पर्यावरण बचाने के लिए अदालत की अनूठी पहल

Court's unique initiative to save the environment

राष्ट्रीय राजधानी में पर्यावरण को बचाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक नई कवायद शुरू की है। इसके तहत वादी-प्रतिवादियों पर हर्जाना लगाते हुए, अदालत उन्हें शहर को हरा-भरा करने का निर्देश दे रही है। जस्टिस नजमी वजीरी ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए, एक बार फिर दोषियों को जुमार्ना बतौर सौ-दो सौ, हजार नहीं बल्कि 1 लाख 40 हजार पौधे लगाने का महत्वपूर्ण आदेश दिया है। अदालत की अवमानना मामले की सुनवाई के बाद, उन्होंने यह फैसला सुनाया है। पौधे, दक्षिण दिल्ली स्थित सेंट्रल रिज में लगाए जाएंगे। इस आदेश को लागू करने की जिम्मेवारी दक्षिण दिल्ली के उप वन संरक्षक की होगी। अदालत ने वन विभाग को निर्देश दिए हैं कि वह दोषी कंपनी को बताए कि ये 1.40 लाख पौधे कहां लगेंगे।

साथ ही, यह भी बताए कि इन पौधों के लिए पानी कहां से आएगा। खास तौर पर ख्याल रखा जाए कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का पानी ही इस्तेमाल किया जाए। कंपनी से ऐसे छोटे-छोटे बांध बनवाएं जाएं, ताकि बारिश के मौसम का इन पौधों को फायदा मिले। वन विभाग बकायदा एक एक्शन प्लान बना कर, इन पौधों की रक्षा करे। हर पेड़ पर नंबर डाला जाए। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा कि वन विभाग की जिम्मेवारी होगी कि पौधे एक निश्चित ऊंचाई तक पहुंचें और जीवित रहें। यही नहीं कंपनी की जवाबदेही सिर्फ पौधे लगाने तक सीमित नहीं रहेगी, बारिश का मौसम खत्म होने तक उसे इन सभी पौधों की देखभाल करनी होगी। यानी अपराधी सिर्फ पौधे लगाकर ही अपने कत्र्तव्यों से बरी ना हो जाए, बड़े होने तक वह इनकी हिफाजत भी करे। तभी फैसले का मकसद पूरा होगा।

यूएसए की एक कंपनी ह्यमेर्क शार्प एंड डोमे कॉरपोरेशनह्ण ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर चैन्नई की कंपनी नूत्रा स्पेशलिटीज प्राइवेट लिमिटेड (जो अब वेंकटनारायणा एक्टिव इनग्रिडिएंटस प्राइवेट लिमिटेड के नाम से कारोबार कर रही है) पर अदालत की अवमानना का इल्जाम लगाया और कहा कि उनकी एक दवा को भारत में बेचे जाने को लेकर, 5 मई 2016 को अदालत के हस्तक्षेप के बाद दोनों कंपनियों के बीच समझौता हुआ था, लेकिन कंपनी समझौते की शर्तों की पालना नहीं कर रही है।

बहरहाल दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अदालत ने दोषी कंपनी पर 80 लाख रुपए का जुमार्ना लगाते हुए कहा कि यह पैसा सार्वजनिक हित पर खर्च किया जाए। अदालत ने पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले चार साल के दौरान दिल्ली में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और हवा की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। यहां तक कि स्थिति आपातकाल तक पहुंच गई है। हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए जरूरी हो गया है कि राजधानी में हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाया जाए। लिहाजा जुमार्ने की यह रकम, हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाने पर खर्च की जाए। अदालत ने इसके लिए सलाह दी कि दिल्ली में सेंट्रल रिज का क्षेत्रफल 2135 एकड़ और वन विभाग के पास 935 एकड़ क्षेत्र है, इसलिए इस रिज में पेड़ लगाकर हरित क्षेत्र का दायरा बढ़ाया जा सकता है।

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जस्टिस नजमी वजीरी का यह पहला फैसला नहीं है, बल्कि इससे पहले भी वह अपने दीगर फैसलों में इस तरह की अनूठी पहल कर चुके हैं। छोटे-छोटे अपराधों से लेकर अदालत की अवमानना वाले मामलों में वे इस तरह के फैसले सुनाते हैं, जिससे पर्यावरण को फायदा मिले। लोगों की पर्यावरण के प्रति जागरुकता जागे। अपने ऐसे ही एक फैसले में पिछले दिनों उन्होंने स्वान टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड के प्रमोटर शाहिद बलवा, कुसेगांव फ्रूट्स एडं वेजीटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक राजीव अग्रवाल और डायनमिक रिएलिटी, डीबी रिएलिटी लिमिटेड और निहार कन्स्ट्रक्शंस प्राइवेट लिमिटेड आदि कंपनियों के ऊपर हजार्ने के तौर पर दक्षिण दिल्ली में ही तीन-तीन हजार यानी कुल मिलाकर 15 हजार पौधे लगाने का निर्देश दिया था।

