नागरिकता व जनसंख्या रजिस्टर पर भी भ्रम

Confusion

नागरिकता संशोधन बिल और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर हो रही राजनीतिक बयानबाजी को लेकर जनता में असमंजस की स्थिति बन गई है। केंद्र सरकार और विपक्षी दलो ने इस मुद्दों पर अलग-अलग परिभाषाएं, व्याख्याएं व बयानबाजी की, जो अनिश्चितता का माहौल पैदा करती है। संघीय ढांचें के बावजूद हमारे देश का एक संविधान और एक ही कानून है जिस पर दोहरी व्याख्या व भ्रम की स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने कहा कि सिटीजनशिप की व्याख्या को पूर्व कांग्रेसी मंत्री पी. चिदम्बरम नागरिकता की बजाय रिहायश के तौर पर कर रहे हैं। यूपीए सरकार के समय एपीआर और एनडीए सरकार के एनपीआर में भाजपा और कांग्रेस के दावे अलग-अलग हैं।

डीटैंशन सेंटरों पर भी दोनों पार्टियां एक-दूसरे को कोस रही हैं। कानूनों को लागू करने के मामले में केंद्र व विरोधी पार्टियों की सरकारों वाले राज्यों में खींचतान चल रही है। नागरिकता संशोधन बिल की तरह केरल ने एनपीआर न लागू करने की घोषणा कर दी है। केंद्र व राज्य सरकारें सत्तापक्ष व विपक्ष ने एक ऐसा माहौल बना दिया है कि आम व्यक्ति को समझ ही नहीं आ रही कि संविधान की महत्वता का आधार क्या है? दरअसल नीतियों की अपेक्षा विचारों की भिन्नता को अधिक महत्व दिया जा रहा है लेकिन हिंसक प्रचार देश के लिए घातक है, जो किसी कानून के निर्माण में बाधा बनता है। सरकार को अपना रूख स्पष्ट करने और विरोधियों के शंकाओं को दूर करने के लिए पूरी जिम्मेदारी से काम करने की आवश्यकता है।

क्या एनपीआर को एनआरसी के लिए आधार के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा? एवं डिटेंशन सेंटरों का उद्देश्य क्या है? इसे लेकर भी सभी भ्रमों को दूर किया जाना चाहिए। आज सूचना प्रौद्यौगिकी का युग है। फिर सूचना प्राप्त करना नागरिकों के अधिकारों में शामिल किया जा चुका है। सूचना अधिकार कानून बनने के बावजूद जनता अंधेरे में रहे तब भी कानून की सार्थकता पर सवाल है? सही सूचना ही भ्रम और असमंजस को खत्म करती है। तथ्यों व सबूतों को छिपाना जनता को भ्रमित करना है। छल-कपट की राजनीति देश का नुक्सान ही करेगी। लोकतंत्र सच्चाई व जनता के प्रति जवाबदेही का तंत्र है इसीलिए जनता को गुमराह न किया जाए।

 

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