हरियाणा में कृषि उत्पादन में 30 प्रतिशत कमी की सम्भावना
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उचित प्रबंधन न होने से व्यर्थ बह जाता है 70 प्रतिशत सिंचाई जल
सच कहूँ/संदीप सिंहमार, हिसार। जल की लगातार बढ़ती खपत के चलते कृषि क्षेत्र के लिए जल की मात्रा घटी है। गेहूं-धान फसल-चक्र वाले क्षेत्रों में भू-जल के अति दोहन के कारण भी जल स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। इसलिए कृषि के लिए जल की उपलब्धता एक मुख्य समस्या के रूप में उभरकर आ रही है। यदि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन इसी तरह जारी रहा तो हरियाणा में आने वाले समय में सिंचाई तो दूर की बात, लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल की भारी कमी हो सकती है तथा इस कारण से कृषि उत्पादन में 30 प्रतिशत कमी की सम्भावना भी है। यह महत्त्वपूर्ण चिंतन बुधवार की हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के प्रांगण में लगे कृषि मेले के उद्घाटन समारोह में हुआ मेले का थीम भी जल संरक्षण रखा गया है।
कृषि के लिए जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जल का उचित प्रबन्धन न होने से करीब 70 प्रतिशत सिंचाई का जल व्यर्थ बह जाता है। इसलिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तकनीकों और विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों को किसान ज्यादा से ज्यादा व्यवहारिक रूप से अपनाएं। कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र ने भी इसी मुख्य बिंदु पर अपनी बार रखी। महापात्र ने कहा कि हरियाणा जैसे प्रदेश में इतनी ज्यादा मात्रा में पानी का बेकार जाना चिंता का विषय है।
बूंद-बूंद की करें बचत, जल संरक्षण समय की मांग
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने कहा कि हमें जल की बूंद-बूंद की बचत करनी चाहिए क्योंकि जल संरक्षण समय की मांग है। हमें जल संसाधनों का बेहतर प्रयोग, वाटरशेड विकास, वर्षा जल संचय तथा उन्नत तकनीकों को अपनाकर पानी का उचित प्रबन्ध करने की अति आवश्यकता है। बूंद-बूंद पानी का सदुपयोग करें तथा ऐसा करने के लिए भूमिगत पाइप लाइन, टपका सिंचाई तथा फव्वारा सिंचाई जैसी पद्धतियां अपनाएं। इजरायल जैसे छोटे देश के प्राकृतिक संसाधन कृषि के अनुरूप नहीं हैं फिर भी यह देश विश्व में आधुनिक कृषि तकनीकों के मामलों में सबसे आगे है। पानी के सदुपयोग के लिए हमारे किसानों को भी इजरायल द्वारा विकसित की गई टपका तथा अन्य सिंचाई सम्बन्धी तकनीकों को अपनाना होगा।
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