Shah Mastana Ji Maharaj : सन् 1958, चक्क नारायण सिंह (राजस्थान)
एक बार की बात है कि बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज राजस्थान के छोटे से गांव चक्क नारायण सिंह में बलवीर सिंह के घर पधारे। बलवीर सिंह के घर रोजाना सारी साध-संगत को लंगर खिलाया जाता था। साध-संगत हर रोज बढ़ जाती। बलवीर सिंह के परिवार की माता-बहनें सतगुरू जी के पधारने की खुशी में लंगर खुद ही बना लेती।
घर में एक बोरी आटा पहले ही पड़ा था तथा बोरी से आटा निकालकर सभी के लिए लंगर भोजन बनाया जाता। पूज्य शहनशाह जी ने सत्संग सुनने आई साध-संगत को नेकी करने का उपदेश देते हुए फरमाया, ‘‘अपने अंदर वाले जिंदाराम की हर वक्त वाह-वाह करो और भजन-सुमिरन करो जिससे सुख मिलता है।’’ एक भक्त के पूछने पर कि दुनिया में रहते हुए हमें कैसे पता चले कि कौनसी चीज अच्छी है और कौनसी बुरी है। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘तुमको कसौटी बताते हैं जिसको देखकर सतगुरू भूले, वोह माड़ी(बुरी) चीज है।’’
बलवीर सिंह का पूरा परिवार साध-संगत की सेवा में जुटा हुआ था। आप जी शाबाशी देते हुए मधुर वाणी से ‘‘बल्ले-बल्ले’’ भक्तों को फरमाते तो सभी को खुशियों के भंडार मिल जाते। दिल प्रसन्नता से खिल जाता। पांव थिरकने लगते। सारी थकान तथा नींद भाग जाती। बूटा सिंह की छोटी बच्ची हरभजन कौर अपनी मां की गोद में थी। वह सार्इं जी से नामशब्द लेने की जिद करने लगी। बाबा जी ने उसको एक रूपये का नोट दिया, जिसे बच्ची ने फैंक दिया और कहा कि वह तो नाम ही लेगी। पूजनीय शाह मस्ताना जी ने हंसते हुए फरमाया, ‘‘बेटी तुझे नाम जरूर देंगे, यह नोट भी ले ले।’’
आप जी 22 दिनों तक गांव चक्क में ठहरे। फिर भी लंगर के लिए एक बोरी आटे की समाप्ति नहीं हुई। बलवीर सिंह की धर्मपत्नी ने इस बेपरवाही रहमत का वर्णन अपने पति से किया। उसने बताया कि इतने दिन हो गए सभी के लिए रोटियां पकाते हुए, एक बोरी आटा खत्म ही नहीं हुआ। उसने यह बात पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से कह दी। वापिस दरबार आते हुए शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने मुस्कुराते हुए फरमाया, ‘‘अब हो जाएगा। इतने दिन पर्दा था।’’ इस तरह पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूरी साध-संगत को भरपूर नूरानी स्नेह बांटा। आप जी जहां भी जाते अपनी रहमतों से परमेश्वर के प्रति लोगों की आस्था को दृढ़ करते। Shah Mastana Ji Maharaj