प्रदेश में दागी राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी से सियासत गरमाई है। देश के शीर्ष कोर्ट ने एक बार फिर आम नागरिकों की भावना को अपने शब्दों में व्यक्त किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीति में अपराधीकरण को रोकना वक्त की मांग है, पूरा देश चाहता है कि ऐसा हो। सुप्रीम कोर्ट में दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने की मांग वाली याचिका पर गुरुवार को पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा हमें हमारी लक्षमण रेखा पता है। कानून बनाने का काम संसद का है, हम केवल उस कानून की वैधता की समीक्षा करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों ( जिसमें 5 साल की सजा का प्रावधान है) में कोर्ट में अगर आरोपी पर आरोप तय हो जाए तो ऐसे में आरोपी के दोषी साबित होने तक का इंतजार करने की जरूरत नहीं, बल्कि आरोप तय होते ही ऐसे नेता को चुनाव की उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर कर दिया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसद नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध में कोर्ट आरोप तय कर चुका है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी न्यायालय ने चेताया था मगर चुनाव आयोग और सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। अब एक बार फिर चुनावों को पारदर्शी और अपराध मुक्त बनाने की दिशा में आवाज बुलंद हुई है। देखना यह है की चुनाव आयोग और सरकार के साथ विपक्षी नेता इस पर कितने गंभीर हैं,क्योंकि लगभग सभी राजनीतिक दलों में दागी नेताओं की भरमार है।
वर्तमान लोकसभा के 184 सदस्यों ने अपने खिलाफ आरोप दर्ज होने की जानकारी दी है। आरोपित विधायकों की संख्या हजार से ऊपर है। माननीयों के विरुद्ध 1600 मामलें विभिन्न अदालतों में चल रहे है। हालाँकि कुल आपराधिक मामलों की संख्या 13.5 हजार है। जिनका निपटारा निकट भविष्य में संभव नहीं है और इसी कारण वे राजनीति में यूँ ही घमासान मचाते रहेंगे।
नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 33 फीसदी यानी 1580 सांसद-विधायक ऐसे हैं, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 45 विधायक और तीन सांसद ऐसे है जिनके खिलाफ महिला उत्पीड़न, अगवा करने, शादी के लिए दबाव डालने, बलात्कार, घरेलू हिंसा और मानव तस्करी जैसे अपराध शामिल हैं।
पिछले सत्तर सालों में जिस तरह हमारी राजनीति का अपराधीकरण हुआ है और जिस तरह देश में आपराधिक तत्वों की ताकत बढ़ी है, वह जनतंत्र में हमारी आस्था को कमजोर बनाने वाली बात है। राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों को शह देना, जनता द्वारा वोट देकर उन्हें स्वीकृति और सम्मान देना और फिर कानूनी प्रक्रिया की कछुआ चाल, यह सब मिलकर हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था और जनतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा, दोनों, को सवालों के घेरे में खड़ा कर देते हैं।
सोलहवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव-प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक के शुद्धीकरण का नारा लगाया था। भाजपा एक अर्से से दूसरों से अलग राजनीतिक पार्टी होने का दावा करती रही है। फिर भाजपा के इतने मंत्री आरोपी क्यों?
राजनीति का शुद्धीकरण होता क्यों नहीं दिखाई दे रहा? मोदीजी ने चुनाव-प्रचार के दौरान कहा था-सरकार बनने के बाद सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों की जांच की जायेगी, न्यायालय से कहा जायेगा कि सांसदों के खिलाफ चल रहे मामलों को एक साल में ही निपटाया जाये। प्रधानमंत्री ने ऐसे मामलों को निपटाने के लिए त्वरित अदालतों के गठन की बात भी कही थी। क्या यह सब चुनावी जुमलेबाजी थी?
चुनाव आते हैं तो राजनीति और अपराध जगत का संबंध भी सुर्खियों में आ जाता है। अपराधियों को नेताओं का समर्थन हो या नेताओं की अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचाने की कोशिश, आखिर दलों पर अपराधियों का ये कैसा असर है। भारतीय लोकतंत्र में अपराधी इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि कोई भी राजनीतिक दल उन्हें नजरअंदाज नहीं कर पा रहा. पार्टियाँ उन्हें नहीं चुनती बल्कि वे चुनते हैं कि उन्हें किस पार्टी से लड़ना है ।
उनके इसी बल को देखकर उन्हें बाहुबली का नाम मिला है. कभी राजनीति के धुरंधर अपराधियों का अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते थे अब दूसरे को लाभ पहुँचाने के बदले उन्होंने खुद ही कमान संभाल ली है. पंद्रहवीं लोकसभा में कुल 162 सांसदों के विरुद्ध आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। सोलहवीं लोकसभा में यह संख्या बढ़ी है। आखिर क्यों सरकार इस दिशा में कुछ कर नहीं रही। और विपक्ष भी क्यों चुप है इस मामले में। क्या इसलिए कि सबके दामन पर दाग है। क्या इसलिए कि बाहुबल, धनबल की राजनीति सबको रास आती है । ईमानदार राजनीति का तकाजा है कि राजनीति को आपराधिक तत्वों से मुक्त कराने की प्रक्रिया तत्काल शुरू हो। न्याय-व्यवस्था में बदलाव लाकर राजनीति के अपराधियों के मामले निश्चित समय-सीमा में निपटाये जाएं ।
बाल मुकुन्द ओझा
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