किसी स्वस्थ लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की जीवंतता तथा सार्थकता इस बात से तय होती है कि वह शासन प्रणाली अंतिम जन तक सामाजिक – आर्थिक न्याय को कितनी ईमानदारी व सक्रियता से पहुंचा पा रही है और आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली में यही पर सिविल सेवाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसी ही शासन प्रणाली विकसित करने और सिविल सेवाओं को देश की आवश्यकता अनुसार ढालने की दिशा में केंद्र सरकार एक के बाद एक कड़े फैसले ले रही है।
गौरतलब है कि हाल ही में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने विभिन्न क्षेत्रों के मेधावी एवं पेशेवर लोगों के आवेदन मांग कर एक नई शुरूआत की है। आवेदन देने वालों के लिए यह आवश्यक है कि वे निजी क्षेत्र या किसी सार्वजनिक उपक्रम अथवा शैक्षणिक संस्थान में पेशेवर के तौर पर कार्यरत हो और कम से कम 15 वर्ष का अनुभव रखते हों। बता दें कि इससे पहले मोदी सरकार कैडर आवंटन को लेकर भी एक महत्वपूर्ण फैसला ले चुकी है। इस फैसले के बाद किसी भी प्रशिक्षु प्रशासनिक अधिकारी का कैडर केवल यूपीएससी परीक्षा में अर्जित किए नंबरों से ही निर्धारित नहीं होगा बल्कि उसमें अब ट्रेनिंग सेंटर में लिए गए नंबरों को भी जोड़ा जाएगा।
लेट्रल एंट्री: इससे पहले कि हम लेटरल एंट्री के नफे नुकसान की जांच कर देश की सही आवश्यकता के बारे में जाने , बेहतर होगा कि एक बार हम संक्षिप्त में वर्तमान एंट्री पद्धति को जान लें। सिविल सेवा परीक्षा जिसके तहत भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति होती है 1853 के चार्टर एक्ट के तहत खुली परीक्षा के माध्यम से इसकी शुरूआत हो गई थी।
वर्तमान में यह परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग द्वारा तीन चरणों में आयोजित की जाती है – प्रारंभिक परीक्षा , मुख्य परीक्षा व व्यक्तित्व परीक्षण जिसे आमतौर पर इंटरव्यू के नाम से भी जाना जाता है। प्रारंभिक परीक्षा जून तथा मेंस परीक्षा सितंबर – अक्तूबर में आयोजित की जाती है।
और जब मई में इस परीक्षा के परिणाम घोषित होते हैं तो पूरा देश टकटकी लगाए बस यही जानने का इच्छुक होता है कि देश की सबसे कठिन और प्रतिष्ठित माने जाने वाली इस परीक्षा के टॉपर कौन हैं? अब मोदी सरकार की मंशा यह है कि भारतीय नौकरशाही में इस प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षा से इतर भी भर्ती होनी चाहिए। इसे ही लेटरल एंट्री का नाम दिया गया है जिसकी योग्यताओं के बारे में हम पहले जान चुके हैं।
विरोध क्यों: देख रहा हूं , जब से केंद्र सरकार का यह फैसला आया है तमाम मुख्य विपक्षी दल के गलियारों में खासकर सोशल मीडिया फेसबुक पर खूब विरोध हो रहा है। यूपीएससी की तैयारी करने वाले तो खुद को सबसे ज्यादा ठगा महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि यह फैसला उनकी सारी कड़ी मेहनत पर पानी फेर देगा। बड़े उद्योग घरानों के लोग , अनुभवशील व विशेषज्ञ उनका स्थान ले लेंगे।
बहराल , इसमें कितनी सच्चाई है इसको जानने से पहले यह जरूरी है कि हम सरकार के फैसले को बिना किसी पूर्वाग्रह – दुराग्रह के शांत चित्त से अच्छे से समझें कि सरकार आखिर वास्तव में चाहती क्या है ? दरअसल , सरकार का इस लेटरल एंट्री के पीछे प्रमुख तर्क यह है कि इससे हमारा देश विशेषज्ञों के अनुभव से लाभान्वित हो सकेगा। विदित हो कि इस लेटरल एंट्री की सिफारिश 2003 में सुरेंद्र नाथ कमेटी व 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट भी कर चुकी है।
ऐसा नहीं है कि यह लेटरल एंट्री कोई बिल्कुल ही नया कंसेप्ट है। इससे पहले भी इसके तहत भर्तियां हो चुकी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह का वित्त सचिव के रूप में नियुक्त होना , रघुराम राजन जी व नंदन नीलकेणी इस नियुक्ति के सफलतम उम्मीदवारों के उदाहरणों में शामिल हैं।
