भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में स्थिरता का तात्पर्य है कि बैंक ने वास्तविकता को समझ लिया है। मूल्यों में वृद्धि हो रही है, अर्थव्यवस्था में मंदी आ रही है, बचत प्रभावित हो रही है इसलिए यह निर्णय आंशिक रूप से सही है। सही निर्णय यह होता कि दरों में वृद्धि की जाती, ऋण लेने वालों की तुलना में केन्द्रीय बैंक जमाकतार्ओं के प्रति अधिक उत्तरदायी है। वर्ष 2008 से ऋण लेने वालों की मदद करने वाले उपायों के कारण बैंक और लोगों की बचत प्रभावित हुई और इससे अर्थव्यवस्था तथा बचतकतार्ओं को सहायता नहीं मिली।
शशिकांत द्वारा पिछले दिसंबर में भारतीय रिजर्व बैंक के गर्वनर का कार्यभार सभालने के बाद मौद्रिक नीति समिति की प्रत्येक बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में पांच बार कटौती की है और यह कटौती 135 मूलांकों की हुई है। हमारे देश में इस तरह के निर्णयों को पश्चिमी देशों के उदाहरण देकर उचित ठहराया गया किंतु इससे कोई मदद नहीं मिली और ऐसे निर्णय लेने में फ्रांस, जर्मनी, यूरोप, आस्ट्रेलिया और अन्य देशों में उंची बैंक दरों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन को ध्यान में नहीं रखा गया।
इन देशों में वर्ष 2015 के बाद इन विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक मोड़ भी लिया है। दिसंबर 2018 तक फा्रंस में बैंक दरों के विरुद्ध प्रदर्शन के चलते राष्ट्रपति मैक्रोन को घोषणा करनी पड़ी कि 2019 में बैंक दरों में वृद्धि नहीं की जाएगी। किंतु अब फ्रांस में पेंशन सुधारों को लेकर विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं और जिसके चलते वहां जनजीवन ठप्प हो गया है और 5 दिसंबर को एफिल टावर तक को बंद करना पड़ा।
भारतीय रिजर्व बैंक ने अक्तूबर में लिए गए अपने निर्णय का कारण इन्हें नहीं बताया। हम जानते हैं कि ऐसे ऋण लेने वालों के कारण बैंकों की गैर-निष्पादनकारी आस्तियां बढ़ी हैं जो सरकारी बैंकों के लिए भारी नुकसान है और जिसके चलते इन बैंकों को बचाने के लिए घाटे में चल रहे बैंकों का विलय करना पड़ा। यूरोप के लोग वहां पर व्याप्त संकट के लिए यूरोपियन केन्द्रीय बैंक को दोषी मान रहे हैं।
2007 के अमरीकी बैंंिकंग संकट के बाद अब लोग फं्रास में ऐसे संकट की आशंकाओं के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत को इससे सबक लेना चाहिए क्योंकि यहां एक दशक से अधिक समय तक उधार लेने वालों को दी गयी रियायतों के कारण सभी जमाकर्ता प्रभावित हुए हैं। केवल विजय माल्या या नीरव मोदी ने बैंकों को प्रभावित नहीं किया अपितु ऐसे अनेक सैकड़ों लोग हैं। बैंक ऐसे लोगों को ऋण देते समय भूल गए कि वे करोड़ों लोगों की जमा के रक्षक हैं और उन्हें लोगों की बचत से खिलवाड़ करने का कोई हक नहीं है।
वर्तमान मंदी का कारण बैंकों की फिजूल खर्ची भी है जिसके चलते लोगों को 12 लाख करोड़ रूपए से अधिक का नुकसान हुआ है। बैंकों के विलय के सतही उपाय से केवल यह संकट टला है मिटा नहीं है। एडीएफसी सिक्योरिटी के प्रबंधक निदेशक धीरज रेली के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक बढती मुद्रा स्फीति के बारे में चिंतित है और सकल घरेलू उत्पाद मे वृद्धि की संभावना नहीं है क्योंकि घरेलू और बाहरी मांग कमजोर रही है। इसलिए दरों में कटौती के बजाय सरकार ने छोटी बचतों पर ब्याज दर में कटौती की है।
