भ्रष्टचार समाज पर एक बहुत बड़ा कलंक है। भ्रष्टाचार से मानवीय अधिकारों एवं गरिमा का भी ह्रास होता है। वास्तव अर्थों में भ्रष्टाचार ही विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। निम्न स्तर के कर्मचारी से लेकर मंत्रियों तक भ्रष्टाचार के आरोपों में कार्रवाईयों की खबरें समाचार-पत्रों की मुख्य सुर्खियां बन रही हैं। इसकी कोई मिसाल देने की आवश्यकता नहीं, आम नागरिक इस बात से परेशान है कि क्या इतने भ्रष्टाचार के होते हुए देश विकास कैसे करेगा? दूसरा सवाल यह है कि क्या कानूनी कार्रवाईयां भ्रष्टाचार पर विराम लगा सकेंगी। भ्रष्टाचार के बड़े पहलू देखने को मिल रहे हैं, जिसमें सबसे ज्यादा मामले कर्मचारी व अधिकारी की सांठगांठ से ही शामिल हैं। आम व्यक्ति को सरकारी कार्यालयों में परेशान होना पड़ रहा है। इस मामले में केंद्र व राज्य सरकारों को अपने स्तर पर कदम भी उठाए हैं।
राज्यों की विजीलेंस टीमें आरोपियों को रिश्वत लेते रंगे हाथों दबोच भी रही हैं। ईडी व सीबीआई भी कार्रवाई भी जारी है। छुटपुट राजनीतिक नेता से लेकर विधायक व सांसद के खिलाफ भी कार्रवाई चल रही है। सवाल यह उठता है कि आखिर भ्रष्टाचार रूक क्यों नहीं रहा। एक क्लर्क या अधिकारी पर कार्रवाई होती है, तब होना यह चाहिए कि इस कार्रवाई को देखकर अन्य भी सबक लें व रिश्वत लेना बंद कर दें। लेकिन रोजाना नए घोटालों का खुलासा हो रहा है। वास्तव में अधिकतर मामलों में निलंबित कर्मचारी/अधिकारी बहाल हो जाते हैं और फिर वही काम दोबारा शुरू कर देते हैं। वास्तव में कानूनी कार्रवाई के दौरान खामियों के चलते आरोपी कानूनी शिकंजे से बच निकलते हैं। जहां तक प्रसिद्ध राजनीतिक हस्तियों पर मुकदमों का संबंध है कोई नेता ही सजा तक पहुंचता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि सरकार चली जाने पर विपक्ष में बैठा मुख्यमंत्री अदालतों के चक्कर काटता है।
पेशी के दौरान नेताओं की सुरक्षा व अन्य प्रबंधों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। परिणाम नहीं निकलता कि दोषी कौन है? यदि मामला झूठा था तब भी यह देश के साथ धोखा है कि बिना वजह अदालतों का समय बर्बाद किया गया व राज्य पर भी कर्ज बढ़ा। यदि केस की पैरवी में कमी थी तब भी इसका कोई जवाब नहीं। इन परिस्थितियों में भ्रष्टाचार समस्या कम व राजनीतिक खेल ज्यादा बनकर रह जाती हैं। पुलिस या विजीलैंस की कमजोर पैरवी के कारण आरोपी राजनेता सजा से बच निकलते हैं। राजनीतिक सिस्टम की इस बात का कोई जवाब नहीं कि वह केस झूठा था या पैरवी कमजोर थी। वास्तव में राजनीति में ईमानदारी व देश के प्रति वफादारी बढ़ने से भ्रष्टाचार का समाधान होगा। निर्दोषों को फंसाया ना जाए व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में कमी न रहे। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई किसी को बदनाम करने या पार्टी के नंबर बनाने की अजमाईश का दूसरा नाम नहीं होनी चाहिए।
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