दलाई लामा विश्व में एक तिब्बती धर्मगुरु के रूप में जाने जाते हैं। दलाई लामा को साल 1989 में आज के ही दिन नाबेल का शांति पुरस्कार मिला था। दलाई लामा का वास्तविक नाम ल्हामो धोण्डुप है और उनका जन्म 6 जुलाई साल 1935 को तिब्बत में हुआ था। इनके पिता का नाम चोक्योंग त्सेरिंग और माता का नाम डिकी त्सेरिंग था। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। मात्र दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। इसके लिए दलाई लामा को एक कड़ी परीक्षा से होकर गुजरना पड़ा था और इस प्रकार ल्हामो धोण्डुप 14वें धर्मगुरु दलाई लामा बन गये। ऐसा विश्वास है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर या चेनेरेजिग का रूप हैं जो कि करुणा के बोधिसत्त्व तथा तिब्बत के संरक्षक संत हैं।
साल 1949 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया जिसके बाद साल 1950 में दलाई लामा से तिब्बत के लोगों ने राजनीतिक विरासत संभालने का अनुरोध किया। 29 मई साल 2011 तक दलाई लामा तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष भी रहे। आज भी उन्हें लोग राष्ट्राध्यक्ष मानते हैं लेकिन साल 2011 के बाद इन्होंने अपनी सारी शक्तियां तिब्बत सरकार को दे दी। तिब्बत पर चीन का कब्जा रहता है लेकिन दलाई लामा इसका विरोध करते हैं इसी कारण चीन दलाई लामा के विरोध को दबाने के लिए अक्सर दलाई लामा को अलगाववादी भी करार देता है। दलाई लामा अक्सर भारत आकर यहां विभिन्न विशिष्ट लोगों और सामान्य जनता से भी मिलते हैं जिसका चीन अपने स्तर से हर मुमकिन विरोध करता है। यहां तक कि चीन की सरकारी मीडिया ये दावा भी कर चुकी है कि दलाई लामा भारत के साथ मिलकर देश विरोधी नीतियों को अंजाम देने का प्रयास करते हैं। दलाई लामा को बौद्ध धर्म के प्रचार के अतिरिक्त पूरी दुनिया में शांति के प्रचार-प्रसार और खुशियां बांटने के लिए साल 1989 में आज के दिन शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। दलाई लामा अभी तक शांति और प्रसन्नता के प्रचार-प्रसार के लिए पूरी दुनिया के 65 से भी अधिक देशों की एक से अधिक बार यात्रा कर चुके हैं। साल 1959 से लेकर अभी तक दलाई लामा को 85 से भी ज्यादा पुरस्कार मिल चुके हैं।
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