How to Grow Millet : की मात्रा के साथ अधिक पैदावार ली जा सकती है। भारत में, यह हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है। बाजरे के दानोें में, ज्वार से अच्छी गुणवत्ता के पोषक तत्व पाये जाते है। बाजरा कम नमी, कम उर्वरता और उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में मिट्टी के लिए एक आदर्श आवरण फसल है। यह रेतीली दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी पैदावार के साथ उत्पन्न होता है। क्योंकि रेतीली मिट्टी में यह उन पोषक तत्वों को जोड़ने का काम करता है, जिन भी पोषक तत्वों की कमी होती है। Cultivate Millet
बुआई की विधि
बाजरे की फसल की बुआई 25 से.मी. की दूरी में पंक्तियों में तथा सीडड्रिल से 1.5-2 सें.मी. दूरी पर करनी चाहिए। इसके लिए 6-8 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त है। बीज को बुवाई से पहले एग्रोसान जीएन अथवा थीरम से उपचारित करना चाहिए। इस खेती के लिए जुलाई का पहला सप्ताह अच्छा होता है। जुलाई के अंत में भी बाजरा की बिजाई की जा सकती है।
भूमि की तैयारी
बाजरे की खेती के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक हैं। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए। बाजरे को कई प्रकार की भूमियोें काली मिट्टी, दोमट, एवं लाल मृदाओें में सफलता से उगाया जा सकता है।
बुवाई का समय
बाजरे की फसल तेजी से बढ़ने वाली गर्म जलवायु की फसल है जो कि 40-75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त होती है। इसमे सूखा सहन करने की अदभुत शक्ति होती है। सिंचिंत क्षेत्रों में गर्मियों में बुवाई के लिए मार्च से मध्य अप्रैल उपयुक्त समय है। जुलाई का पहला पखवाड़ा खरीफ की फसल के लिए उपयुक्त है। दक्षिण भारत में, रबी मौसम के दौरान अक्टूबर से नवंबर तक बुवाई की जाती है।
बाजरे की उन्नत किस्में
अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है कि आप बाजरे की उन्नतशील किस्मों का ही चुनाव करें। बाजरे की उन्नत किस्मों में आई.सी. एम.बी 155, डब्लू.सी.सी.75, आई.सी. टी.बी.8203 और राज-171 प्रमुख हैं।
खाद एवं रासायनिक उर्वरक
फसल के पौधों की उचित बढ़वार के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अत: भूमि को तैयार करते समय बाजरे की फसल के लिए 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इसके पश्चात बाजरे की वर्षा पर आधारित फसल में 40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 40 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। ध्यान रहे उर्वरकों का उपयोग मिट्टी की जांच के आधार पर ही करना चाहिए।
बाजरे के पौधों की निराई-गुड़ाई
बाजरे की फसल को खास निराई-गुड़ाई की जरूरत नहीं होती है, लेकिन फिर भी यदि गुड़ाई की जाए तो पौधों की वृद्धि काफी अच्छी होगी।जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलेगा। यदि खेत में अधिक खरपतवार दिखाई दें तो खरपतवार नाशक दवाइयों का छिड़काव करें। इसके लिए एट्राजिन का इस्तेमाल करना बेहतर होता है।
सिंचाई | Millet Cultivate
बाजरा सामान्य तौर पर वर्षा पर आधारित फसल हैं। बाजरे के पौधों की उचित बढ़वार के लिए नमी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। सिंचित क्षेत्रों के लिए जब वर्षा द्वारा पर्याप्त नमी न प्राप्त हो तो समय समय पर सिंचाई करनी चाहिए। बाजरे की फसल के लिए 3-4 सिंचाई पर्याप्त होती है। ध्यान रहे दाना बनते समय खेत में नमी रहनी चाहिए। इससे दाने का विकास अच्छा होता है एवं दाने व चारे की उपज में बढ़ोतरी होती हैं।
पैदावार
यदि उपरोक्त आधुनिक विधि से बाजरे की फसल ली जाए तो सिंचित अवस्था में इसकी उपज 3 से 4.5 टन दाना और 9 से 10 टन सूखा चारा प्रति हेक्टेयर और असिंचित अवस्था में 2 से 3 टन प्रति हेक्टेयर दाना एवं 6 से 7 टन सूखा चारा मिल जाता है।
बाजरा खाने के फायदे | Millet Cultivate
बाजरे में काफी एनर्जी होती है, जिस वजह से यह ऊर्जा का एक अच्छा स्त्रोत भी है। बाजरा शरीर में एनर्जी को उत्पन्न करता है। यदि आप अपने वजन को घटाना चाहते हैं तो बाजरा खाना आपके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि बाजरा खाने के बाद देर तक पेट भरा हुआ महसूस होता है, जिस वजह से बार-बार भूख नहीं लगती है, और इस वजह से भूख कंट्रोल में रहती है। बाजरा कोलेस्ट्रॉल के लेवेल को भी नियंत्रित करता है, जिससे दिल से जुड़ी बीमारी होने का खतरा काफी हो जाता है। बाजरा का आटा विशेषकर भारतीय महिलाओें के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। भारतवर्ष में ही नहीं अपितु संसार मे महिलाएं एवं बच्चों में लौहतत्व (आयरन) एवं मिनरल(खनिज लवण) की कमी पायी जाती है। Millet Cultivate
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