देश में इस बार फिर धान रोपाई पर ही जोर नजर आ रहा है। खरीफ की अन्य फसलें विशेष रूप से (Coarse Grains) की कृषि को बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नजर नहीं आ रहे। भले ही केंद्र सरकार ने मोटे अनाज की खेती को उत्साहित करने के लिए बजट में राशि आरक्षित रखी और हैदराबाद के रिसर्च सेंटर प्रोत्साहित करने की घोषणा भी की, तमाम प्रयासों के बावजूद किसान मोटे अनाज की खेती करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। यह अच्छी बात है कि कुछ संगठनों और किसानों ने अपने स्तर पर ही प्रयास किए, जिससे मोटे अनाज का कृषि अधीन रकबा तो बढ़ा है, परंतु संतोषजनक नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 5 मई तक 11.44 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज की बिजाई हुई, जोकि विगत वर्ष 10.72 लाख हेक्टेयर थी। यह मामली वृद्धि स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में क्रांतिक्रारी बदलाव लाने के लिए पर्याप्त नहीं। जिस गति से लोग बीमारियों से पीड़ित हैं और उपचार पर खर्च हो रहा है, उसके अनुसार मोटे अनाज की खेती को युद्ध स्तर पर करना चाहिए।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार (Coarse Grains) स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति लाने की क्षमता रखते हैं। पुरात्तन समय में लोग जब गेहूँ नहीं खाते थे तब स्वस्थ रहते थे। अब कीटनाशकों का प्रयोग इतने बड़े स्तर पर हो गया है कि गेहूँ और चावल इंसान के खाने योग्य अनाज नहीं रहे। गेहूँ/चावल की खेती करने से न तो किसानों और न ही दूसरे लोगों को फायदा है, क्योंकि किसान भी कीटनाशकों व अन्य खर्चों पर इतना पैसा खर्च कर देता है कि उसे कुछ बचता ही नहीं। दूसरी तरफ कीटनाशक वाले अनाजों को खाने से लोगों की सेहत बिगड़ रही है, जिसका पैसा वे अस्पतालों में भर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि न तो किसान को फायदा हो रहा है और न ही अन्य लोगों को। केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 को मिलेट्स ईयर घोषित किया हुआ है। सेना, पुलिस और अन्य विभागों के कर्मचारियों की डाइट में मोटे अनाज को शामिल किया जा रहा है।
पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में जहां अस्पताल की गिनती और मरीजों की भीड़ निरंतर बढ़ रही है, यह राज्य (Coarse Grains) की कृषि को बढ़ावा देकर जनता के हित में कारगर कदम उठा सकते हैं। सरकारों को मोटे अनाज की बिजाई के लिए प्रचार करने पर बल देने के साथ-साथ मंडीकरण के व्यापक प्रबंध करने चाहिए। किसानों को सस्ते दामों पर बीज व आसान भाषा में उन्हें जानकारी मुहैया करवानी चाहिए। इसके साथ ही (Coarse Grains) को नई पीढ़ी के साथ जोड़ने के लिए इसके उत्पादों को आधुनिक रूप दिया जाए। उत्पादों की बिक्री के लिए भी सरकारी स्तर पर स्टॉलों का प्रबंध करना चाहिए। जब तक मोटे अनाज को संस्कृति का अंग नहीं बनाया जाता, तब तक इसके प्रयोग व कृषि को बढ़ावा देना संभव नहीं। मोटे अनाज की खेती की खेती प्रफुल्ल्ति होने से जनता की सेहत में सुधार होगा और सरकार का स्वास्थ्य क्षेत्र में आने वाले खर्च भी घटेगा। रोगों के उपचार पर खर्च बढ़ाने से अच्छा है कोई रोगी ही नहीं हो।