पूरे विश्व में कोरोना का कहर जारी है, विशेष तौर पर अमेरिका, ईटली व स्पेन सबसे प्रभावित देश हैं, जहां मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। भारत में भले ही मरीजों की गिनती जनसंख्या के मुकाबले थोड़ी धीमी गति से बढ़ रही है, लेकिन वास्तव में खतरा टला नहीं। लेकिन आम भारतीयों की मानसिकता अभी भी घिसी-पिटी व गैर-वैज्ञानिक है। हमारे लोगों में चर्चा का बड़ा विषय यह है कि क्या लॉकडाउन बढ़ाया जाएगा या 14 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा।
दरअसल सोचने की बात तो यह है कि लॉकडाउन से कितना फायदा हुआ, कमियां कहां रही हैं व लोगों ने कितना सहयोग दिया व कितनी लापरवाही हुई? स्वस्थ लोगों को तो यह महसूस हो रहा है कि जैसे देश में कोरोना खत्म ही हो गया है। कई लोग मृतकों की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा होने के कारण यह धारणा बना लेते हैं कि बड़ी आयु के लोगों की मौत तो किसी और बीमारी से होती है, कोरोना का तो केवल बहाना बनाया जा रहा है। इस प्रकार के बेतुकी बातों को सुनने के बाद वास्तविक्ता से मुंह नहीं फेरा जा सकता। जब इसी बात को विश्व स्तर पर लागू कर सोचा जाए, तब भयानक तस्वीर सामने आती है। संयुक्त राष्ट्र के जनरल सचिव एनटोनियो गुटेरेस का कहना है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद मानवीय जाति के समक्ष कोरोना वायरस सबसे बड़ा संकट बना है। 30,000 से ज्यादा लोगों की मौत होना, मरीजों की गिनती आठ लाख से ज्यादा होना व विकसित देशों में वैंटीलेटर अस्पतालों व अन्य मेडिकल सुविधाओं का टोटा होना बीमारी की गंभीरता को दर्शाता है, वे भी 21वीं शताब्दी में जब मेडिकल बेशुमार विकास कर चुकी है लेकिन कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं बन सकी।
एशिया के अमीर लोग जो अमेरिका में कैंसर व अन्य बीमारियों का इलाज करवाकर बिल्कुल तंदरुस्त होकर आते हैं वही अमेरिका अब कोरोना से मुकाबला करने में बेबस नजर आ रहा है। न्यूयॉर्क में अमेरिका को टैंटों के अस्पताल बनाने पड़ रहे हैं। वायरस की राजनीतिक वास्तविक्ता पर भी माथापच्ची हो रही है लेकिन अब आरोप-प्रत्यारोप का वक्त नहीं बल्कि बीमारी को हराने के लिए एकजुटता से काम करना होगा। पूरे विश्व में देखा जाए तो भारतीय नागरिक सौभाग्यशाली हैं व इस तंदरुस्ती को बरकरार रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय हालातों को हमेशा याद रखना होगा। ये बड़े नेता जो बातें कह रहे हैं वो डराने के लिए नहीं है। अत: विश्व के इन बड़े नेताओं की अपीलों व सुझावों को हमें महत्व देना चाहिए।
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