उद्वेलित व आक्रोसित देश चाहता है अब निर्णायक फैसला

Country wants now decisive decision

पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर आतंकवादी हमला और इस हमलें में 40 सैनिकों के शहीद होने और बहुत से सैनिकों के हताहत होने के साथ ही समूचा देश उद्वेलित और आक्रोशित हो गया है। देशवासियों का गुस्सा इस समय चरम पर है और जो उभर कर आ रहा है उसमें खास यही कि अब प्रतिक्रियाओं और व्यक्तव्यों के लिए कोई स्थान नहीं है अपितु अब तो कुछ कर दिखाने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि सेना को कार्यवाही करने की पूरी छूट दे दी है वहीं साफ चेतावनी भी दे दी है तो शनिवार को हुई सर्वदलीय बैठक में भी यही उभर कर आया है कि सीमा पार के आतंकवाद की चुनौतियों से लड़ने के लिए पूरा देश सरकार और सेना के साथ है। कश्मीर की समस्या कहा जाए तो हमें आजादी के साथ एक गंभीर बीमारी के रुप में मिली और पिछले 30 सालों में इस समस्या ने और अधिक विकराल रुप ले लिया। दरअसल पाकिस्तान के सत्ताधीशों और सेना का अस्तित्व और अहमियत पूरी तरह से कश्मीर को हवा देने में ही बना हुई है। विगत में कुछ अदूरदर्शी निर्णयों या यों कहें कि पाकिस्तान के खिलाफ सहृदय बने रहने का ही परिणाम रहा है कि यह समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रुप लेती जा रही है। मजे की बात यह है कि अलगाववादी नेताओं को एक तरह से सुरक्षा व सुविधाएं उपलब्ध कराकर हमने ही इस फोड़े को नासूर बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इसी का परिणाम है कि देश के टुकड़ों पर पलने वाले अलगाववादियों ने नाक में दम कर रखा है।

यह अलगाववादी एक और सरकारी सुविधाओं से युक्त होकर एशो-आराम की जिंदगी बसर कर रहे हैं वहीं कश्मीर के युवाओं को गुमराह करने और आए दिन नए नए शिगूफे और प्रदर्शनों के साथ हवा दे रहे है। यहां तक कि आतंकवादियों व घुसपैठियों को भी संरक्षण देने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं। पत्थरबाजों की नई खेप तैयार कर सेना के सामने दोहरी परेशानी पैदा कर रहे हैं। उधर सेना द्वारा पत्थर बाजों के खिलाफ या किसी कारण से किसी नागरिक की मौत को मानव अधिकारों का हनन बनाते हुए इस तरह से शोरगुल करने लगते हैं। सबसे दु:खद यह कि इस देश का नमक खाने वाले, यहां की सुविधाओं से ऐशो आराम करने वाले कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, दोहरे चरित्र के छद्म मानवतावादी स्वतंत्रता के नाम पर बरगलाने में कोई कमी नहीं छोड़ते। मैं आज पूछता हूं कि पुलवामा में 44 निर्दोष सैनिकों की शहादत पर आज तथाकथित कितने लोग अपने पद्मश्री या दूसरे अलंकरण लौटाने की बात कर रहे हैं। क्या देश के लिए शहादत देने वालों के लिए दो शब्द विभिन्न मंचों पर जोर जोर से गाल बजाने वालों के पास नहीं है।

जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में कन्हैया के साथ आकर गाल बजाने वाले आज कहां गए। अन्य विश्वविद्यालयों और मंचों पर देश में अपने आप पर खतरा बताने वाले कहां गए? न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं की स्वतंत्रता के नाम पर प्रेस कॉफ्रेंस करने वाले कहां गए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हनन के नाम पर भाषण देने वाले कहां गए? क्या देश की रक्षा करने वाले जवानों की शहीदी पर उनका कोई दायित्व नहीं बनता? आखिर यह कब तक चलेगा। आज देश के अधिकांश नागरिक सरकार से दोहरी अपेक्षा रख रहे हैं। एक और अलगाववादियों को पनाह देने वाले सरकारी धन पर पल रहे नेताओं और दूसरे यह तथाकथित मानवतावादी और अलंकरण लौटाने की घोषणा करने वालों को सबक सिखाने की आवश्यकता है तो दूसरी और पाकिस्तान के खिलाफ कर गुजरने की अपेक्षा है देशवासियों की। आखिर इस तरह कब तक हम जवानों की शहादत देते रहेंगे। बल्कि होना तो यह चाहिए कि सेना का विरोध करने वालों के साथ सख्ती से निपटा जाए और इनके पक्ष में आवाज उठाने वालों को देश द्रोही मानते हुए कठघरोें में बंद कर दिया जाए।

आखिर सीमा पर शहादत देने वाले भी किसी मां के बेटे, किसी बेटी की मांग का सिंदूर तो किसी बहन का भाई है। केवल शहादत को ग्लेमरस बनाने से कुछ होने वाला नहीं है। कुछ घोषणाएं करने से उस शहीद की पूर्ति उस परिवार में होने वाली नहीं है। ऐसे में देश में बैठे दुश्मनों से अधिक सजग होना होगा, उनके खिलाफ पूरे देश को आवाज उठानी होगी। देश के किसी भी कोने से सेना की कार्यवाही के खिलाफ आवाज उठाने वालों और पाकिस्तान या अलगाववादियों या आतंकवादियों के नाम पर मानवता हनन की बात करने वालोें का जब तक बहिष्कार नहीं होगा तब तक इस देश के अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं। अलंकरण लौटाना या देश में विघटन की आवाज को हवा देना कहां का न्याय है, अब यह सोचने समझने का समय आ गया है।

दरअसल पिछले कुछ समय से जिस तरह से सेना ने आतंकवादियों पर शिकंजा कसा है उसके परिणाम अब हताशा के रुप में आ रहे हैं। सैनिकों या सरकारी कर्मचारियोें को निशाना बनाकर मारना या सैनिकों के अड़डो पर कायराना हमला या पुलवामा जैसी घटनाएं इसी का परिणाम है। यह समय एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप या दोषारोपण का नहीं है। यह समय अलगाववादियों, आतंकवादियों, घुसपैठियों, पाकिस्तान में इनके सरपरस्तों और देश में रहकर इनके पक्ष में आसूं बहाने वालों का सबक सिखाने का है। देश का बच्चा बच्चा आज आंदोलित है,उद्वेलित है और यह सही समय है जब सरकार को ठोस और कठोर कदम उठाते हुए कार्यवाही करें ताकि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने का दुस्साहस नहीं हो सके।

हमें नही भूलना चाहिए कि इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद कुछ लोग इस घटना से पाकिस्तान का हाथ होने की चर्चा करने लगते है तो उन्हें सांप सूंघ जाता है। आखिर ऐसा क्यों है?आज देश लाल बहादुर शास्त्री या इन्दिरा गांधी या अटल बिहारी जैसे अटल संदेश की चाह नरेन्द्र मोदी से कर रहा है। अब देशवासियों को पाकिस्तान या अलगाववादियों व घुसपैठियों के खिलाफ कार्यवाही यहां तक की पाकिस्तान के खिलाफ जंग के समाचारों की चाहत है और कुछ नया मिलेगा इसी आस में वे न्यूज चैनलों की और ताक रहे हैं। यह साफ हो जाना चाहिए कि समूचा देश अब अंतिम कदम यानी की ऐसा सबक सिखाने की बात कर रहा है जिससे इस तरह की घटनाओं को अंजाम देना तो दूर सरहद की और देखने का भी साहस नहीं कर सके।

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।