हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नौकरशाही में व्यापक सुधार के लिए ‘मिशन कर्मयोगी’ को मंजूरी दे दी। इसका उद्देश्य ऐसे लोक सेवक तैयार करना है, जो अधिक रचनात्मक, चिंतनशील, नवाचारी, व्यावसायिक और प्रौद्योगिकी सक्षम हों। मिशन कर्मयोगी का उद्देश्य पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी के माध्यम से भविष्य के लिए सरकारी कर्मचारियों को अधिक सृजनात्मक, रचनात्मक और नवोन्मेषी बनाना है। इस कार्यक्रम को लोक सेवकों के लिए क्षमता विकास के लिए आधारशिला रखने हेतु बनाया गया है ताकि वे भारतीय संस्कृति और संवेदनाओं से सराबोर रहें और विश्व भर की श्रेष्ठ पद्धतियों से सीखते हुए अपनी जड़ों से जुड़े रहें।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में निर्बाध विकास के लिए श्रेष्ठ नौकरशाही का होना अनिवार्य है। नौकरशाही ही वह धुरी है जिस पर शासन चलता है। दरअसल, शासन और प्रशासन का बेहतर समन्वय व सहयोगात्मक स्वरूप ही किसी देश के विकास की गति को सुनिश्चित करता है। यह नौकरशाही पर ही निर्भर करता है कि वह लालफीताशाही, पक्षपात, अहंकार, भ्रष्टाचार व अभिजात्य के लिए कुख्यात रहकर अवनति का कारक बनें या फिर सकारात्मक अर्थों में प्रगति, कल्याण, सामाजिक परिवर्तन, कानून व्यवस्था एवं सुरक्षा के संवाहक बनकर देश को उन्नति की दिशा की ओर अग्रसर करें। भारत में आजादी के बाद से ही एक अच्छी नौकरशाही की मांग पुरजोर तरीके से उठती रही है। एक अच्छी नौकरशाही के अभाव में भारत में आज भी सर्वजन सर्वांगीण विकास का स्वप्न अधरझूल में लटक रहा है। हम आजादी के सात दशक बाद भी नौकरशाही को रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार के कलंक से मुक्त नहीं कर पाये यह हमारे लिए विडंबना का विषय है।
जनमानस की आमधारणा के रूप में आज भी नौकरशाही आरामतलबी, काम टालने की प्रवृत्ति, नियमों को ताक पर रखकर अफसरशाही का असर दिखाने का जरिया बनने तक ही सीमित है। लगता है कि जनहितकारी नौकरशाही अपने संकीर्ण स्वार्थपूर्ति की चाह में राजनेता व राजनीतिक हितों के प्रति अधिक आश्वस्त होकर उनके हाथों की कठपुतली बनती जा रही है। भारतीय नौकरशाही में दिनोंदिन नैतिक गुणों का होता अभाव इस बात का प्रमाण है कि पारदर्शी, निष्पक्ष, संवेदनशील, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, सक्रिय व सेवाभावी, मानव मूल्यों के प्रति उदार, नवीन प्रयोगों को प्राथमिकता देने जैसे आदर्शों की इंतहा कर नौकरशाही आज भ्रष्टाचार, अराजकता, अनिच्छा, अनीति, अहंकार, आलस्य, अनुशासनहीनता, असक्रियता व उदासीनता के कारण अपनी प्रतिष्ठा, निष्ठा व विश्वसनीयता के साथ समझौता करने पर उद्यत हो रही है। इसी वजह से भारत की नौकरशाही दुनिया के देशों में सबसे खराब स्थिति में पहुंच चुकी है। निकम्मेपन की मिसाल बनी हमारी नौकरशाही विश्व आर्थिक फोरम द्वारा 49 देशों में अफसरों के कामकाज के सर्वेक्षण में 44वें स्थान पर रही है।
यह सच है कि भारत में आजादी के बाद नौकरशाही में परिवर्तन तो कई हुए लेकिन उसके चाल, चरित्र, स्वभाव और मानसिकता को आज भी बदलने की चुनौती हमारे समक्ष जस की तस बनी हुई है। भले ही हमने भारतीय सिविल सेवा का नाम बदलकर भारतीय प्रशासनिक सेवा कर लिया हो, लेकिन नाम के साथ उसकी कार्य पद्धति में बदलाव करने में अब भी हम सफल नहीं हो सके है। लॉर्ड कर्जन ने सरकारी कामकाज में होने वाली लेटलतीफी को लेकर भारी शब्दों में भर्त्सना करते हुए कहा था कि विभागीय फाइलों पर नोटिंग का पहाड़ नहीं बनना चाहिए। उन्होंने प्रशासन की गतिशीलता को बरकरार रखने के लिए कई प्रयास भी किये हैं परंतु वे सफल नहीं हुए।
नौकरशाही कार्यपालिका का स्थायी अंग माना गया है। मैक्स वेबर के शब्दों में- ‘नौकरशाही को नेपथ्य में रहते हुए निष्पक्ष होकर उत्साह व ईमानदारी पूर्वक सरकार की सेवा करनी चाहिए।’ कुल मिलाकर नौकरशाही में सामाजिक कल्याण की इच्छाशक्ति और बेहतर प्रशासन की भावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। आज नौकरशाह केवल सुख सुविधा, शानदार मासिक वेतन, विदेशी भ्रमण जैसी विलासिता का आनंद लेने को ही अपना दायित्व समझ बैठे हैं। देश में जिस प्रशासक द्वारा तैयार की गई नीतियों पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे हैं आज उस प्रशासक के मन-मस्तिष्क से जनता के प्रति उतरदायित्व की भावनाओं का समाप्त होना जन विकास की आकांक्षाओं के लिए कतई उचित नहीं है।