प्रश्न उठता है कि छोटी बचतों पर ब्याज दरों में कटौती क्यों की जाए? पश्चिमी देशों में भी इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। इसका कारण यह है कि जी-20 ने इसका सुझाव दिया था। यूरोप में यूरोपीय केन्द्रीय बैंक, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं और विश्व के सभी देशों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। सभी सरकारों को यह देखना चाहिए कि बैंकों का प्रबंधन सही हाथों में है या नहीं। यूरो जोन में बेरोजगारी दर 11 प्रतिशत है और वृद्धि दर न के बराबर है। स्पेन और यूनान की स्थिति खराब है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने देश में अनेक समस्याओं के बावजूद बैंकिंग प्रणाली की रक्षक के रूप में कार्य किया है। भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता को बचाया जाना चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक पिछले एक वर्ष से लीक से हट रहा है। इसका कारण न केवल संकटग्रस्त क्षेत्रों जैसे आवास क्षेत्र की मदद करना है अपितु देश की विततीय व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की रक्षा भी करना है।
इसका कार्य बचत और निवेश को बढावा देना, आयात-निर्यात पर नियंत्रण रखना, व्यावसायिक चक्र का प्रबंधन करना, मांग का विनियनम करना, रोजगार सृजन करना, अवसंरचना विकास में सहायता करना, प्राथमिक क्षेत्र को और अधिक ऋण देना तथा बैंकिंग क्षेत्र का प्रबंधन और विकास है। कुल मिलाकर इसके कार्याे मे अर्थव्यवस्था के किसी भी पहलू को नहीं छोड़ा गया है किंतु हाल के वर्षों में इसने बचत दर में गिरावट पर ध्यान नहीं दिया।
किसी भी देश का विकास उसकी बचत दर पर निर्भर करता है। स्वतंत्रता के बाद के दो दशकों में विकास का कारण यह रहा है कि 25 पैसे से लेकर 5 रूपए तक की बचत को भी बढावा दिया गया। 31 मार्च 2008 को बचत दर 37.5 प्रतिशत थी जो घटकर 21 मार्च 2018 को 30.8 प्रतिशत रह गयी है। छोटा निवेश आज भी विकास के वित्त पोषण का एक प्रमुख स्रोत है किंतु इसके अभाव में विकास दर में भी गिरावट आ रही है।
म्युचुल फंडों को बढावा देना और उसे ईक्विटी फंडों से जोड़ने को भी विदेशी निवेशकों द्वारा अल्पकालिक लाभ को अपने देश भेजने के उपाय के रूप में देखा गया है। अनेक कंपनियों और बैंकों के म्युचुल फंडों से छोटे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है और लोगों की बचत बर्बाद हुई है। देश में पोंजी स्कीम भी बढी है। पिछले दो दशकों में इन स्कीमों के बढने का कारण बैकों द्वारा बचत को हतोत्साहित करना रहा है और इसका लाभReserve Bank of India, यूरो संकट की तरह मंडराता खतरा | पोंजी फर्मों ने उठाया है। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में निवेश के बजाय बचत पर बल दिया गया है और उसमें कहा गया है कि हालांकि वृद्धि दर का संबंध निवेश दर में बढोतरी से है किंतु यह बढती बचत दरों से अधिक घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है।
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर सी रंगराजन के अनुसार घरेलू बचतों में काफी समय से गिरावट आ रही है और इसीलिए उन्होंने आर्थिक मंदी को ढांचागत कहा है हालांकि इसके कुछ सक्रिय कारण भी हैं इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार को इस पर ध्यान देना होगा। लोगों को सड़क पर उतरने से रोकने के लिए बचत दर में वृद्धि को बढावा देने और मंदी को रोकने के लिए साठ के दशक की तरह अभियान चलाना होगा।
-शिवाजी सरकार
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