देश में कोरोना मरीजों का गिनती लगातार बढ़ रही है। मरीजों का आंकड़ा 22 लाख को पार कर गया है और हर दूसरे दिन एक लाख के करीब मरीज संक्रमित मिल रहे हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरिन्दर मोदी ने पंजाब सरकार के जिस माडल की प्रशंसा की थी, वह पंजाब ही अब चिंताजनक मोड़ पर आ खड़ा है। पिछले माह पंजाब में रोजाना 200-300 मरीज मिलते थे जो अब रोजाना एक हजार से अधिक मरीज आ रहे हैं। पंजाब में रोजाना कोरोना से मरने वालों की गिनती 30 को पार कर गई है। हरियाणा की अपेक्षा मरीजों की गिनती कम होने के बावजूद पंजाब में मृत्यु दर ज्यादा है।
प्रधानमंत्री ने पंजाब, महाराष्टÑ, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तामिलनाडु, कर्नाटक और बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश दस राज्यों के मुख्य मंत्रियों के साथ बातचीत करते हुए कहा है कि हैं कि यदि इन राज्यों का सहयोग मिले तो कोरोना के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर की जंग जीती जा सकती है। प्रधानमंत्री की मीटिंग से यह भी स्पष्ट होता है कि इन राज्यों में स्थिति बुरी है और सुधार के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री ने इन दस राज्यों को आपस में विचार-विमर्श करने के लिए भी कहा है लेकिन यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि केंद्र को ही राज्यों का नेतृत्व करना चाहिए भले ही इससे पहले राज्यों ने अपने स्तर पर कई निर्णय लिए हैं, लेकिन जब हालात कठिन हो जाएं तब केंद्र को ठोस नेतृत्व के लिए प्रयास करने चाहिए। सबकुछ राज्यों पर ही न छोड़ा जाए, केंद्र अपने स्तर पर कुछ करे।
दरअसल अनलाक की प्रक्रिया के अंतर्गत जैसे-जैसे पाबंदियां हटाई गई हैं उसी प्रकार मरीजों की गिनती में विस्तार हुआ है। आर्थिकता के लिए पाबंदियां हटाना आवश्यक था, लेकिन समीक्षा भी जरूरी है। यूं ही देश में ऐसा ही हो रहा है कि जो पाबंदी हट गई, उन्हें दोबारा लागू ही नहीं किया जा रहा। दूसरी तरफ मास्क और सामाजिक दूरी का नियम भी पूरी तरह लागू नहीं हो रहा। एक राज्य का स्वास्थ्य मंत्री मास्क न पहनने और आपसी दूरी का नियम तोड़ने के कारण चर्चा में रहा है। जब मंत्री ही नहीं मानेंगे तब आम लोग कैसे मानेंगे? जनता की लापरवाही वाली सोच से सरकारें भी तंग और लाचार हैं इसीलिए यह आवश्यक है कि देश में सबसे अधिक प्रभावित राज्यों की मदद के लिए केंद्र कोई नई रणनीति बनाए। राज्यों की मदद के लिए प्रयास करने होंगे।
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