पौधे किस तरह के और कैसे लगाए जांए, अदालत ने यह भी बतलाते हुए कहा कि पौधे, विभिन्न देशी प्रजातियों के और उम्र में कम से कम साढे़ तीन साल और उंचाई में 6 फीट के होने चाहिए। यही नहीं बारिश का मौसम आने तक इनकी देखभाल भी करनी होगी। जस्टिस नजमी वजीरी इस तरह से अलग-अलग मामलों में दोषियों को हजार्ना बतौर 1 लाख 80 हजार से ज्यादा पौधे लगाने के आदेश दे चुके हैं। उनके इन आदेशों से पर्यावरण प्रदूषण से जूझ रही, दक्षिण दिल्ली में जहां प्रत्यक्ष तौर पर वनीय इलाके के विस्तार में मदद मिल रही है, वहीं अप्रत्यक्ष तौर पर गुनहगारों को समाज के प्रति उनके उत्तरदायित्व का पाठ भी पढ़ाया जा रहा है।

अदालत के इस तरह के फैसले, सुधारवादी फैसले कहे जाते हैं। हालांकि इस तरह के किसी दंड का प्रावधान, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में नहीं है, लेकिन अदालतें अपने स्व-विवेक से समय-समय पर इस तरह की सजाएं सुनाती रहती हैं। इस तरह की सजाओं के पीछे दलील यह होती है कि सजा का मकसद सिर्फ अपराधी को सलाखों के पीछे डालना ही नहीं, बल्कि उसके अंदर सुधार की कोशिशें करना और उसे सुधरने का एक मौका प्रदान करना है। ताकि उसमें इंसानियत जागे। अपने परिवार और समाज के प्रति वह अपनी जवाबदेही समझे। अक्सर अदालतें छोटे-छोटे मामलों, जिसमें अपराधी के ऊपर सामान्य धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हैं, उनमें इस तरह के सुधारवादी फैसले लेती हैं। इस तरह के फैसलों की लंबी फेहरिस्त है।

मसलन महाराष्ट्र में बीड जिले की एक अदालत ने सरकारी काम में बाधा डालने के सात आरोपियों को सजा सुनाई कि वे एक साल तक महीने में दो बार संबंधित थाने की सफाई करें और पेड़-पौधों की देखभाल करें। महाराष्ट्र में ही रेलवे एक्ट के तहत पकड़े गए तीन युवकों को वसई रेलवे स्टेशन की तीन दिनों तक सफाई करने की सजा सुनाई गई। इसी तरह गुजरात की एक अदालत ने साल 2009 में शराब पीते और जुआ खेलते पकड़े गए एक डिप्टी तहसीलदार को एक महीने तक अस्पताल की सफाई करने की सजा सुनाई थी। इसी तरह ट्रैफिक नियम तोड़ने के दोषियों को कुछ दिनों तक ट्रैफिक व्यवस्था संभालने की सजा कई बार सुनाई जा चुकी है। ऐसी सजाओं के पीछे अदालत की यह सोच होती है कि कैसा भी अपराधी क्यों ना हो, उसे सुधरने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए। इस तरह की सजाओं से ना सिर्फ अपराधी को राहत मिलती है, बल्कि समाज को भी फायदा होता है।

एक सामाजिक संदेश जाता है, वह अलग। जघन्य अपराधों के लिए भले ही ऐसी सुधारात्मक सजा नहीं सुनाई जा सकती, लेकिन जिन मामलों में समाज का कोई नुकसान नहीं हो रहा हो, उनमें अपराधी को जेल भेजने की बजाय नरम सजाएं सुनाई जाएं। जस्टिस नजमी वजीरी ने अपने सुधारवादी फैसलों से जहां अपराधियों को सुधरने का एक मौका प्रदान किया है, वहीं उन्हें ऐसी सजा मुकर्रर की है, जिससे आने वाले दिनों में राजधानी दिल्ली का पर्यावरण भी सुधरेगा। इस अनूठी पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।

 

 

 

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