जयपुर में जीका का कहर हमारे लिए चेतावनी है। डेंगू, इन्सेफलाइटिस ,मलेरिया आदि से तो पहले से ही जूझ रहे हैं और अब ये नई बीमारियों का प्रकोप। अब अगर भारत को मच्छरों का देश कहें तो कोई गलत बात नहीं होगी। देश के हर कोने में मच्छरों का जमावड़ा है और इसके विपरीत मच्छरों से मुक्ति के प्रयास नाकाफी है। सरकारी स्तर पर मच्छरों से मुक्ति के काम में ढिलाई बरती गई है। आज जब विश्व के कई देश मलेरिया,डेंगू आदि से मुक्ति पा चुके हैं तब भी हमारी स्थिति बदतर होती जा रही है। दरअसल मुख्य समस्या यह है हमारे यहां केवल मच्छर जनित बीमारियो के इलाज पर ही ध्यान दिया जाता है जबकि ध्यान देना चाहिए मच्छरों के लार्वा को खत्म करने पर। जब मच्छर नहीं रहेंगे तभी रोग नहीं होंगे। मच्छरों से मुक्ति ही इन बीमारियो से निपटने का पुख्ता उपाय है। गौरतलब है कि हर साल बारिश के मौसम के ठीक बाद अनुकूल वातावरण होते ही मच्छरों की तादाद बेतहाशा बढ़ जाती है। हजारों लोग इसका शिकार बनते हैं और पूरा स्वास्थ्य महकमा मच्छरों के आगे बेबस नजर आता है।
राजधानी जयपुर में जीका का प्रकोप चिंता और चिंतन का विषय है। इसके साथ ही दिल्ली सहित लगभग पूरे देश में डेंगू और मलेरिया के सैकड़ों रोगी सामने आना भी गम्भीर बात है। शहरों के साथ ही गावों में भी मच्छर जनित रोग इसी तरह पांव पसार रहे है। यह लोगों की लापरवाही और स्वास्थ्य विभाग की नाकामी दोनों को दशार्ता है। विडम्बना है कि हर वर्ष मलेरिया,डेंगू,चिकुनगुनिया और इंसेफ्लाइटिस जैसी मच्छरजनित बीमारियां महामारी की तरह पूरे देश में फैल जाती हैं और हजारों लोगों की मौत हो जाती हैं। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो भारत दुनिया का ऐसा तीसरा देश है जहाँ मलेरिया से सबसे ज्यादा मौते होती हैं। यह एक राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं है। मौजूदा कार्यक्रमों और व्यवस्था से इन बीमारियों से निजात नहीँ पायी जा सकती है। नेशनल वेक्टर बोर्न डीजिज कन्ट्रोल प्रोग्राम के आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष मलेरिया के 10,59,437 मामले सामने आए। दूसरी ओर डेंगू और चिकुनगुनिया के हजारों मामले तो अलग हैं। यह विडंबना ही है कि मच्छरजनित रोग महामारी का रूप धारण कर लेते हैं तब भी जनस्वास्थ्य सरकार की सर्वोच्च वरीयता का विषय नहीं बनता हैं और इन रोगों का समूलनाश करना भी सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं रहा है क्योंकि अगर प्राथमिकता में शामिल होता तो 1958 में दिए गए नारे “मच्छर रहेगा,मलेरिया नहीँ”के इतने सालों बाद भी इतने मामले सामने नहीं आते।
अभी भी सरकार ने मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य 2030 तक रखा है। ऐसा बिल्कुल भी नहीँ है की देश को मलेरिया, डेंगू आदि से मुक्त नहीँ किया जा सकता क्योंकि मिसाल के तौर पर श्रीलंका ने मलेरिया और न्यूजीलैंड ने अपने आप को डेंगु मुक्त कर लिया है। भारत में इन रोगों के पाँव पसारने के कई कारण हैं जिसमें पहला यह है कि सरकार केवल बरसात के दिनों में इश्तेहार छपवाकर लोगों को मच्छरों से बचाव के तरीके बताकर इतिश्री कर लेती हैं या फिर पारम्परिक तरीके से धुँआ छोड़कर मच्छर प्रजनन नियंत्रण के उपाय किये जाते हैं जो कि अपर्याप्त हैं। जन जागरूकता अभियान भी मंथर गति से चल रहा है। इसके अलावा विदेशों से डेंगु की वेक्सिन लेने में भी ढिलाई बरती गई है। साथ ही साथ घरेलू वेक्सीन तैयार करने के प्रयास भी सुस्त हैं। बजट खर्च बहुत कम हैं। कुछ तो साफ सफाई की कमी और राजनीतिक स्तर पर बरती गई लापरवाही का भी परिणाम है। सोचनीय बात यह भी है यह हमारी भी लापरवाही है कि हम खुद मच्छरों को आश्रय देने का काम करते है।
अपने घर में जब तक कूलर,गमले,पानी के टैंक,पुराना कबाड़, टायर ट्यूब आदि में मच्छर घर बनाते रहेंगे और अंडे पैदा करते रहेंगे तब तक ये बीमारियां भी हमारे घरों में ही रहेगी। फिर हम अगर किसी ओर को या सरकार को दोष देते हैं तो वो ठीक नहीं है। अपने घरों में मच्छरों के लार्वा पनपने नहीं देना हमारी जिम्मेदारी है। पहली शर्त यह है कि पहले हमें खुद को सुधरना और जागरूक रहना होगा। सरकार और जनता,सभी के कारणों से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की उपलब्धि नाकाफी रही हैं। खैर,अब इन रोगों के नियंत्रण के लिए प्रभावी रोडमेप बनाकर युद्ध स्तर पर कार्य करने की जरूरत है। स्वास्थ्य विभाग को बड़े पैमाने पर संभावित एरिया का सर्वे करके और ‘नियंत्रण विभाग’ का पुनर्गठन करके ‘मच्छर लार्वा प्रजनन नियंत्रक वृहद अभियान’ क्रियान्वित करना चाहिए। जिन घरों में मच्छर के लार्वा पाए जाएं उन लोगों पर जुर्माना लगाया जाए। लोगों को साफ सफाई की सख्त हिदायत दी जाए। साथ ही साथ मच्छर प्रजनन नियंत्रक दवाई का छिड़काव भी सतत रूप से जारी रखें। इसके लिए प्रभावी नीति और टास्क फोर्स का गठन किया जाए और जवाबदेही तय की जाएं। लोग स्वयं भी साफ सफाई के प्रति विशेष ध्यान दें। अगर सरकार और जनता दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ पुख्ता साझा प्रयास करें तो इन बीमारियों से मुक्ती पाई जा सकती हैं। नरपत दान चारण
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