अब सवाल उठता है कि अगर इससे पूर्व भी हमारे देश में इस तरह की भर्तियां हो चुकी हैं तो फिर इस बार इतना हो -हल्ला क्यों ? दरअसल यहीं पर वह पेंच है जिसको अगर हमने मात्र विपक्षी दलों द्वारा सेकी गई राजनीतिक रोटियां मानकर नजरअंदाज किया तो निश्चित ही हमारा देश लेटरल एंट्री के माध्यम से जिस आवश्यकता की पूर्ति की कामना कर रहा , वह बेमानी साबित होगी। वैश्विक क्रप्शन इंडेक्स जिसमें भारत का 81 वा स्थान है और इज आॅफ डूइंग ( 100 वां स्थान ) जैसी वैश्विक सूचकांक में घटते स्तर में देर नहीं लगेगी।
ऐसी भर्तियां जिसके भर्ती संस्थान की स्पष्ट रूप रेखा ही शामिल न हो भाई भतीजावाद राजनीतिक हस्तक्षेप की भरपूर संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इसी की ओर लोकतंत्र रूपी रथ का दूसरा पहिया यानी विपक्ष आगाह कर रहा है जिसको गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
देश को आवश्यकता किसकी?: जब हमारा देश 1947 में आजाद हुआ उस समय हमारा एकमात्र लक्ष्य देश को एकजुट रखना व गरीबी भूखमरी, रोजगार इत्यादि तक सीमित था। स्पष्ट है कि हमारे प्रशासकों का भी दायरा यहीं तक सीमित होगा, लेकिन वर्तमान के तकनीकी और ‘ डी ग्लोबलाइजेशन ‘ के युग में देश की जरूरतों के साथ-साथ प्रशासकों की भूमिका में भी बदलाव आया है।
अब हमें ऐसे प्रशासक चाहिए जो ऐसी नीति बना सके जिससे कि ‘ अमेरिका फ्स्ट ‘ जैसी नीतियों के चलते हमारा देश कम से कम प्रभावित हो। हमें ऐसे प्रशासनिक अधिकारी चाहिए जो न सिर्फ देश की सामाजिक – आर्थिक जरूरत को बहुत अच्छे से पहचानते हो बल्कि वैश्विक जरूरतों के मध्य हमारे हित प्रभावित ना हो , ऐसी नीति बनाने में सक्षम हों।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जिन सामान्यज्ञों की संघ लोक सेवा आयोग भर्तियां करता है उनकी देश के प्रशासन में महत्वपूर्ण आवश्यकता है। लेकिन इसी के साथ कुछ विभाग ऐसे भी हैं जिसमें देश को विशेषज्ञों की आवश्यकता है जिसे वित्त विभाग। यहां पर अर्थव्यवस्था की अच्छी समझ रखने वाला विशेषज्ञ ही इस विभाग के साथ न्याय कर सकता है।
आपको याद होगा पिछले वर्ष ओखी नामक चक्रवात आया था। इस चक्रवात में इतना नुकसान हुआ था कि जिसके चलते गृह मंत्रालय ने इसे आपदा तक घोषित करना पड़ा। विश्व बैंक की रिपोर्ट पर नजर डालें तो हमारे देश के जीडीपी का 2 फीसद हिस्सा केवल आपदाओं पर खर्च हो जाता है जो केंद्र सरकार के 12 फीसद राजस्व के बराबर है।
कल्पना करें कि अगर हम आपदा प्रबंधन में सामान्य ज्ञान की बजाय विशेषज्ञों की टीम को नियुक्त करें तो देश की मानव संसाधन व खर्च को न्यूनतम कर राजकोषीय घाटे में कमी नहीं ला सकते? उपरोक्त तथ्यों के आधार पर मुझे ऐसा महसूस होता है कि देश को न तो केवल सामान्यज्ञों की आवश्यकता है और न ही केवल विशेषज्ञों की।
बल्कि देश को जरूरत है तो सामान्यज्ञ और विशेषज्ञ के मध्य संतुलन साधने की। लेटरल एंट्री का स्वागत योग्य कदम है , बशर्ते कुछ बातों का ध्यान रखा जाए े पहला यह की भर्ती प्रक्रिया की सपष्ट रूप रेखा सार्वजनिक हो और जितना संभव हो सके इसकी भर्ती प्रक्रिया संघ लोक सेवा आयोग को ही सौंपी जाए।
क्योंकि संघ लोक सेवा आयोग का पिछला ट्रैक भर्ती – पारदर्शिता के मामले में बेहद शानदार रहा है। दूसरा केवल लक्ष्य आधारित क्षेत्रों में ही विशेषज्ञों की नियुक्ति हो ताकि तैयारी करने वाले छात्र खुद को ठगा महसूस न करें के और न ही सत्ता पक्ष के प्रति विरोध का भाव पैदा हो े तीसरा ब्रिटेन की भांति निगरानी हेतु सशक्त तंत्र का निर्माण हो।
और अंतिम लेकिन बहुत महत्वपूर्ण कि, प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति हेतु सीटें में वृद्धि हो क्योंकि नीति आयोग ने 2016 में लेटरल इंट्री का एक कारण देश में आईएएस अधिकारियों की कमी के रूप में भी रेखांकित किया था। अगर हम उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर आगे बढे तो निश्चित ही लेटरल एंट्री का यह कदम न केवल हमारे देश के विशेषज्ञों की आवश्यकता की पूर्ति करेगा बल्कि प्रशासनिक प्रभाविता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
-विनोद राठी
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।