किसान बोले: मुनाफा तो दूर लागत खर्च भी नहीं होगा पूरा
सच कहूँ/राजू, ओढां। जट्ट दी जूण बूरी…भले ही ये एक पंजाबी गीत की चंद पंक्तियां हैं, लेकिन इस समय किसानों पर बिल्कुल स्टीक बैठ रही है। कभी समय पर पानी नहीं तो कभी खाद। किसानों को हमेशा ही परेशानी झेलनी पड़ती है। इस बार नरमें की फसल किसानों की उम्मीदों के अनुकू ल थी, लेकिन ऐन मौके पर फसल दगा दे गई। बेमौसमी बरसात के चलते जहां किसान चिंता में थे। तो वहीं गुलाबी सुंडी ने कोढ में खाज का काम किया। स्थिति ये है कि किसानों को मुनाफा तो दूर लागत खर्च भी पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा। इस बारे जब संवाददाता राजू ओढां ने कुछ किसानों से बात की तो उन्होंने दु:खी मन से कहा कि खेतों में फसल का आध भी नहीं बचा। किसानों को हमेशा ही मार झेलनी पड़ी है, लेकिन इस बार उन पर दोहरी मार पड़ी है। जिसके चलते खेती घाटे का सौदा बनकर रह गई है। कैसे उतरेगा कर्ज और कैसे होंगी उम्मीदें पूरी। उन्होंने कहा कि सरकार ने स्पेशल गिरदावरी की बात कही है। अब तो यही उम्मीद है कि सरकार कुछ मदद करे।
‘‘शुरूआती दौर मेंं नरमें की फसल काफी अच्छी थी। फसल देखकर ये लगता था कि इस बार प्रति एकड़ करीब 40 मण फसल हो जाएगी। खेतों में अधिक जलभराव तो नहीं हुआ, लेकिन गुलाबी सुंडी ने उनकी उम्मीदें धुमिल कर दी। देखने में फसल ठीक लग रही है, लेकिन उसका टिंडा गुलाबी सुंडी के प्रकोप से नष्ट हो गया। बिजाई से लेकर अब तक किसान का करीब 20 हजार रूपये प्रति एकड़ खर्च हो चुका है।
दलीप नेहरा, किसान।
‘‘इस बार 6 एकड़ भूमि 35 हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से ठेके पर ली थी। उम्मीद थी कि अच्छी फसल होने से न केवल ठेके के पैसे पूरे हो जाएंगे बल्कि कुछ लेनदेन भी आसान हो जाएगा, लेकिन जब फसल पककर तैयार हो गई तो गुलाबी सुंडी उम्मीदों पर आफत बनकर आई। अब तो ये लगता है कि लेनदेन व मुनाफा तो दूर ठेके के पैसे भी पूरे नहीं हो पाएंगे। सरकार से उम्मीद है कि कुछ मदद मिलेगी।
कालू राम, किसान।
‘‘इस बार 9 एकड़ में नरमें की बिजाई की थी। शुरूआती दौर में फसल पिछली बार की अपेक्षा अच्छी नजर आ रही थी। क्योंंकि नरमें पर टिंडे अच्छे थे, लेकिन ऐन मौके पर हुई बेमौसमी बरसात के चलते फसल में गुलाबी सूंडी उत्पन्न हो गई। टिंडा ऊपर से सही है, लेकिन जब उसे तोड़कर देखा जाता है तो अंदर से गुलाबी सूंडी के कारण बीज गला हुआ निकलता है। सरकार स्पेशल गिरदावरी का कह रही है। किसानों की कुछ मदद हो जाए तो अच्छा है।
आशाराम नेहरा, किसान।
‘‘इस बार मैंने 12 एकड़ में नरमें की बिजाई की थी। शुरूआती दौर में फसल अच्छी दिखने के चलते इस बार उम्मीद थी कि फसल बेचकर खेत में वॉटर टैंक बनाया जाए। प्रति एकड़ 30 मण नरमें की उम्मीद लगाई थी, लेकिन गुलाबी सुंडी ने ऐसी मार मारी है कि नरमा 10 मण भी मुश्किल से होगा। टिंडे काफी हैं, लेकिन वो सुंडी की वजह से खिल नहीं रहे। किसान तो वैसे ही परेशान है और ऊपर से गुलाबी सुंडी ने एक नई मुसीबत पैदा कर दी। खेती घाटे का सौदा बनकर रह गई है।
सुनील नेहरा, किसान।
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