संज्ञा समझो प्यारे! दुखिया सारे!

Consider it noun dear All sad
सामाजिक कार्यकर्ता और मणिपुर की कवियित्री इरोम कानु शर्मिला को पूरा विश्व सबसे लंबे समय तक भूख हड़ताल करने वाली महिला के रुप में जानता है। सन 2000 में विशेष शस्त्र कानून के खिलाफ शुरू हुआ इरोम का संघर्ष 2016 तक चला। असम राइफल्स ने कथित तौर पर मालोम इलाके में 10 लोगों की उपद्रव फैलाने के आरोप में हत्या कर दी थी। इन मौतों को मुद्दा बनाकर शर्मिला ने राज्य से भारत सरकार के विशेष शस्त्र कानून (एएफएसपीए) को हटाने की मांग शुरू की। यह खास कानून पूर्वोत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों और कश्मीर में भी लागू है। इसके अंतर्गत सेना के लोग बिना किसी कागजात के ना सिर्फ किसी के भी घर में घुस सकते हैं, तलाशी ले सकते हैं, बल्कि उन्हें किसी को भी मौके पर ही गोली मारने का भी अधिकार है।
इसे मानवाधिकारों का खुला उल्लघंन मानने वाली मणिपुर की लौह महिला शर्मिला ने साल 2000 से ही खाना पीना छोड़ आमरण अनशन शुरू किया जो साल 2016 तक चला। इतने सालों से उन्हें जबरदस्ती नाक से खिलाया जाता रहा है। भारत में आत्महत्या को अपराध माना जाता है और इसी कारण उन पर इस मामले में मुकदमा भी चला। लेकिन मणिपुर की सत्र अदालत ने केस खारिज कर दिया। वह पिछले कई सालों से जेल में रही हैं। जब भी उन्हें रिहा किया जाता है फिर कुछ ही दिनों में उन्हें आत्महत्या की कोशिश के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया जाता है। इतने सालों से सामान्य तरीके से आहार ना लेने के कारण अब उनका शरीर भी इसे स्वीकार नहीं कर रहा। शर्मिला के परिवार वालों का कहना है कि आत्महत्या के आरोपों से मुक्त कर रिहा किए जाने के बावजूद उनकी सेहत को देखते हुए अस्पताल में ही रखना पड़ सकता है। एएफएसपीए कानून के दुरुपयोग का मुद्दा अभी भी सुलझा नहीं है।

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