मुर्गी अंडे दे रही थी और मालिक बेच रहा था। मुर्गी देशहित में अंडे दे रही थी। उसके मालिक ने कहा था- आज राष्ट्र को तुम्हारे अंडों की जरूरत है। यदि तुम चाहती हो कि तुम्हारा घर सोने का बन जाये तो जम के अंडे दिया करो। आज तक तुमसे अंडे तो लिये गये लेकिन तुम्हारा घर किसी ने सोने का नहीं बनवाया। हम करेंगे। तुम्हारा विकास करके छोड़ेंगे। मुर्गी खुशी से नाचने लगी। उसने सोचा देश को मेरी भी जरूरत पड़ती है। वाह मैं एक क्या कल से दो अंडे दूंगी। देश है तो मैं हूं। वह दो अंडे देने लगी। मालिक खुश था। अंडे बेचकर खूब पैसे कमा रहा था। मालिक निहायत लालची सेठ था। उसने मुर्गी की खुराक कम कर दी। मुर्गी चौंकी। आज मुझे पर्याप्त खुराक नहीं दी गई। कोई समस्या है क्या? देश आज संकट में है। किसी भी मुर्गी को पूरा अन्न खाने का हक नहीं। जब तक एक भी मुर्गी भूखी है मैं खुद पूरा आहार नहीं लूंगी। हम देश के लिए संकट सहेंगे। मुर्गी आधा पेट खाकर अंडे देने लगी। मालिक अंडे बेचकर अपना घर भर रहा था। बरसात में मुर्गी का घर नहीं बन पाया।
मुर्गी बोली: आप मेरे सारे अंडे ले रहे हैं। मुझे आधा पेट खाने को दे रहे है। कहा था कि घर सोने का बनेगा। नहीं बना। मेरे घर की मरम्मत तो करवा दो। मालिक भावुक हो गया। बोला-तुमने कभी सोचा है इस देश में कितनी मुर्गियां हैं जिनके सर पर छत नहीं हैं। रात-रात भर रोती रहती हैं। तुम्हें अपनी पड़ी है। तुम्हें देश के बारे में सोचना चाहिए। अपने लिए सोचना तो स्वार्थ है। मुर्गी चुप हो गई। देशहित में मौन रहने में ही उसने भलाई समझी। अब वह अंडे नहीं दे पा रही थी। कमजोर हो गई थी। न खाने का ठिकाना न रहने का। वह बोलना चाहती थी लेकिन भयभीत थी। वह पूछना चाहती थी- इतने पैसे जो जमा कर रहे हो- वह क्यों और किसके लिए? देशहित में कितना लगाया है? लेकिन पूछ नहीं पाई। एक दिन मालिक आया और बोला- मेरी प्यारी मुर्गी तुझे देशहित में मरना पड़ेगा। देश तुमसे बलिदान मांग रहा है। तुम्हारी मौत हजारों मुर्गियों को जीवन देगी। मुर्गी बोली लेकिन मालिक मैंने तो देश के लिय बहुत कुछ किया है। मालिक ने कहा अब तुम्हें शहीद होना पड़ेगा। बेचारी मुर्गी को अब सब कुछ समझ आ गया था लेकिन अब वक्त जा चुका था और मुर्गी कमजोर हो चुकी थी, मालिक ने मुर्गी को बेच दिया। मुर्गी किसी बड़े भूखे सेठ के पेट का भोजन बन चुकी थी। मुर्गी देशहित में शहीद हो गई। ये सिर्फ एक मुर्गी की कहानी है।
क्या युवा बेरोजगारों, किसानों, मध्यवर्गीय नागरिकों, मजदूरों, गरीबों, कर्मचारियों का और अधिक उन्मादी होकर राष्ट्रभक्ति में बिना चू-चप्पड़ किये देशी नेताओं और कॉरपोरेट्स की तिजोरी भरना महान राष्ट्रभक्ति और युगधर्म की कसौटी है? क्या देशवासी ऐसे ही चलते रहें? क्योंकि जब पेंशन के रूप में ये अपना अधिकार मांगते हैं तो कहा जाता है कि देश पर बोझ पड़ेगा और जब सांसदों-विधायकों को अपने वेतन भत्ते बढ़ाने होंगे तो हाथ उठाकर बिना बहस किये बढ़ा लेंगे, आम कर्मचारी-अधिकारी को एक भी पेंशन नहीं देंगे और स्वयं तीन तीन पेंशन लेंगे, क्यों? जिस देश में सरकार व बैंकर्स ने देश के ईमानदार करदाताओं व बचतकर्ताओं का मजाक बनाकर रख दिया हो तब उस देश में नागरिक अपने आपको एक मुर्गी से ज्यादा समझें भी तो क्या समझें? क्योंकि कभी कर्ज लेकर उद्योगपति भाग जाते हैं, कभी पूरा बैंक ही धराशायी हो जाता है।
आरबीआई से आरटीआई के अन्तगर्त मिली एक सूचना के अनुसार 50 कंपनियों का 68 हजार 607 करोड़ रूपया राईट ऑफ़ कर दिया है। बैंक राईट ऑफ़ का कदम तब उठाते हैं जब बैंक किसी विलफुल डिफाल्टर से दिए गए ऋण की पूरी वसूली में असमर्थ हो जाते हैं। संसद में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब सरकार को कोसा कि क्यों उन्होंने नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या व उनके जैसे लोगों का कर्ज माफ कर दिया है। तब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण व प्रकाश जावेड़कर राहुल के माध्यम से देश को अर्थशास्त्र व अकाउंट की भाषा पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं कि राईट ऑफ़ का अर्थ माफ करना नहीं होता, माना कि देश जानता है कि माफ करना को वेवऑफ़ कहते हैं। फिर भी सरकार बताए तो सही कि सरकार के राईट ऑफ़ का देश करे क्या? देशवासी सीधी बात जानते हैं कि सरकार उनकी हिफाजत नहीं कर पा रही और सेठ हैं कि सरकार से मुर्गी मरवा रहे हैं और खुद खा रहे हैं।
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