बोरवेल खुले रखने का सिलसिला जारी

Continuance of boring

पंजाब में सुनाम शहीद उधम सिंह वाला में मासूम फतेहवीर सिंह की मौत के बाद भी सरकारें व प्रशासन सीख लेने के लिए तैयार नहीं। फतहवीर के मामले के बाद मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने 24 घंटों में खुले पड़े बोरवेलों की रिपोर्ट मांगी थी। उस वक्त प्रशासन कुछ समय के लिए तो सक्रिय दिखा और कुछ खुले पड़े बोरवेल बंद भी करवाए गए, लेकिन एक सप्ताह बाद में प्रशासन व सरकार इसे भूल गए हैं। खुले बोरवेलों को मुकम्मल तौर पर बंद करने का काम नहीं हो सका। फतेहवीर की मौत से 15 दिन बाद भी पंजाब के जिला मानसा में तीन खुले बोरवेल मिले हैं।

हालांकि इससे पूर्व जिला प्रशासन अपना काम मुकम्मल हुआ समझकर बैठ गया था। अन्य कई जिलों में भी खुले बोरवेल मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। खुले बोरवेलों की समस्या केवल पंजाब तक ही सीमित नहीं बल्कि हरियाणा, राजस्थान सहित देशों के विभिन्न राज्यों में ऐसी घटनाएं घटती रहती है। बोरवेल में गिरने से लगभग 50 के करीब बच्चों की मौतें हर साल होती हैं। फतेहवीर की मौत से दो दिनों बाद ही जम्मू कश्मीर में ऐसी घटना घट गई थी। हरियाणा में प्रिंस नाम के बच्चे का मामला भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना रहा था।

सरकारों व पारिवारिक सदस्यों की लापरवाही मासूमों की जिदंगीयां निगल रही है। यह मामले केवल राज्य सरकारों तक सीमित रह जाते हैं। संसद में इन मामलों पर चर्चा बहुत कम होती है। दरअसल बच्चों का मामला संवेदनशील है जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। केवल बोरवेल ही नहीं शहरों व गांवों में सीवरेज के खुले पड़े मेनहोल व गहरे गड्ढे भी मासूमों के लिए मौत बनकर आते हैं। विशेष तौर पर बरसात के दिनों में यह समस्या आम देखने को मिलती है। सरकार व प्रशासन के साथ साथ समाज के गणमान्यजनों और अभिभावकों को भी इस मामले में अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है। कानून केवल बहस का विषय नहीं बल्कि उसे लागू करके ही मासूमों की सुरक्षा की यकीनी बनाई जा सकती है। यदि 50 फीसदी भी कानून लागू हो जाए तब बड़े स्तर पर परिवर्तन हो सकता है।

 

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