जल की शुद्धता और उपलब्धता पर संकट

Tap Water Scheme

विज्ञान पत्रिका नेचर जियोसाइंस की मानें तो सिंधु और गंगा नदी के मैदानी क्षेत्र का 60 प्रतिशत भूजल पूरी तरह दूषित हो चुका है। कहीं यह सीमा से अधिक खारा है तो कहीं उसमें आर्सेनिक की मात्रा बहुत अधिक है। आंकड़ों के मुताबिक 200 मीटर की गहराई पर मौजूद भूजल का बड़ा हिस्सा दूषित हो चुका है वहीं 23 प्रतिशत भूजल अत्यधिक खारा है। एक आंकड़े के मुताबिक दूषित भूजल से हर आठ सेकेंड में एक बच्चा काल का ग्रास बन रहा है। हर साल पचास लाख से अधिक लोग दूषित भूजल के सेवन से मौत के मुंह में जा रहे हैं।

गौर करें तो समस्या सिर्फ भूजल के दूषित होने तक सीमित नहीं है। विडंबना यह भी है कि भूजल के स्तर में लगातार गिरावट भी हो रही है। वैसे भी भारत में भूजल का वितरण सर्वत्र एक समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों में तो भूजल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तो अन्य क्षेत्रों में इसकी कमी है। भूजल संबंधी ऐसी वितरण व्यवस्था विकसित की जानी चाहिए ताकि जल हानि न हो और जल प्रदुषित होने से बच जाए। यहां समझना होगा कि भूजल जल आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका उचित उपयोग और संरक्षण होना चाहिए।

इसलिए और भी कि भारतीय उपमहाद्वीप में भूजल का व्यवहार अत्यधिक जटिल है। उल्लेखनीय है कि जीईसी 1997 के दिशा निदेर्शों एवं संस्तुतियों के आधार पर देश में स्वच्छ जल के लिए भूजल संसाधनों का आकलन किया गया। देश में कुल वार्षिक पुन: पूरणयोग्य भूजल संसाधनों का मान 433 घन किमी है। प्राकृतिक निस्सरण के लिए 34 बीसीएम जल स्वीकार करते हुए नेट वार्षिक भूजल उपलब्धता का मान संपूर्ण देश के लिए 399 बीसीएम है।

भारत के जल संसाधन पर नजर दौड़ाएं तो भारत में विश्व के जल संसाधनों का 4 प्रतिशत भाग पाया जाता है। इसका लगभग एक तिहाई भाग वाष्पीकृत हो जाता है। तथा 45 प्रतिशत भाग ढाल के अनुरुप बहकर तालाबों, झीलों और नदियों में चला जाता है। वर्षण से जल की जो थोड़ी-सी मात्रा यानी तकरीबन 22 प्रतिशत मृदा में प्रवेश कर भूमिगत हो जाती है उसे भौम जल या भू-जल कहा जाता है। धरातलीय जल तथा पुनर्भरण योग्य भूमिगत जल से 1,869 घन किमी जल उपलब्ध है और इनमें से केवल 60 प्रतिशत यानी 1,121 घन किमी जल का लाभदायक उपयोग किया जाता है। भूजल पीने के पानी के अलावा पृथ्वी में नमी बनाए रखने में भी मददगार साबित होता है। पृथ्वी पर उगने वाली वनस्पति तथा फसलों का पोषण भी इसी जल से होता है।

यहां यह भी जानना जरुरी है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में सालाना मीठे व स्वच्छ पानी की खपत अधिक होती है। विश्व बैंक के विगत चार साल के आंकड़ों के अनुसार घरेलू, कृषि एवं औद्योगिक उपयोग के लिए प्रतिवर्ष 761 बिलियन घन मीटर जल का इस्तेमाल होता है। मौजूदा समय में पानी की कमी बढ़ गयी है और उसका मूल कारण भूजल का दूषित होना है। आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान समय में भारत के 29 प्रतिशत विकास खंड भूजल के दयनीय स्तर पर हैं। ऐसा माना जा रहा है कि 2025 तक लगभग 60 प्रतिशत विकास खंड चिंतनीय स्थिति में आ जाएंगे। 1970 में केंद्रीय भू-जल बोर्ड का गठन किया गया।

बोर्ड का मुख्य कार्य भू-जल संसाधनों के प्रबंधन, स्थायी एवं वैज्ञानिक विकास के लिए प्रौद्योगिकियों को विकसित करना तथा राष्ट्रीय नीति की निगरानी में उन्हें वितरित करना है। इसी तरह 1980 में राष्ट्रीय जल बोर्ड तथा 2006 में भू-जल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए सलाहकार परिषद का गठन किया गया। 2012 में राष्ट्रीय जल नीति को तैयार किया गया जिसके तहत सुनिश्चित किया गया कि जल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए वर्षा का प्रत्यक्ष उपयोग एवं अपरिहार्य वाष्पोत्सर्जन को कम करने का प्रयास होगा।

देश में भूजल संसाधन की मात्रा एवं गुणवत्ता की स्थिति का पता लगाया जाएगा। भूजल के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए एक स्पष्ट प्रभावी कानूनी ढांचे का अभाव बना हुए है। नतीजा भूजल न सिर्फ बुरी तरह प्रदूषित हो रहा है बल्कि उसके स्तर में भी भारी गिरावट आ रही है। हैरान करने वाला यह कि इस गहराते संकट का असर दिखने के बाद भी इसके बचाव के लिए लिए कोई कारगर पहल नहीं हो रही है। नतीज हर वर्ष अरबों घन मीटर भूजल दूषित हो रहा है।

उचित होगा कि सरकार दूषित और गिरते भूजल स्तर की समस्या से निपटने के लिए दीर्घकालीन उपायों के साथ ही कुओं व तालाबों के संरक्षण, सिंचाई के स्रोतों के विकास और जल स्रोतों के पुनर्जीवन के बारे में जल मित्रों के जरिए जनभागीदारी के साथ जागरुकता फैलाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों को गति दे। राष्ट्रीय स्तर पर दूषित भूजल की रोकथाम के लिए योजना बनाकर उसका प्रभावी क्रियान्वयन करने की भी जरुरत है।