नीतियां और योजनाओं के क्रियान्वयन में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाली नौकरशाही की इस विकृत सोच के चलते विकास की किरणों का लाभ वंचितों तक पहुंच नहीं पा रहा है। यदि आज भी करोड़ों का धन खर्च करने के बाद भी देश का कायाकल्प नहीं हो पाया है तो इसके लिए जिम्मेदार देश की नौकरशाही ही है। क्योंकि राजनेता तो केवल पांच साल की अवधि तक ही सत्ता में रहते हैं लेकिन नौकरशाही 30-35 साल तक की लंबी अवधि तक समूचे कार्यपालिका की असली बागडोर बनकर सत्ता में काबिज रहती है।
सुशासन के लिए नौकरशाही का चुस्त व दुरुस्त और ईमानदार होना बहुत जरूरी है। इसलिए आज नौकरशाही में सुधार समय की मांग बनी हुई है। सवाल है कि आखिर कैसे लोकतंत्र के लिए अभिशाप बनती जा रही नौकरशाही को जनता के लिए वरदान साबित किया जाएं। इसके लिए सर्वप्रथम हमारे राजनैतिक नेतृत्व को बदलना होगा। भर्ती परीक्षाओं से चयनित होकर आने वाले सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए संबंधित कार्यक्षेत्र के अनुसार प्रशिक्षण का प्रबंधन करना होगा ताकि जिससे उनके कार्यों के प्रति आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सके। इस मामले में देश की न्यायपालिका को चाहिए कि किसी भी पदाधिकारी के ऊपर भ्रष्टाचार या गबन का आरोप लगने पर पूरी जांच के बाद ही वह उसमें हस्तक्षेप करें।
जनता को भी अपनी सजगता और सक्रिय भूमिका निभाते हुए अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता और सूचना के अधिकार के तहत अपने क्षेत्रीय विकास और योजनाओं की जानकारी रखनी होगी।इसके साथ ही देश की शिक्षा प्रणाली में बदलाव करके ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करनी होगी जो उपनिवेशवाद की सोच का पतन कर भारतीय हितों के अनुकूल नौकरशाही के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सके। इतिहास बताता है कि राज्य में सरकारी योजनाओं की स्थिति जानने के लिए सम्राट अशोक से लेकर अकबर तक अपना वेश बदलकर तत्काल निरीक्षण करते थे। निगरानी तंत्र की सुदृढ़ता नौकरशाही को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाने के लिए आवश्यक भी है। लेकिन, बदलते दौर में यह काम तकनीक के माध्यम से भी किया जा सकता है।
देश में निरंतर मोबाइलों उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या का लाभ यह लिया जा सकता है कि सरकारी योजनाओं की समस्त जानकारियों व नवीनतम आंकड़ों को वेब पोर्टल पर डालकर उन्हें जनहित में प्रसारित कर दिया जाए। दुनिया में कॉल सेंटर की सेवाओं के रूप में सबसे अग्रणी रहने वाले भारत को कॉल सेंटर की सेवाओं का लाभ स्थानीय प्रशासनिक सुधार के लिए भी उठाने पर जोर देना होगा। क्योंकि समानता और समृद्धि जैसे हमारे प्रयत्नों में शासन ही कमजोर कड़ी है। अगर इस कड़ी को मजबूती प्रदान करें तो जन कल्याण के लिए सामाजिक वितरण तंत्र काफी हद तक दक्ष हो सकता है। अधिकारियों की पदोन्नति के लिए वरिष्ठता का क्रम तोड़ते हुए बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले प्रत्येक शासकीय व्यक्ति को प्रोन्नति देकर उसके कार्यों का सम्मान किया जाना चाहिए।
आज राजनेताओं और नौकरशाही दोनों को ही यह अहसास कराना आवश्यक है कि सत्ता उनमें नहीं बल्कि सत्ता जनता में ही निहित है, अपितु वे केवल जनसेवक ही है। किसी भी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार व रिश्वत में संलिप्त होने पर त्वरित कार्रवाही जैसे कदम इस दिशा में आवश्यक है। नौकरशाही में यह डर तो होना चाहिए कि यदि वे बेहतर प्रदर्शन नहीं करेंगे और गलत तरीके से शासन की शक्ति का लाभ उठाने का प्रयास करेंगे तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोने ही पड़ेंगे। इसकी शुरूआत काम के प्रति लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को दंडित व बर्खास्त करने के साथ करनी होगी ताकि जनमन में नौकरशाही के प्रति विश्वास बहाली हो सके।
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