देश में मानसून सक्रिय है। निश्चित रूप से जो लोग भीषण गर्मी के प्रकोप से त्राहि त्राहि कर रहे हैं उन्हें वर्षा ऋतु से होने वाले मौसम परिवर्तन के बाद होने वाले तापमान में गिरावट से काफी राहत महसूस होगी । परन्तु प्रकृति प्रदत्त यही राहत प्राय: उस समय मानव संकट में भी बदल जाती है जबकि मानसून में होने वाली यही बारिश इंसानों को सुकून व राहत देने के बजाये उसकी परेशानी, तबाही व बबार्दी का कारण बन जाती है। देश के कई राज्य आज भी ऐसे हैं जहां सरकार चाहते हुए भी बाढ़ के प्रकोप से इंसान व उसे होने वाले नुक्सान को नहीं बचा पाती है। मानसून शुरू होते ही विभिन्न राज्यों की अनेक उफनती हुई नदियां प्रत्येक वर्ष मानवीय तबाही का नया इतिहास लिखती हैं।
कहीं पुल बह जाते हैं, कहीं बांध टूट जाते हैं, कहीं पूरे के पूरे गांव बाढ़ की विनाशलीला की भेंट चढ़ जाते हैं। बारिश भले ही एक दिन की हो, पानी खड़ा रहने से ईमारतों का करोड़ों-अरबों रुपये का नुकसान हो जाता है। कहीं सीवरेज के मेन होल के ढक्कन नहीं होने के कारण व कहीं बिजली के लोहे वाले पोल में करंट आने से जानी नुक्सान भी होता है। रेलवे ने अंडरपास बनाए हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंडरपास पानी खड़ा होने के चलते लोगों के लिए मुसीबत बन जाते हैं। वास्तव में सुधार कार्यों में देरी कई समस्याएं पैदा करती है। छह माह या एक वर्ष में पूरे होने वाला काम जब तीन-तीन साल तक लटक जाए तब समस्या से निपटना आसान नहीं। सरकारों को मानसून में सावधानी वाले बोर्ड व प्रचार करने के लिए नई नीति बनानी चाहिए, यहां तक कि बिजली के लोहे वाले खंभों के पास लिखित सूचना का बोर्ड लगाया जाना चाहिए।
सड़कों के नजदीक गड्ढों की पहचान कर उन्हें भरा जाए। बड़े-बड़े शहरों में सीवरेज सिस्टम में सुधार होना जरूरी है। सरकार के पास फंड की कमी नहीं बल्कि रिलीज होने वाले फंडों को समयनुसार खर्च किया जाए। देश में ‘स्वच्छ भारत’ की मुहिम भी रंग लाई है। इंदौर मॉडल को अपनाकर कई शहर सफाई में मिसाल बन गए हैं। शहरों को सुरक्षित व निकासी की समस्या से राहत बनाने के लिए भी कोई योजना बनाने की आवश्यकता है। इसी तर्ज पर निकासी के लिए ठोस कार्यक्रम बने ताकि मॉनसून में परेशानी व जान-माल के खतरों से बचे रहें। बारिश जीवन के लिए वरदान साबित हो व अप्राकृतिक घटनाएं न घटित हों।
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