प्रियंका गांधी का आखिर कांग्रेस में विधिवत प्रवेशित हो ही गई है। कांग्रेस में लम्बे समय से प्रियंका को लाने की मांग उठती रही है। प्रियंका गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उनको पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है। प्रियंका गांधी का सक्रिय राजनीति में आना ही कांग्रेस के लिये एक बड़ा कदम है। राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस का नेतृत्व संभालने के बाद से ही वह कांग्रेस में जान फंूक पाने में सफल नहीं हो पा रहे थे। ऐसे में प्रियंका गांधी का जिम्मेदारी संभालना शायद कांग्रेस के लिए संजीवनी बन सके। जब प्रियंका गांधी कांग्रेस में विधिवत रूप से शामिल नहीं थी तब भी उनका कांग्रेस की राजनीति में बराबर हस्तक्षेप बना रहता था। सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में तो चुनाव प्रचार की पूरी बागडोर ही उनके हाथ में रहती थी। राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी गतिरोध तोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका प्रियंका गांधी ने ही निभाई थी। उनके हस्तक्षेप से ही पार्टी तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियो के नाम तय कर पाई थी।
सपा-बसपा ने जिस तरह से उत्तरप्रदेश में गठबंधन कर कांग्रेस को ठेंगा दिखाया उससे कांग्रेस पार्टी के नेता सकते में आ गए थे। कांग्रेस को लगने लगा कि सपा बसपा के बिना उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की दाल गलने वाली नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास अपने अंतिम तुरूप के पत्ते प्रियंका गांधी को चलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। प्रियंका गांधी को उत्तरप्रदेश का प्रभार देकर कांग्रेस ने सपा-बसपा को करारा जवाब देने का प्रयास तो किया ही है साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी घेरा है। नरेन्द्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने से रोकना भी प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने का एक मुख्य कारण है। कांग्रेस नेताओं को लगता है कि प्रियंका गांधी में उनकी दादी इन्दिरा गांधी की झलक दिखती है। प्रियंका गांधी का राजनीति में आना कांग्रेस के कार्यकतार्ओं में जोश भरने का काम करेगा ही साथ ही भाजपा विरोधी गठबंधन में कांग्रेस की प्रमुख भूमिका भी बन पाएगी। हालांकि राजनीतिक पंडित प्रियंका गांधी के राजनीति में आने को देश के लोग राहुल गांधी की राजनीतिक विफलता के तौर भी लेने की संभावना जता रहे हैं। चूंकि अभी तक कांग्रेस में सिर्फ राहुल गांधी ही सत्ता के केन्द्र बने हुए थे मगर प्रियंका गांधी के आने से सत्ता के दो केन्द्र बनना स्वाभाविक ही है।
सोनिया गांधी को इस बात का अच्छी तरह से पता था कि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से राहुल गांधी के सामने सत्ता का दूसरा केन्द्र भी बनना संभव है। कांग्रेस के पास फिलहाल प्रियंका गांधी से बड़ा काई ब्रम्हास्त्र भी नहीं हैं। यदि प्रियंका गांधी भी कांग्रेस की केन्द्र में वापसी नहीं करवा पायी व पार्टी से विमुख हो चुके देश के मतदाताओं को फिर से कांग्रेस से जोड़ पाने में नाकाम रही तो कांग्रेस के पास फिर अन्य कोई विकल्प नहीं रहेगा। अब प्रियंका गांधी की सफलता असफलता पर ही कांग्रेस पार्टी का भविष्य टिका है।
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