कृ.स्व.शर्मा मैथिलेन्द्र। महान देश भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय आचरण भ्रष्टाचार (Corruption) बन चुका है। इसे राष्टÑीय आचरण की श्रेणी में रखा जा सकता है। आज भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत मजबूत हो गई हैं। वैसे तो भारतीय जन गण आदिकाल से विभिन्न प्रकार के उत्कोच भगवान को समर्पित करता रहा है अर्थात भ्रष्टाचार हमारी संस्कृति में घुला मिला है। कुछ ही समय में यह हमारे शिखर पर आसीन हो जायेगा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक एकता का एक ही सूत्र है भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार है जन्म से मरण तक, गलियारों घूरे और कचरों के ढेरों तक। भ्रष्टाचार सर्वव्याप्त है। सदाचार अकेला भूखा मर रहा है। आज कोई ईमानदार है तो इसलिए चूंकि उसे अवसर नहीं मिल पा रहा है। भ्रष्टाचार करो और भ्रष्टाचार का आश्रय लेकर छूट जाओ। न्याय अन्याय सभी भ्रष्ट है। सबका आश्रय दाता भ्रष्टाचार प्रतीत हो रहा है। ईमानदारी और सदाचरण से जनसाधारण का विश्वास अत्यंत क्षीण हो गया है।
अभी कुछ समय पूर्व तक कुछ विशिष्ट लोगों ने भ्रष्टाचार (Corruption) के सुफल प्राप्त किये हैं। किसी चीज की अति सदैव हानिकारक होती है। पहले देश का धन देश में ही है, की तर्ज पर कुछ हद तक इसे स्वीकार कर लिया गया था, परन्तु अब तो देश का धन देश के बाहर जा रहा है। विदेशी बैंकों में धन जमा किया जा रहा है। इस काले धन का दुरूपयोग देश द्रोही और जन विरोधी कार्यों में हो रहा है। भ्रष्टाचार सीमाओं को लांघ चुका है। जनता द्वारा भ्रष्टाचार के सहारे बनाई गई मूल्यवान सम्पत्ति बर्बाद की जा रही है। गरीब जनता की झुग्गी झोपडियां तो चाहे जब ढहायी जाती रही है। अब यह हानि मध्यम और सम्पन्न जनता की भी हो रही है। अवैध मकान निर्माण भ्रष्टाचार के सहारे ही संभव हो सका है। ईमानदारी से की जाने वाली कानूनी प्रक्रिया इतनी उलझाऊ और लम्बी है कि साधारण आदमी भ्रष्टाचार का छोटा और सरल रास्ता अपनाने को विवश हो जाता है। ईमानदार आदमी का कानून और न्यायालय साथ नहीं देता है।
जनता की अरबों रूपया की सम्पत्ति भ्रष्टाचार (Corruption) के कारण मिट्टी में मिल रही है। अब जनता को निर्णय करना है कि भ्रष्टाचार का साथ कहां तक दिया जावे? इसका साथ छोड़ना होगा, चाहे कितना भी कष्ट हो, भ्रष्टाचार की शरण में न जाया जाये, ऐसी चेतना आवश्यक हो गई है। अन्यथा जनता ऐसे ही पिसती रहेगी। सम्पत्ति ही नहीं जन सुविधाएं भी भ्रष्टाचार लीलता जा रहा है। चिकित्सा, शिक्षा, न्याय, विद्युत, पानी आदि सभी सुविधाएं भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं। सभी कुछ अभाव और परेशानियां जनता को ही भोगना है। जन प्रतिनिधि, सेठ साहूकार अधिकारी कर्मचारी सुरक्षित चरते रहेंगे।
जनता भ्रष्ट और बेईमान प्रतिनिधियों को चुनकर पंचायत, विधानसभा, संसद आदि में भेजती है। अकेले या चंद मानव समूह के आतंक के डर से भी जनता उनका विरोध नहीं कर पाती है। जनता भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाती है। नियुक्ति पदोन्नति, स्थानातरण इत्यादि में नि:संकोच मंत्रियों और संत्रियों के बीच रूपयों का लेन-देन होता है। ऐसे नेता इस देश को बेच सकते हैं।
भ्रष्टाचार के सामने नतमस्तक हो जाना अब किसी के हित में नहीं है। भ्रष्टाचार (Corruption) को अपना मत और सहमति देना अत्यन्त घातक होता जा रहा है। फटे आकाश में कहां-कहां थेगली लगाएंगे। बस एक मात्र जनता ही सुमार्ग दिखा सकती है। जनता को अब सचेत हो जाना चाहिए। अन्यथा जनता को ही अपार हानि, क्षति, गरीबी, भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। समाज के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्यभिचार, हिंसा फैल चुके हैं। चोर सिपाही का अन्तर समाप्त हो चुका है। वर्तमान सज्जनता का रूप घिनौना और कायराना होता जा रहा है।
अपराधियों के हौंसले इतने बढ़ गए हैं कि वे कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं। यदि सज्जनता ऐसे ही निष्क्रिय बनी रही तो गरीब निरीह अबलाओं की आहें ऐसी सज्जनता का मुखौटा नोंच डालेंगी और सज्जनोें को छांट-छांट कर मारा जायेगा। अधिकांश दुर्घटनाओं में निर्दोषों का मारा जाना इसी की शुरूआत है। ऐसा जमाने में घटना भी चालू हो गया है। अत: जनता का जागृत होना आवश्यक है। सज्जनोें को जानना चाहिए कि इंसान का मरना तो हर हाल में है क्यों न जनता के हित में मरें , जिसमें उनके स्वयं के भी हित हैं। अब तो जागें और देखें कम से कम अपने हितों को। कदाचरण से कुछ का भला होगा और सदाचरण से सब का।