15 दिसंबर 1978 भट्ठे वाले खेत में नरमा चुनने का आज आखिरी दिन था। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने हुक्म फरमाया, ‘‘बेटा! आज सारा नरमा चुनकर काम समाप्त करना है।’’ बस! फिर क्या था, अपने मुर्शिद-ए-कामिल का हुक्म पाकर सभी सेवादार, बहन-भाई तुरंत भट्ठे वाले खेत में पहुंच गए। उस दिन सेवादारों में बहुत भारी उत्साह देखने को मिला। थोड़ी देर बाद मेहरबान दातार जी भी सीधे सेवादारों के पास आ गए। सभी सेवादारों ने ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया। प्या
रे सतगुरू जी ने सबको ‘बल्ले-शावा’ के वचनों से प्रेम भरा आशीर्वाद दिया और सारे खेत में चक्कर लगाकर उन्हें अपने पवित्र दर्शनों से निहाल किया। जब सतगुरू जी वहां से वापिस दरबार की तरफ आ रहे थे, तो छोटी नहर की पटरी के साथ प्रेमी परिवार की एक छोटी सी बच्ची जोर-जोर से कहने लगी, ‘पिता जी आ गए, पिता जी आ गए।’ इस पर उस सारे परिवार ने आगे आकर अपने प्यारे दाता जी के दर्शन किए तथा ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ नारा लगाया। इस पर खुद खुदा थोड़ी देर के लिए वहां पर रूके और उस परिवार की कुशलता पूछी और अपना भरपूर आशीर्वाद प्रदान करके वापिस आश्रम में आ गए। थोड़ी देर बाद जो साध-संगत भट्ठे वाले खेत पर सेवा करने गई हुई थी, वह भी अपना सारा काम पूरा करके आश्रम में आ गई। यह जानकर पूज्य शहनशाह जी अत्यंत प्रसन्न हुए और सभी सेवादारों को वहां अपने पास बुलाकर सेब और केले का प्रसाद देते हुए अत्यंत खुशियां प्रदान की।
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