दिल्ली में कोरोना महामारी का प्रकोप निरंतर जारी है, इसके बावजूद राजनीतिक दलों में एकजुटता नहीं दिख रही। सत्ता पक्ष आम आदमी पार्टी अब इस जंग को मीडिया में ले आया है। उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उप-राज्यपाल द्वारा जारी मरीजों के जांच संंबंधी नियमों को वापिस लेने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री से अपील की है। केंद्र द्वारा जारी नियमों के अनुसार किसी व्यक्ति में कोरोना लक्ष्ण और मरीज की जांच सरकारी क्वारंटाईन केंद्र पर होनी आवश्यक है। दरअसल मुख्यमंत्री केजरीवाल मरीजों की बढ़ रही गिनती के मद्देनजर मरीजों की घर में ही जांच व उपचार के लिए क्वारंटाईन की बात कह रहे हैं, जिस प्रकार दिल्ली में मरीजों की गिनती बढ़ रही है, ऐसे वक्त में राजनीतिक कलह दुखद व निराशाजनक है।
मरीजों की गिनती में दिल्ली ने मुंबई को भी पीछे छोड़ दिया है। वहीं दिल्ली में मरीजों की गिनती 70 हजार को पार कर चुकी है। मरीजों के ठीक होने के पश्चात 27 हजार से अधिक मरीज अभी उपचारधीन हैं। महाराष्ट्र के बाद सबसे अधिक मौतें दिल्ली में हुई हैं, यहां अभी तक 2300 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। इन परिस्थितियों में सरकार में एकजुटता आवश्यक है। यदि मरीजों की गिनती इसी तरह बढ़ती गई तब उपचार के लिए जारी प्रबंधों में रूकावट आएगी जो मरीजों के लिए खतरनाक साबित होगी। दिल्ली सरकार पर पहले ही यह आरोप लग चुका है कि यहां शवों की संभाल नहीं की गई। इसी तरह दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में खाली बैड होने के बावजूद मरीज दर-दर भटकते रहे दूसरी ओर निजी अस्पतालों ने मरीजों से खुलकर पैसा लूटा। राज्यपाल और मुख्यमंत्री की कलह तुरंत खत्म होनी चाहिए। वास्तव में दोनों पक्षों की दलीलें वाजिब हो सकती हैं, लेकिन विभिन्न परिस्थितियों और स्थानों के अनुसार किसी व्यक्ति को शुरूआती लक्षणों के पश्चात घर में भी रखना सही साबित हो सकता है, क्योंकि घर-परिवार का माहौल संदिग्ध मरीज को मानसिक रूप से मजबूत बनाएगा और अस्पतालों में बैड्स की कमी और भीड़भाड़ से भी बचा जा सकेगा।
वहीं दूसरी तरफ गंभीर मरीजों के लिए अस्पतालों में भर्ती होना आवश्यक है। दोनों पक्ष अपने राजनीतिक नफे-नुक्सान या जिद्द को छोड़कर एक-दूसरे को सहयोग करें। यूं भी केंद्र कई मामलों में राज्य सरकारों को अपने ढंग से चलने के लिए कह रहा है। कई राज्य केंद्र की उम्मीद से अधिक काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब मॉडल की सराहना भी की है। सभी को यह बात समझनी होगी कि यह मरीजों के प्रति संवेदनशीलता का समय है। इसे चुनावों का मौका न समझा जाए अन्यथा भारतीय राजनीति के लिए सबसे दुखद बात होगी कि नेताओं के लिए बड़े से बड़े मानवीय संकट में भी क्षुद्र राजनीति सबसे महत्वपूर्ण है।
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