बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि गंगा नदी के किनारे प्राकृतिक खेती करने का गलियारा बनाया जायेगा। उसके बाद अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय ने संयुक्त रूप से घोषणा की है कि देश की 13 बड़ी नदियों- झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और गोदावरी- के किनारे वृक्षारोपण किया जायेगा। मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने एवं उसका संरक्षण करने, भूजल का स्तर और वन उत्पादन बढ़ाने की मंशा से की गयी यह पहल सराहनीय है। इस योजना के तहत 19 हजार करोड़ रुपये की लागत से 74 सौ वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में वन विस्तार होगा। पर इसमें एक यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या वृक्षारोपण को वन लगाने की श्रेणी में रखा जा सकता है? दूसरी बात नदियों के बाढ़ मैदानों से जुड़ी हुई है। हर नदी के बाढ़ क्षेत्र की मिट्टी के स्वभाव और उसकी पारिस्थितिकी का समुचित अध्ययन कर अनुकूल पेड़-पौधे लगाने होंगे।
ये क्षेत्र नदी का जल ग्रहण क्षेत्र होते हैं। अलग-अलग मौसम में इन्हीं क्षेत्रों में नदी अपने को बढ़ाती हैं या पुनर्जीवित करती हैं। ऐसा न हो कि इस योजना के तहत उसमें कोई अतिक्रमण हो। इसलिए परियोजना के अध्ययन रिपोर्ट के बाद पर्यावरण संबंधी लेखा-जोखा भी होना चाहिए ताकि सही मंशा के बावजूद किसी तरह की गलती या गड़बड़ी को रोका जा सके और प्राकृतिक संवेदनशीलता का संरक्षण हो सके। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि देश की विभिन्न नदियों पर सरकार ने ध्यान केंद्रित किया है। अब तक की योजनाओं में आम तौर पर गंगा नदी को प्राथमिकता मिलती रही है। लगभग सभी नदी घाटियों में समस्याएं हैं, नदी बेसिन में पानी की कमी हो रही है, आसपास का पर्यावरण खतरे में है। इस लिहाज से पर्यावरण और जल शक्ति मंत्रालयों की संयुक्त पहल स्वागतयोग्य है। छोटी-छोटी नदियों को भी हमें प्राथमिकता देनी होगी क्योंकि वे ही एक तरह से बड़ी नदियों का आधार होती हैं।
इन सभी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र नसों और धमनियों की तरह आपस में जुड़े होते हैं। उल्लेखनीय है कि इन 13 नदियों के संवर्धन और संरक्षण की प्रक्रिया से उनसे संबंधित दो सौ से अधिक छोटी नदियों का भला हो सकेगा। हमें इससे जुड़े अनुभवों को भी मद्देनजर रखना चाहिए। उदाहरण के रूप में, चक्रीय विकास प्रणाली के प्रणेता मिट्टी वैज्ञानिक पीआर मिश्र का प्रयोग और उनकी उपलब्धि अनुकरणीय हैं। उन्होंने सुखना झील को पुनर्जीवित किया था। नदियों के किनारे वन क्षेत्रों के विस्तार की योजना ऐसा ही एक कदम है। लेकिन सभी आयामों को ध्यान में रखते हुए इस पर तुरंत काम भी शुरू होना चाहिए। अच्छे अनुभवों के साथ-साथ उनकी कमियों से भी सीख लेना जरूरी है, अन्यथा हमारे सामने नदियों को खो देने का खतरा उत्पन्न हो जायेगा।
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