ से स्वयं नल चला रहे हैं। पानी आ रहा है और नल चलाते हुए फरमा रहे हैं , ‘‘देखो, मिस्त्री ने कैसा बढ़िया नल लगाया है।’’
भक्त ठाकर दास का विचार था कि नल के लगवाने की मजदूरी न लूं परंतु बेपरवाह जी ने भक्त ठाकर दास को बुलाकर पूरी मजदूरी देते हुए नई पगड़ी पहनाई और खुशियां देते हुए फरमाया, ‘‘ठाकर दास अपने पीछे-पीछे फिरता है, इसको यहां आश्रम में एक कमरा भी देंगे।’’ आगे फरमाया, ‘‘तुझे बुढ़ापे में खूब सुख मिलेगा।’’ इस तरह बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के वचन पूरे हुए क्योंकि ठाकर दास ने आश्रम में सत् ब्रह्मचारी सेवादार के रूप में सेवा की और सुख प्राप्त किया।
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