पंजाब के कुछ किसान संगठनों ने गेहूँ-धान के पारंपिक फसलचक्र से बाहर निकलने के लिए जागरूकता की मुहिम शुरू की है। उक्त संगठनों के निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि किसान भलीभांति यह जानते हैं धान की बिजाई से भू-जल स्तर गिरता जा रहा है और यदि उन्होंने आज बदलाव नहीं किया तो पंजाब एक दिन मरूस्थल बन जाएगा। यहां तक कि पीने योग्य पानी के भी लाले पड़ जाएंगे। किसान संगठन की यह एक अच्छी पहल है कि जिन्होंने कम से कम पारंपरिक फसलचक्र से बाहर निकलने का मन बनाया लेकिन उक्त संगठन दूसरे पहलुओं को भी उठा रहा है कि परिवर्तित फसलों की बिजाई का उचित मूल्य मिले ताकि वे धान से पीछा छुड़ा सकें।
यदि सरकार व किसान मिलकर काम करें तो कृषि में नई क्रांति संभव है। लेकिन जब किसान को नई फसल का उचित रेट नहीं मिलेगा या फसल कई-कई दिन तक मंडियों में पड़ी रहेगी तब किसानों का नई फसलों की बिजाई करने से मोहभंग हो जाता है। मक्की इसका स्पष्ट उदाहरण है, जिसका निर्धारित रेट नहीं मिलने पर किसान मक्की की खेती करने से पीछे हट गए। लेकिन यहां किसानों के लिए भी आवश्यक है कि विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तनों की पहचान करने व फसलों की बिजाई की तरफ ध्यान दें जिनकी मांग ज्यादा है। किन्नू की बागवानी, आलू व प्याज सहित कई फसलें हैं जिनकी बिजाई किसान अपनी समझ के अनुसार व बिना सरकार की सलाह के करते हैं। विगत वर्षों में किन्नू उत्पादकों ने अच्छा मुनाफा भी कमाया है। इसी तरह आलू-प्याज की खेती भी अच्छी रही और किसानों ने अपनी आय में वृद्धि की।
इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि कई किसान, कृषि विभाग की उम्मीदों से भी आगे निकल चुके हैं। एक अन्य बात जो महत्वपूर्ण है कि किसानों को केवल उत्पादक बनने के साथ-साथ विक्रेता भी बनना होगा। विक्रेता बनकर किसान अपनी उपज को सीधा ग्राहक को बेचकर मंडी के भाव से दोगुना-तीनगुना अधिक दामों पर बेच सकता है। हरी सब्जियां, जो मंडी में 5-15 रुपये किलो तक बिक रही हैं, वहीं ग्राहक को 35 से 50 रुपये में बेची जा रही हैं। यदि किसान इससे भी आधे रेट पर बेचे तो मंडी से कीमत कई गुणा ज्यादा मिलेगी। किसान को शारीरिक के साथ-साथ मानसिक परिश्रम भी बढ़ाने की आवश्यकता है। सूझबूझ, तकनीकी जानकारी प्राप्त कर व आर्थिक क्षेत्र की समझ रखने वाला किसान कृषि क्षेत्र में सफल हो सकता है। यदि सरकारें भी किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए जुट जाएं तब दोनों का सहयोग रंग ला सकता है।
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