इस वैधानिक चेतावनी के बावजूद कि धूम्रपान अथवा तंबाकू सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, विश्व में तंबाकू पीने व सेवन करने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर वर्ष तकरीबन 6 खरब से ज्यादा सिगरेट फूंक दी जाती है। सिगरेट पीना महज शौक नहीं, बल्कि ऐसा न करना शान के खिलाफ समझा जाने लगा है।
यही कारण है कि विश्व में तंबाकू की 65 से 85 प्रतिशत तक खपत केवल सिगरेट के रूप में होती है। एक चौंकाने वाला आकलन यह भी है कि पिछले कुछ वर्षों में सिगरेट पीने वाली महिलाओं की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि देखी गयी है। गौरतलब है कि पुरुषों की तुलना में खासकर महिलाएं अपनी शारीरिक संरचना के कारण धूम्रपान के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। आज स्थिति यह है कि विश्व में हर दस सैकण्ड में एक धूम्रपान करने वाला व्यक्ति तंबाकू से संबंधित किसी न किसी बीमारी से मारा जाता है। यदि यह रफ्तार जारी रही तो असमय मौत की दस सैकण्ड की सीमा घटकर चार या पांच सैकण्ड तक आ सकती है। निश्चय ही यह तथ्य एक भयावह भविष्य की ओर संकेत कर रहा है।
चिकित्सकों की राय में महिलाओं में धूम्रपान की लत फेफड़ों के कैंसर के साथ-साथ स्तन कैंसर को भी जन्म देती है। जो महिला स्तनपान कराती है, उसके रक्त में पाए जाने वाला निकोटिन दूध के जरिये शिशु के शरीर में पहुंच जाता है। फलस्वरूप धूम्रपान करने वाली महिलाओं के बच्चे बुखार व श्वांस संबंधी विकारों से ग्रस्त रहने लगते हैं। कम उम्र में तंबाकू का सेवन करने वाली स्त्रियों में प्रजनन क्षमता का ह्रास तथा डायबिटीज जैसे रोगों के पनपने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। अगर आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पिछले 40 सालों में विकासशील देशों में तंबाकू ग्रसित महिलाओं के मरने का प्रतिशत 2 से बढ़कर 93 तक पहुंच गया। ऐसे में इसकी भयावहता का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
विकासशील देशों में सबसे अधिक धूम्रपान करने वालों की संख्या भारत में है। भारत तंबाकू उत्पादन में विश्व के अग्रणी देशों में है। भारतीय उपमहाद्वीप में सर्वाधिक बीड़ी है। शहरी महिलाओं को छोड़ दें तो हमारे देश में विशेषकर बिहार व उत्तरप्रदेश की ग्रामीण महिलाओं में बीड़ी पीना प्रचलित है। सस्ती व सर्वसुलभ होने के कारण महिलाओं ने बीड़ी को अपना लिया है। शुरुआती दौर में भारतीय ग्रामीण महिलाएं हुक्के में भरकर तंबाकू का सेवन करती थी। धीरे-धीरे इसमें बदलाव आया। संभ्रांत घर की महिलाएं पान अधिक खाती थीं। आज के अति आधुनिक युग में जब सिगरेट के साथ-साथ अनगिनत पान-मसालों का प्रचलन हो गया है। इसके अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार व तंबाकू सेवन से उत्पन्न बीमारियों के जान लेने के कारण भी ग्रामीण महिलाओं में तंबाकू सेवन में कमी आयी है, जबकि कुछ महिलाओं ने इसे एक तरह का पुराना फैशन मानकर नकार दिया है।
दूसरा कारण आर्थिक अक्षमता व सीमित जीवन का भी है। ग्रामीण महिलाएं आज भी लोक लाज के दायरे में कैद हैं, इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकती जैसा कि पुरुष करते हैं। एक अन्य अनुसंधान से पता चला है कि विश्व में चालीस प्रतिशत महिलाएं जहां प्रत्यक्ष धूम्रपान की शिकार होती हैं, वहीं शेष साठ प्रतिशत परोक्ष रूप से इसकी शिकार होती हैं, क्योंकि उन औरतों में जिनके पति धूम्रपान करते हैं, फेफड़े का कैंसर होने की संभावना उन औरतों से तीन गुणा अधिक होती है, जिनके पति धूम्रपान नहीं करते। विकसित देशों में पुरुषों और महिलाओं के सेवन में पचास प्रतिशत और आठ प्रतिशत का फासला अवश्य है, लेकिन फिर भी प्रतिवर्ष पांच लाख के करीब महिलाएं धूम्रपान के कारण मौत के आगोश में समा रही हैं। विकसित एवं विकासशील देशों में महिलाओं के स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट का मुख्य कारण धूम्रपान व नशे की अन्य वस्तुओं का सेवन ही है। बढ़ती धूम्रपान की आदत बेहद चिंताजनक है।
कुलविंद्र कौर