सरसा । पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि उस परमपिता परमात्मा का नाम जिसके दिलो-दिमाग में छाया रहता है, वो इन्सान पल-पल असीम शांति, परमानन्द, लज्जत हासिल करता रहता है। वो दुनिया की गंदगी की तरफ नहीं दौड़ता, वो दुनिया की गंदगी में नहीं खोता, बल्कि परमपिता परमात्मा का प्यार, उसकी मोहब्बत हासिल करके वो तमाम खुशियां, लज्जतें हासिल करता है, जिसे लिख-बोल कर नहीं बताया जा सकता।
आप जी फरमाते हैं कि आप परमपिता परमात्मा की दया-मेहर को हासिल करना चाहते हैं, तो आप मालिक के नाम के साथ जुड़ जाओ। नाम जपना न पड़े बल्कि अपने आप चलता रहे, ऐसा तब होता है, जब आदमी रूचि से, सच्ची भावना, तड़प से लगातार सुमिरन करता रहता है। उदाहरण के तौर पर, जैसे आपको कोई गीत अच्छा लगता है, आप दिलो-दिमाग में उसे बैठा लेते हैं। कहीं मौसम अच्छा है, कहीं वैसे जगह आ गई, आप खुश हुए तो एटोमैटिकली आपकी जुबान पे वो शब्द, वो गीत गूंजने लगता है। उसी तरह परमपिता परमात्मा के नाम को, गुरुमंत्र को, कलमां को आप अपनी जुबान पर चढ़ा लीजिए।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि कहीं भी आप अपने आपको अकेला महसूस करें, कहीं भी आपको जरा-सी उदासी आने लगे या आपको बहुत खुशी आने लगे या आप नॉर्मल जिंदगी जी रहे हैं, तो ऐसे में जब आपकी जीह्वा पर अपने आप राम-नाम चलना शुरू हो जाए तो यकीनन आपके गम, दु:ख-दर्द खत्म हो जाएंगे और जीवन में परमानन्द छा जाएगा, जो हमेशा बहारें बनाकर रखेगा, कभी भी पतझड़ नहीं आने देगा। यह तभी संभव है, जब व्यक्ति लगातार सुमिरन करे और सुमिरन में रूचि पैदा कर ले।
आप जी फरमाते हैं कि जब आपने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी कि मैंने तो मालिक का नाम जपना है या आप सेवादार हैं, समय निकालते हैं, सुबह-शाम सत्संग, मजलिस सुनते हैं तो आपका फर्ज है कि सुमिरन के भी पक्के बनो, फिर देखो नजारे, फिर देखो लज्जतें। इतनी ज्यादा आएंगी कि कोई रोक नहीं पाएगा। पर आप शायद फर्ज-सा अदा कर देते हैं। ज्यादातर लोग आए, सुना, बहुत बढ़िया और बाहर निकले तो फिर से गपशप शुरू कि भई, वो समय था, अब ऐसे। वाकई वो समय लेखे में लग गया, इसमें कोई दो राय नहीं, जितना समय आप सत्संग, मजलिस में बैठते हैं, वो तो दरगाह में मंजूर होता ही होता है। लेकिन कर्म-चक्कर का दायरा इतना बड़ा है, जो ऐसे नहीं कटता। जो समय आप बैठकर जाते हैं, उस समय को फोलो करो।
पीर-फकीर जो कहते हैं कि नाम जपो, बेगर्ज प्यार करो, उस पर अमल करो तो जन्मों-जन्मों के पाप-कर्म कटते जाते हैं और आप हमेशा सुखी बने रहते हैं। संतों का काम बताना है, मानना या न मानना आपकी मर्जी है। जो लोग मानते हैं वो सुखी रहते हैं, जो नहीं मानते वो अपने कर्मों का बोझ उठाते हैं। इसलिए नाम जपा करो, नाम से जुड़े रहो, नाम ही सुखों की खान है, नाम ही परमानन्द दिलाने वाला है। जो नाम से जुड़ते और उस पर चलते हैं, वो यकीनन दोनों जहान की खुशियां हासिल करते हैं।
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